लखीमपुर। लखीमपुर की पावन धरती आज साक्षी बनी उस ऐतिहासिक क्षण की, जब सम्राट अशोक की स्मृति में अशोक स्तम्भ निर्माण हेतु शिलान्यास कर भारत की गौरवशाली विरासत को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया गया। अवसर था बुद्ध जयंती का दिन, जब शांति, करुणा और मानवता का संदेश देने वाले तथागत बुद्ध का जन्म हुआ था।
शहर के पावर हाउस टैक्सी स्टैंड के निकट आयोजित इस समारोह में जनसैलाब उमड़ पड़ा, जैसे वर्षों से थमी हुई सांस्कृतिक चेतना को किसी ने फिर से जगा दिया हो। मंच पर विराजमान थे सदर विधायक योगेश वर्मा, नगरपालिका अध्यक्ष डॉ. इरा श्रीवास्तव, भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारीगण, पूर्व विधायकगण और वह समर्पित टीम, जो वर्षों से इस सपने को साकार करने में जुटी थी। कार्यक्रम का शुभारंभ भगवान बुद्ध के चित्र पर पुष्प अर्पित कर किया गया, जैसे श्रद्धा और भक्ति ने एक-दूसरे से हाथ मिला लिया हो। इसके पश्चात सम्राट अशोक की स्मृति को अमर करने हेतु भूमि पूजन किया गया, जिसमें जनप्रतिनिधियों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं तक ने सहभागिता निभाई। बुद्ध के संदेश आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं, विधायक योगेश वर्मा ने कहा, उनकी वाणी में केवल शब्द नहीं, आत्मा की आवाज़ थी। उन्होंने यह भी कहा कि सम्राट अशोक केवल शासक नहीं, वह भारत की आत्मा के रक्षक थे, जिन्होंने बुद्ध धर्म को अपनाकर पूरे विश्व को शांति और धैर्य का मार्ग दिखाया। डॉ. इरा श्रीवास्तव की आँखों में गर्व था उन्होंने कहा लखीमपुर में मौर्य समाज की वर्षों पुरानी माँग आज साकार हो रही है। यह स्तम्भ एक प्रतीक होगा, धैर्य, समर्पण और राष्ट्रीय गौरव का। कार्यक्रम में मौजूद भाजपा जिला प्रभारी वासुदेव मौर्य और पूर्व विधायक आर.एस. कुशवाहा ने भी बुद्ध और सम्राट अशोक के योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यह स्तम्भ आने वाली पीढ़ियों को उनकी जड़ों से जोड़ने का कार्य करेगा, यह केवल पत्थर नहीं, यह इतिहास की साँसें हैं। स्तम्भ निर्माण समिति के समर्पित कार्यकर्ता मनमोहन मौर्य और पारस मौर्य की आंखों में संतोष की चमक थी। उन्होंने कहा यह सिर्फ एक स्मारक नहीं, हमारी सांस्कृतिक चेतना का पुनर्जन्म है। जन सहयोग ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है, और यह स्तम्भ उसी का साकार रूप होगा। इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने सैकड़ों लोग जिनमें युवा, वृद्ध, समाजसेवी, शिक्षक, व्यापारी, पत्रकार और छात्र सब शामिल थे। एक अद्भुत भावनात्मक ऊर्जा पूरे माहौल में व्याप्त थी, जैसे हर मन ने यह प्रण लिया हो कि अब इतिहास सिर्फ पुस्तकों में नहीं रहेगा, वह हमारी ज़मीन पर जियेगा। अशोक स्तम्भ के निर्माण का यह संकल्प सिर्फ एक संरचना नहीं, एक आंदोलन है, भारत की आत्मा को फिर से पहचानने और विश्व के सम्मुख उसकी सांस्कृतिक गरिमा को स्थापित करने का प्रयास। कुलमिलाकर यह स्तम्भ खड़ा होगा समय के थपेड़ों के बीच, परंपरा की जड़ें थामे हुए, और हर आने वाली पीढ़ी को बताएगा कि हम कौन थे, और कहाँ से आए हैं।
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