लखीमपुर। सामाजिक सौहार्द और सांस्कृतिक चेतना का अद्भुत संगम उस समय देखने को मिला, जब लखीमपुर खीरी के राजगढ़ वार्ड स्थित मोतीनगर मोहल्ले में श्री चित्रगुप्त कायस्थ सभा की मासिक बैठक एक आत्मीय परिवेश में संपन्न हुई। सभा का आयोजन संस्था मंत्री मनीष श्रीवास्तव के आवास पर हुआ, जहां चित्रांश समाज के सम्मानित सदस्यों की गरिमामयी उपस्थिति ने आयोजन को एक नए अर्थ प्रदान किए।
बैठक की शुरुआत भगवान चित्रगुप्त की स्तुति से हुई, वही भगवान चित्रगुप्त, जो मनुष्यों के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं, और जिनकी संतति आज समाज में नैतिक मूल्यों, संगठन और सेवा की नई परिभाषा गढ़ने को कटिबद्ध है।
सभा की अध्यक्षता कर रहे डॉ. ओम प्रकाश श्रीवास्तव ने अपने संबोधन में कहा कि संस्था की सदस्यता महज़ एक आंकड़ा नहीं, अपितु यह हमारी चेतना, एकता और सामाजिक प्रतिबद्धता का प्रमाण है। वहीं संस्था के महामंत्री चित्रांश अनूप सिंह ने बैठक का सुगठित संचालन करते हुए संस्था की उपलब्धियों का वृत्तांत प्रस्तुत किया। उन्होंने यह शुभ समाचार भी साझा किया कि सदर विधायक के माध्यम से संस्था की बहुप्रतीक्षित मांग भगवान चित्रगुप्त द्वार की स्वीकृति सदर विधायक योगेश वर्मा के प्रयासों से प्राप्त हो चुकी है, जो शीघ्र ही श्री चित्रगुप्त धर्मशाला के समीप एसएसबी कैंप के पास स्थापित होगा। यह घोषणा सुनते ही उपस्थितजनों के चेहरे गर्व और प्रसन्नता से दमक उठे। बैठक का विशेष आकर्षण रहे दो नवयुवक नीतीश श्रीवास्तव एवं सुमित श्रीवास्तव, जिन्होंने संगठन की सदस्यता लेकर समाज से जुड़ने का संकल्प लिया। यह नई पीढ़ी की जागरूकता और अपनी जड़ों से जुड़ने की अदम्य भावना का प्रमाण था। संस्थाध्यक्ष डॉ. श्रीवास्तव ने श्री चित्रगुप्त कायस्थ धर्मशाला और श्री दुर्गे चित्रगुप्त मंदिर के सौंदर्यीकरण पर विशेष बल देते हुए समाजसेवियों से आत्मीय भावनात्मक अपील की कि वे तन, मन, धन से इस पुनीत कार्य में सहभागी बनें। इस अवसर पर महिला अध्यक्ष अर्चना श्रीवास्तव, रमेश पांडिया, रविकांत श्रीवास्तव, इंजीनियर राजेश श्रीवास्तव, मुकेश सक्सेना, नितिन श्रीवास्तव एवं अनिल श्रीवास्तव सहित अनेक चित्रांश बंधुओं की गरिमामयी उपस्थिति रही। इन सभी ने संगठन के प्रति अपनी गहन निष्ठा और सामूहिक उत्तरदायित्व का परिचय देते हुए एक सशक्त समाज के निर्माण की दिशा में प्रतिबद्धता दोहराई। कार्यक्रम के अंत में संस्था मंत्री मनीष श्रीवास्तव ने आत्मीयता से सभी का स्वागत-सत्कार कर लखीमपुर की शालीन आतिथ्य परंपरा को जीवंत कर दिया। कुलमिलाकर यह आयोजन मात्र एक बैठक नहीं, अपितु एक सामाजिक चेतना का प्रज्ज्वलित दीप था, जो आने वाली पीढ़ियों को संगठन, संस्कृति और सेवा का अमिट संदेश देता रहेगा।
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