Breaking

मंगलवार, 7 जनवरी 2025

आलेख : बोरवेल बने काल

एक समय था जब हमारे बुजुर्ग कहते कि बच्चों नाखून काट कर भी किसी कागज की पुड़िया में लपेटकर कूड़े में डालना कि कहीं ऐसा ना हो कोई चिड़िया इन्हें चावल समझ कर खा ले, और किसी जीव की जान हमारे कारण चली जाए। हमें बचपन से ही सिखाया जाता रहा है कि कोई नुकीली चीज, कोई कांच का टुकड़ा या कोई भी ऐसी चीज हम कूड़े में ना डालें जिससे कोई गाय या कुत्ते इसे खा लें और उनकी जान चली जाए। मेरे दादाजी तो यहां तक कहते थे कि बेटा कभी भी किसी बैठी हुई गाय या भैंस को मत उठाना क्योंकि वो अपने भारी शरीर के कारण बहुत मुश्किल से बैठती है।

बताओ ऐसे संस्कार जिस देश के घर घर में में बचपन से दिए जाते रहे हो, वहां बोरवेल में गिरने के कारण गई हुई बच्चों की जानों का आखिर जिम्मेदार कौन है?

अभी पिछले दिनो जयपुर में एक मासूम बच्ची  की जान बोरवेल में गिरने के कारण जान चली गई, जिसको अथक प्रयासों के बावजूद भी बचाया न जा सका। हमारे  देश में इस तरह की यह कोई पहली  घटना नहीं थी कि बोरवेल से किसी बच्चे की जान गई हो।

हमारे देश में बोरवेल  को लेकर लापरवाही इस कदर बढ़ गई है की जान की कोई कीमत ही नहीं है ।जब भी कोई ऐसी खबर सामने आती है दो-तीन दिन लोग सोचते हैं,समझते हैं फिर वापस अपने में मस्त हो जाते हैं, आखिर क्यों और कब तक कितने बच्चों की जानें हम हमारी लापरवाही के कारण जाने देंगे। 

हमारे देश में आज तकरीबन 1.7 करोड़ बोरवेल खुले हैं। देश के ना जाने  कितने ही नौनिहाल उनकी भेंट चढ़ चुके हैं। बड़े खुशकिस्मत समझो उन मां-बाप को जो बोरवेल में गिरे हुए अपने बच्चों को कभी  सेना की मदद से तो कभी पुलिस की मदद से वापस अपनी गोद में पा सके हैं। पर जरा उस  पीड़ा को  तो समझो बोररेल में गिरे बच्चे या इंसान की, उसका एक-एक पल कितनी पीड़ा में गुजरा होगा। सोच कर देखो यदि हमें कोई जबरदस्ती किसी अंधेरे कमरे में बंद कर दे, तो हमें कितनी पीड़ा होगी, हमें कितनी परेशानी होगी, हम पल भर में उससे  बाहर निकलना चाहेंगे और एक मासूम बच्चा जो हंसता खेलता बाहर घूम रहा था अचानक बोरवेल में गिर जाए और तड़प तड़प कर अपनी उसमें जान दे दे।  मैं पूछती हूं कि क्या यह इंसानियत की मौत नहीं है?

सरकार और न्यायालय भी निर्देश दे चुकी है कि कार्य के तुरंत बाद सभी बोरवेल बंद किए जाएं। पर आखिर कब तक हम यूं लापरवाही करते रहेंगे, आखिर क्यों हम जिम्मेदार नहीं होते? क्यों हम इन बोरवेल को काल बनने से नहीं रोक पा रहे हैं? जरा सोचो और इस  तरफ कदम बढ़ाओ कि आगे कोई बोरवेल हमारे बच्चों के लिए काल साबित ना हो।

ऋतु गुप्ता 
खुर्जा बुलंदशहर 
उत्तर प्रदेश

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Comments