दिल्ली की राजनीति हमेशा से भावनाओं और तात्कालिक मुद्दों पर आधारित रही है। *27 साल पहले प्याज़ की महँगाई ने जनता को इतना नाराज़ किया कि उन्होंने सत्ता में बैठी सरकार को उखाड़ फेंका।* लेकिन इतिहास गवाह है कि जनता कभी-कभी तात्कालिक नाराज़गी में ऐसे फैसले ले लेती है, जिनका खामियाजा लंबे समय तक भुगतना पड़ता है। तब सरकार बदली, लेकिन असली मुद्दे जस के तस बने रहे। आज, जब पानी की किल्लत से त्रस्त जनता को अपनी भूल का एहसास हुआ, तो उन्होंने उसी सरकार को दोबारा सत्ता में लाकर अपने निर्णय को सुधारने का प्रयास किया।
मुफ्त की राजनीति और जनता की ठगी
दिल्ली में पिछले कुछ सालों से एक नई राजनीति हावी रही—*“मुफ्त सुविधाओं” की राजनीति। बिजली फ्री, पानी फ्री, बस यात्रा फ्री*—ये नारे जनता को लुभाने में जरूर सफल रहे, लेकिन उनकी असली कीमत टैक्स देने वालों की जेब से चुकाई गई। आम आदमी पार्टी की सरकार ने यह मॉडल पेश किया, जो शुरू में जनता को आकर्षित करता रहा। लेकिन समय के साथ यह मॉडल अस्थिर होता चला गया। सरकार के पास बुनियादी ढांचे के विकास के लिए फंड कम पड़ने लगा और दिल्ली की असली समस्याएँ—*पानी संकट, ट्रैफिक, प्रदूषण, स्वास्थ्य सेवाएँ, टूटी सड़कें, सड़कों पर बजबज़ाती नालियां व सीवर और जलभराव की समस्याएँ —सब पीछे छूट गईं।* मुफ्त सुविधाओं का लालच देकर जनता को वोट बैंक में बदलने की इस नीति ने शहर की प्रगति को धीमा कर दिया।
प्यास से बेहाल दिल्ली, पानी के लिए सौदेबाज़ी
प्याज़ के मुद्दे पर सरकार बदलने वाली जनता को तब यह नहीं पता था कि कुछ दशक बाद उन्हें पानी जैसी मूलभूत ज़रूरत के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। आज दिल्ली की हालत यह है कि अमीर लोग तो मिनरल वॉटर खरीद सकते हैं, लेकिन गरीब तबके को गंदे पानी या टैंकर माफिया के रहमोकरम पर जीना पड़ता है। मुफ्त योजनाओं के नाम पर असली समस्याओं से ध्यान भटकाने का खेल इतने सालों तक चलता रहा, लेकिन पानी की किल्लत ने जनता को मजबूर कर दिया कि वे अपनी भूल सुधारें।
27 साल बाद जनता ने समझी हकीकत
दिल्ली में पानी की समस्या कोई एक दिन में नहीं आई, यह धीरे-धीरे बढ़ी और अब विकराल रूप ले चुकी है। जनता ने जब देखा कि सिर्फ नारेबाजी और मुफ्त योजनाओं से उनकी असली परेशानियाँ हल नहीं हो रहीं, तो उन्होंने दोबारा एक स्थिर और विकास-उन्मुख सरकार को सत्ता में लाने का फैसला किया। उन्होंने यह समझा कि केवल लोकलुभावन वादों से कुछ नहीं होने वाला, बल्कि ठोस नीतियों और योजनाओं की ज़रूरत है।
अब सरकार वही, पर सोच नई
27 साल पहले जिस सरकार को प्याज़ महँगा होने पर हटाया गया था, वही सरकार अब प्यास बुझाने के लिए वापस सत्ता में आई है। लेकिन इस बार जनता को उम्मीद है कि यह सरकार सिर्फ चुनावी जुमलों पर नहीं, बल्कि वास्तविक विकास कार्यों पर ध्यान देगी। अगर केंद्र और राज्य में एक ही विचारधारा वाली सरकार होती है, तो निर्णय लेने की प्रक्रिया तेज़ होगी और दिल्ली को असली विकास की राह पर लाया जा सकेगा।
पानी प्याज़ से ज्यादा जरूरी है!
इतिहास से सीखना ज़रूरी है। 27 साल पहले प्याज़ की वजह से जो गलती हुई, उसे अब जनता ने सुधार लिया है। लेकिन यह याद रखना होगा कि भविष्य में कोई भी फैसला तात्कालिक भावनाओं में बहकर नहीं लिया जाना चाहिए। मुफ्त की राजनीति और लुभावने वादों के जाल से बाहर निकलकर असली विकास को प्राथमिकता देनी होगी। *दिल्ली सिर्फ भारत की राजधानी नहीं, बल्कि इसकी आत्मा है, और इसे सही दिशा में ले जाना हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी है।*
“लालच बुरी बला है, मुफ्त की रेवड़ियों से दिल्ली का विकास संभव नहीं!”
अनूप सिंह, संरक्षक
दैनिक जनजागरण न्यूज़
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