शहर के गऊघाट पुराने यमुना पुल के नीचे बनी बस्ती को खाली कराते रेलवे के अधिकारी व पुलिस
प्रयागराज हम उम्र गुजार देते है एक आशियाना बनाने में, वो तरस नहीं खाते बस्तियां उजाड़ने में, मशहूर शायर बशीर बद्र ने भी कुछ ऐसा ही लिखा है। ये पंक्तियां उन पर सटीक बैठ रही है जिन्हें सैकड़ों वर्ष के बाद रेलवे ने करीब हजारों परिवार को बेघर कर दिया। रेलवे ने अपनी भूमि से तो उन परिवारों को बेघर तो कर दिया, लेकिन सवाल यह उठता है कि अब उस झोपड़पट्टी में रहने वाले परिवार इस ठंड और सर्द हवाओं में कहां जाएंगे। उनके पास रात गुजारने के लिए खुले आसमान के नीचे सुनसान सड़क ही बची है। मालूम हो कि शहर के व्यस्ततम इलाके में गऊघाट के पास पुराने यमुना ब्रिज के आसपास और उसके नीचे सैकड़ों वर्ष से दलितों की बस्ती बसी हुई है। इस बस्ती में रहने वाला परिवार सड़कों से कचरों को जुटा कर प्लास्टिक और पन्नी बेचकर अपना परिवार चलाता रहा है। बीते कई सालों से यहां के रहने वाले लोग बांस और पन्नी झोपड़ी बनाकर गर्मी, ठंडी और बरसात झेलते आये। रेलवे के अधिकारियों ने फोर्स के साथ पहुंचकर उस बस्ती को खाली कराना शुरू कर दिया। हलांकि बस्ती में रहने वाले लोगों ने कोई विरोध भले नहीं किया लेकिन उनके जेहन में यह सवाल बार बार उठता रहा होगा कि अब वह अपने परिवार को लेकर कहां जाएंगे। बस्ती को खाली कराने के मामले में रेलवे के वरिष्ठ जनसम्पर्क अधिकारी अमित मालवीय ने बताया कि वह रेलवे की संपत्ति है। वहां पर इन लोगों काफी समय से कब्जा जमाया हुआ था। रेलवे के अधिकारियों के आदेश पर यह बस्ती खाली कराई जा रही है। बस्ती खाली होने के बाद वहां पर क्या निर्माण किया जाएगा यह अभी तय नहीं है।
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