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गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

समय संवाद : "पत्ता, फूल और भगवान का दरबार"

"समय-संवाद" आलेख अनूप सिंह की कलम से...✍️

गांव के कोने में एक बुजुर्ग थे – नाम था रामधनी। सफेद धोती, घुटनों तक लटकती हुई, सिर पर पुरानी टोपी और आंखों में वह बालसुलभ श्रद्धा जो केवल बचपन और बुढ़ापे में दिखाई देती है। रोज सुबह उठते ही तुलसी के नीचे जल चढ़ाते, और गीता का वही श्लोक दोहराते –
"पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति..."
और फिर पत्नी को आवाज देते – "बुढ़िया! भगवान को बेलपत्र चढ़ाया या टीवी के 'कुकिंग शो' में ही लीन है?"

बुढ़िया गुस्से से चम्मच पटकती, "भगवान को बेलपत्र चढ़ाने से क्या होगा? बेलपत्र तो गली के श्यामू की बकरी ने चर लिया। भगवान बेल से नहीं, तुम्हारी नीयत से खुश होंगे!"

रामधनी गंभीर हो जाते, "नीतियों की बात मत कर, बुढ़िया। भगवान भाव के भूखे हैं, फल के नहीं!"

अब गांव में नया ट्रेंड चला – 'डिजिटल भक्ति'। पप्पू हलवाई ने एक ऐप बनवा दिया – 'Bhagwan@Home'। ऐप से बेलपत्र, फल-फूल, अगरबत्ती सब वर्चुअल भेज सकते थे। रामधनी चिंतित हो गए – "अब भगवान भी नेट पैक के भरोसे हो गए! अब सेवा नहीं, सिग्नल चाहिए..."

एक दिन पप्पू ने कहा, "बाबा, भगवान को QR कोड से दान दीजिए।"

रामधनी बोले, "बेटा, गीता में कहीं QR कोड की बात नहीं आई। श्रीकृष्ण ने साफ कहा – पत्ता, फूल, फल या जल – जो भी सच्चे मन से अर्पण करोगे, मैं स्वीकार करूंगा।"

फिर उन्होंने तुलसी के नीचे एक पत्ता रखा, दो बूंद जल अर्पित किया, और बोले – "हे नंदलाल, मेरा मोबाइल नहीं चला, बेल भी नहीं बचा, लेकिन भावनाएं जस की तस हैं। इसे स्वीकारो।"

अचानक आंगन में शांति छा गई, हवा में सोंधी सुगंध फैल गई। बुढ़िया बोली – "लगता है तुम्हारा डाटा प्लान एक्टिव हो गया!"

रामधनी मुस्कराए – "नहीं बुढ़िया, यह डाटा प्लान नहीं, भक्ति प्लान है – लाइफटाइम फ्री!"

शिक्षा:
जो भाव से अर्पित करे, वही भगवान का सच्चा भक्त। विधि कोई भी हो, भावना शुद्ध होनी चाहिए। आज के डिजिटल युग में भी भगवान की कृपा वही पाता है, जो सरल, निष्कपट और समर्पित होता है – चाहे बेलपत्र हो या मोबाइल का बेलेंस!

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