पहलगाम की वादियों में गूंजते परिंदों के स्वर उस दिन खामोश हो गए, जब आतंक के अंधकार ने 26 निर्दोष भारतीयों की साँसें छीन लीं। घाटी के इस क्रूर रक्तस्नान ने न केवल ज़मीन को लहूलुहान किया, बल्कि हर भारतीय के दिल को भी चीर दिया। यह कोई साधारण हादसा नहीं, यह भारतीय अस्मिता पर गहरा प्रहार था।
देश की इस वेदना को शब्दों में बाँधना कठिन है, किंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस राष्ट्रीय शोक को संकल्प में बदलते हुए, सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) की आपात बैठक बुलाई। यह बैठक केवल काग़ज़ी निर्णयों की नहीं थी, यह एक राष्ट्र की आत्मा से निकली पुकार थी "अब और नहीं।"
प्रधानमंत्री आवास पर हुई इस बैठक में जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल बैठे, तो निर्णय नहीं—प्रतिज्ञाएँ लिखी जा रही थीं।
राष्ट्र की दृढ़ता: भारत ने उठाए कठोर कदम
सिंधु जल की धारा अब प्रतीक्षा में है, क्योंकि भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है। अब ये जल की धाराएँ तब तक नहीं बहेंगी, जब तक पाकिस्तान आतंक की धार को सूखा नहीं देता।
अटारी बॉर्डर पर खामोशी पसरी है, चेक पोस्ट बंद है—क्योंकि अब संवाद नहीं, आत्मसम्मान बोल रहा है।
सार्क वीज़ा छूट रद्द, पाकिस्तानी नागरिकों को 48 घंटों के भीतर भारत छोड़ने का आदेश—क्योंकि यह देश अब हर उस छाया से मुक्त होगा जो आतंक के पक्ष में खड़ी है।
नई दिल्ली में पाक उच्चायोग के सैन्य सलाहकारों को पर्सोना नॉन ग्रेटा घोषित कर दिया गया है, और भारत ने भी अपने अधिकारी वापस बुला लिए हैं। अब दोनों राष्ट्रों के उच्चायोगों में मौन बैठेगा—जब तक संवाद में सच्चाई न हो।
दूतावासों की संख्यात्मक उपस्थिति भी घटाई जा रही है, क्योंकि अब संख्या नहीं, सार ज़रूरी है।
सेना को कहा गया—चौकन्ना रहो, यह समय इतिहास लिखने का है।
आज भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि उसकी सहनशक्ति की सीमा राष्ट्र की अस्मिता से आगे नहीं जाती। पहलगाम की वो 26 चिताएँ सिर्फ़ शोक नहीं माँग रही थीं, वे न्याय की आग थीं और आज उस आग ने निर्णय का रूप ले लिया है।
यह नीतियाँ नहीं, यह राष्ट्र की आत्मा की पुकार है। भारत अब मौन नहीं, मुखर है। सहन नहीं, सजग है। और जब भारत सजग होता है, तब इतिहास बदलता है।
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