गाजीपुर आजादी की लड़ाई में जिले के पुरूष क्रांतिकारियों के साथ ही महिला क्रांतिकारियों की भी भूमिका महत्वपूर्ण रही है। पुरूष क्रांतिकारियों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर वो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ने में पीछे नहीं रही हैं। अब गुमनामी के अंधेरे में गुम हो चुकी जिले की एक महिला क्रांतिकारी इस लड़ाई में शहीद भी हुई थी और एक दर्जन से अधिक महिलाओं को कई वर्षों तक जेल की हवा खानी पड़ी थी। इनके अलावा जिले के तीन पुरुष क्रांतिकारियों को काले पानी की दोहरी सजा भुगतनी पड़ी थी। इस बाबत जिले के शिक्षाविद् व इतिहासकार डॉ राम अवतार यादव ने अपनी ‘जनपद गाजीपुर एक अध्ययन’ नामक किताब में 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जिले में घटित घटनाओं का वर्णन किया है। बताया कि आजादी की लड़ाई में अंग्रेजी पुलिस का मुकाबला करते हुए जिले के कुल 15 क्रांतिकारियों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इनमें एक महिला क्रांतिकारी राधिका देवी भी शामिल थीं। अंग्रेजी पुलिस जब 29 अगस्त 1942 को शेरपुर गांव को मशीनगन से उड़ाने की योजना बनाकर उस गांव में पहुंचीं तो लोगों ने उसका घोर विरोध करते हुए जमकर मुकाबला किया। जिसमें राधिका देवी पत्नी जगरनाथ पाण्डेय, रमाशंकर लाल श्रीवास्तव और खेदन सिंह यादव शहीद हुए थे। इसके अलावा इस आंदोलन में जिले के कुल 12 क्रांतिकारी पुलिस की गोली लगने से घायल हुए थे। महात्मा गांधी द्वारा 8 अगस्त को मुम्बई में भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल बजाते ही जिले में क्रांति की लहर दौड़ पड़ी थी। इस क्रांति की जिले में पहली घटना 15 अगस्त 1942 को सादात में थाना व स्टेशन फूंकने और डाकघर लूटने के रूप में घटित हुई। जिसमें एक क्रांतिकारी शहीद व एक क्रांतिकारी पुलिस की गोली से घायल हुए थे। वहीं क्रांतिकारियों ने गुस्से में 2 अंग्रेजी पुलिस कर्मियों को जिन्दा जला दिया था। इस घटना ने पूरे जिले के क्रांतिकारियों में आग में घी डालने का काम किया। इस घटना के तीन दिन बाद 18 अगस्त 1942 को नंदगंज रेलवे स्टेशन पर खड़ी 52 डिब्बे की मालगाड़ी को क्रांतिकारियों ने लूट लिया था। जिसमें अंग्रेजी सेना के लिए खाद्य सामग्री भरी थी और कलकत्ता जा रही थी। लूट के दौरान मौके पर पहुंची अंग्रेजी पुलिस ने क्रांतिकारियों पर ताबड़तोड़ 175 राउंड गोलियां चलाकर 80 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया था और सैकड़ों लोग घायल हुए थे। महीनों तक उनकी लाशें तितर बितर पड़ी थी और उसे जंगली जानवर, गिद्ध, कौए खाते रहे। इस घटना की दहशत से भयभीत होकर लोग घर छोड़ कर भाग गए। महीनों तक कोई इधर आने का साहस नहीं किया। लेकिन इस घटना के साथ ही उसी दिन मुहम्मदाबाद तहसील पर तिरंगा झंडा फहराने को लेकर क्रांतिकारियों और पुलिस में मुठभेड़ हुई। जिसमें डॉ शिवपूजन राय सहित कुल 12 क्रांतिकारी शहीद हो गए थे। यह सभी क्रांतिकारी शेरपुर कलां गांव के रहने वाले थे। इस घटना में 9 क्रांतिकारी पुलिस की गोली लगने से घायल हुए थे। यह सभी भी शेरपुर कलां गांव के ही थे। इसके अलावा एक क्रांतिकारी गहमर का घायल हुआ था। आज जब हम क्रांतिकारियों के उस अदम्य साहस, उत्साह और बलिदान की चर्चा करते हैं और दिल दहल उठता है। इसके अलावा आजादी की लड़ाई के दौरान जेल जाने वाली कुल 13 महिला क्रांतिकारियों में सादात की चम्पा देवी पुत्री सदानंद, अलगी देवी, सैदपुर की केशरी देवी पत्नी हर प्रसाद सिंह, विद्या देवी, रेवतीपुर की सुशीला देवी, नवाबगंज की लक्ष्मी देवी व गोहदा की गुलज़ारी देवी शामिल हैं। इनके अलावा धनराजी देवी पत्नी मर्यादा तिवारी, सुभागी देवी (वन बिहारी सिंह की माता), महराजी देवी पत्नी दल सिंगार दूबे, यशोदा देवी पत्नी इन्द्रदेव त्रिपाठी, पान फूल देवी पत्नी विश्वनाथ शर्मा और राम दुलारी देवी (राम बदन राय की माता) का नाम भी जेल जाने वालों की सूची में शामिल हैं। इसके अलावा काले पानी की दोहरी सजा पाने वालों में भी ज़िले के तीन क्रांतिकारियों का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया हैं। इन क्रांतिकारियों में बभनौली सैदपुर के बालरूप शर्मा, गदाईपुर गहमर के जय शंकर उपाध्यक्ष और बरहपार भीमापार के राजनाथ सिंह का नाम शामिल हैं। जब भी भारत छोड़ो आंदोलन और आजादी की लड़ाई की बात आती है तो इन तीनों क्रांतिकारियों का नाम बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है।
मंगलवार, 12 अगस्त 2025
गुमनामी के अंधेरे में गुम महिला क्रांतिकारियों की पूरी कहानी
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