चंडीगढ़, बहलाना। धर्म, संस्कृति और शौर्य का अनुपम संगम उस समय देखने को मिला जब परशुराम महासभा ट्राईसिटी चंडीगढ़ के तत्वावधान में भगवान परशुराम जन्मोत्सव का भव्य आयोजन किया गया। सनातन धर्म मंदिर, बहलाना की पावन भूमि साक्षी बनी एक ऐसे धार्मिक उत्सव की, जहाँ आस्था के साथ साथ संगठन और संस्कृति का अद्वितीय समन्वय देखने को मिला।
कार्यक्रम का शुभारंभ विधिपूर्वक पूजन, हवन और वेद मंत्रों की दिव्य गूंज के साथ हुआ। इसके पश्चात नगर में शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें केसरिया ध्वज लहराते हुए, परशुराम जयघोष करते श्रद्धालुओं ने सनातन परंपरा की गरिमा को पुनः जीवित कर दिया। शोभायात्रा के उपरांत मंदिर परिसर में विशाल भंडारे का आयोजन हुआ, जहाँ श्रद्धालुओं ने एक साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण किया। इस आयोजन में संतों की गौरवमयी उपस्थिति ने कार्यक्रम को आध्यात्मिक ऊँचाई प्रदान की। श्री हिन्दू तख्त प्रमुख सर्वेशानन्द भैरवा, जगतगुरु श्री विकास दास, श्री शंकरानंद जी महाराज, 1008 श्री सूर्यनाथ जी महाराज, महंत श्री सुखबीर दास जी महाराज जैसे दिव्यात्माओं ने अपने आशीर्वचनों से वातावरण को धर्ममय कर दिया। साथ ही सीआरपीएफ कमांडेंट विकास कंडवाल, पूर्व डिप्टी मेयर अनिल दुबे, भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष विनोद राणा, राष्ट्रीय प्रवक्ता अशोक तिवारी, प्रचारक अमित देव सहित कई प्रमुख सनातनी सेवकों व संस्थाओं की गरिमामयी उपस्थिति रही। रामदरबार युवा संगठन, माँ जानकी सेवा समिति, एमएसयू चंडीगढ़, आरएसएस बहलाना जैसी संस्थाओं ने भी आयोजन में सक्रिय सहभागिता निभाई। महासभा के संरक्षक बबलू (मनीष) दुबे ने स्पष्ट किया कि यह सभा केवल भगवान परशुराम की उपासना का केंद्र नहीं, अपितु एक ऐसा मंच है जो शास्त्र और शस्त्र दोनों की शिक्षा देकर सनातन समाज को जागरूक, संगठित और सशक्त बनाने का कार्य कर रही है। पूर्व डिप्टी मेयर अनिल दुबे एवं विनोद राणा ने इसे राजनीति से परे एक सनातनी आस्था का पर्व बताया, और टीम के समर्पण को सराहा। अंत में महासभा के संस्थापक मनीष सिंह और अध्यक्ष रतन झा ने बताया कि यह परशुराम जन्मोत्सव का तीसरा सफल संस्करण रहा, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लेकर धर्मप्रेम की एक सशक्त मिसाल पेश की। उन्होंने कोषाध्यक्ष आशुतोष मिश्रा, महासचिव रंजन सिंह, सचिव हर्षित झा सहित समस्त टीम, मंदिर समिति, प्रशासन व स्थानीय जनता का विशेष आभार व्यक्त किया। यह आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि था सनातन धर्म की चेतना का उत्सव, जिसने यह सिद्ध कर दिया कि जब संत, समाजसेवी और सजग युवा एक मंच पर जुटते हैं, तब संस्कृति पुनः जाग्रत होती है और राष्ट्र का आत्मबोध प्रबल होता है।
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