रेखा जी सुबह-सुबह सब्जी मंडी से लौटीं, थककर उन्होंने सब्जी का थैला मेज पर रखा और राहत की सांस ली। आज उन्हें सब्जी वाले ने बड़ी ताज़ी और चमकदार लौकी, टमाटर और हरी मिर्च दी थी। सेब भी इतने लाल और चमकदार थे कि मन ललचा जाए। उन्होंने खुश होकर सोचा—"आज बढ़िया सब्जी बनेगी!"
दोपहर में जब वे लौकी काटने बैठीं, तो पहले ही चाकू के हल्के दबाव से लौकी टूट गई। अंदर झांककर देखा तो पूरा गूदा सड़ा हुआ था! गुस्से में उन्होंने दूसरी लौकी उठाई, लेकिन हाल वही था। उन्हें अजीब सा संदेह हुआ—"इतनी ताज़ी दिखने वाली लौकी अंदर से खराब कैसे हो सकती है?"
फिर उन्होंने सेब काटा। जैसे ही चाकू गूदा छूने वाला था, उन्होंने देखा कि सेब के बीचों-बीच एक बारीक छेद है। गौर से देखने पर पता चला कि हर सेब में वही महीन सा छेद मौजूद था, और अंदर के बीजों तक एक हल्की रेखा बनी हुई थी। "कहीं इसमें कुछ इंजेक्ट तो नहीं किया गया?" रमा जी बड़बड़ाईं। उन्होंने गौर किया कि यह छेद ठीक उसी जगह था जहाँ बीज होते हैं, और उससे हल्का रस भी निकल रहा था।
रेखा जी को अब चिंता होने लगी। उन्होंने जल्दी से टमाटर उठाया और उसे काटने लगीं। बाहर से टमाटर बिल्कुल सही था, लाल, चमकदार, जैसे अभी खेत से तोड़ा गया हो। लेकिन अंदर? अंदर की स्थिति इतनी भयानक थी कि वो चौंक गईं—बीजों के आसपास की झिल्ली गहरे पीले रंग की थी, और उसमें से हल्की दुर्गंध आ रही थी।
"ऐसा पहले तो नहीं होता था!" उन्होंने सोचा। कुछ साल पहले तक सब्जियां हफ्ते भर तक सही-सलामत रहती थीं, लेकिन अब तो ताजी सब्जियां भी एक दिन में सड़ने लगी हैं।
दूसरे दिन जब उन्होंने फ्रिज में रखी हुई लौकी को निकाला, तो वह पहले से भी ज्यादा खराब हो चुकी थी—नरम, पानी छोड़े हुए और अंदर से बिल्कुल गली-सड़ी। "क्या अब हम ज़हर खा रहे हैं?" उन्होंने सोचा।
रेखा जी के बेटे, जो डॉक्टर थे, ने बताया, "माँ, ये सब्जियां और फल अब नेचुरल नहीं रहे। इन्हें बड़े करने के लिए जिबरेलिन और ऑक्सिन जैसे हार्मोन दिए जाते हैं, जिससे इनका आकार तो बढ़ जाता है, लेकिन ये अंदर से जल्दी खराब हो जाती हैं। जल्दी पकाने के लिए एथीफॉन और कैल्शियम कार्बाइड का उपयोग होता है, जो हमारे लीवर और किडनी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।"
*रेखा जी घबरा गईं, "तो अब खाएं तो क्या खाएं?"*
उनके बेटे ने समझाया, "हम इन रसायनों को पूरी तरह खत्म तो नहीं कर सकते, लेकिन कुछ उपाय करके इनके असर को कम जरूर कर सकते हैं।"
*तो बचाव कैसे करें?*
1. खरीदारी में सावधानी: बहुत बड़े, ज्यादा चमकदार और बेदाग फल-सब्जियों से बचें। छोटे और हल्के दाग वाले प्राकृतिक होते हैं।
2. सही तरीके से धोएं: फल और सब्जियों को 2-3 घंटे तक नमक वाले पानी में भिगोकर रखें। इससे ऊपर लगे कुछ रसायन निकल सकते हैं।
3. छीलकर खाएं: जहाँ संभव हो, सब्जियों और फलों का छिलका हटा दें, क्योंकि ज्यादातर रसायन बाहर ही लगे होते हैं।
4. स्थानीय और ऑर्गेनिक उत्पाद लें: जैविक खेती से उगाई गई सब्जियाँ और फल कम हानिकारक होते हैं।
रेखा जी ने उस दिन तय कर लिया कि वे अब से हर चीज़ को अच्छे से धोकर और जांचकर ही पकाएंगी। उन्होंने सोचा, "हम ज़हर को पूरी तरह नहीं हटा सकते, लेकिन थोड़ा बचाव तो कर ही सकते हैं।"
✍️-अनूप सिंह, लाइफ कोच
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