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मंगलवार, 20 मई 2025

Lmp. सरस्वती संस्कार केंद्र शिविर में जले विद्या के दीप और महका सेवा से मन, हुआ भावपूर्ण समापन

🔘 संस्कारों की सुगंध से महक उठा लखीमपुर के पंडित दीनदयाल उपाध्याय सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज CBSE का आंगन, हुआ “सरस्वती संस्कार केंद्र शिविर” का भावपूर्ण समापन

लखीमपुर खीरी। जहाँ शिक्षा केवल अंकों का खेल नहीं, अपितु जीवन मूल्यों की ज्योति बन जाए, वहीं जन्म लेते हैं ऐसे प्रयास, जो पीढ़ियों को संस्कारों की धरोहर सौंपते हैं। ऐसा ही एक अद्वितीय प्रयास रहा विद्या भारती अवध प्रांत द्वारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज में आयोजित दो दिवसीय “सरस्वती संस्कार केंद्र शिविर”, जिसका समापन एक भावविभोर कर देने वाले समारोह के साथ सम्पन्न हुआ।
शिविर का प्रत्येक क्षण, जैसे माँ सरस्वती की ममता से भरा कोई आशीषमयी स्पर्श था, ज्ञान की वाणी, कला की छटा, भावों की अभिव्यक्ति और सेवा की साधना से परिपूर्ण। इस अवसर पर सेवा क्षेत्र के पाँच संस्कार केंद्रों से आए नन्हे प्रतिभागी अपनी बाल सुलभ मुस्कान और आत्मीयता के साथ न केवल मंच पर अपनी प्रतिभा बिखेरते दिखे, बल्कि श्रोताओं के हृदयों पर अमिट छाप छोड़ गए। समापन सत्र का शुभारंभ दीप की लौ से हुआ, जिसमें उपस्थित जनों ने माँ सरस्वती से प्रार्थना की कि यह लौ केवल इस शिविर तक सीमित न रहे, बल्कि हर बालक के जीवन में सतत् जलती रहे। मंच पर उपस्थित प्रमुख अतिथियों  प्रांत सेवा संयोजक सुरेश मणि सिंह, मातृ भारती की उपाध्यक्ष अंशु बाजपेई, कोषाध्यक्ष शन्नो तिवारी और विद्यालय के प्रधानाचार्य अरविन्द सिंह चौहान  ने दीप प्रज्ज्वलन और पुष्पार्चन कर इस पावन अवसर की गरिमा को नमन किया। प्रतियोगिताओं की सूची में केवल विषय नहीं थे  वे मानो आत्मा के विभिन्न रंग थे। भाषण प्रतियोगिता में जब रुचि (महेवागंज) ने ओजस्वी स्वर में संस्कारों की महिमा गायी, तो सभागार मौन होकर सुनता रहा। चित्रकला में कल्पना की तूलिका ने कल्पनाओं को रंगों में ढाल दिया। गीत प्रतियोगिता में संध्या (महेवागंज) की आवाज़ में जैसे भक्ति की नदी बह निकली। निबंध और सुलेख में बच्चों ने सिद्ध किया कि लेखनी केवल शब्द नहीं लिखती, वह संस्कृति रचती है। हर पुरस्कार केवल एक ट्रॉफी नहीं था, वह उस आत्मीय श्रम और साधना का सम्मान था, जो इन बच्चों ने किया। जब मंच से उनके नाम पुकारे गए, तब माता-पिता की आँखों में जो गर्व छलका, वह किसी भी पुरस्कार से बड़ा था। विद्यालय के उप प्रधानाचार्य आलोक अवस्थी ने अंत में सभी का हृदय से आभार व्यक्त किया  और जैसे एक सुंदर कथा के अंत में ‘पुनः मिलेंगे’ का वादा होता है, उन्होंने इसी संकल्प के साथ विदा ली कि संस्कारों की यह यात्रा थमे नहीं, सतत् चलती रहे।

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