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शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024

कनाडा में धड़कता भारतीय दिल : टोरंटो गाथा 2024 - (भाग 9) - डॉ. अशोक श्रीवास्तव

● ज़ेर्राड इंडिया बाज़ार का मोती महल, स्वाद एवं प्रतिष्ठा में किसी मायने में कम नहीं है दरियागंज के मोती महल से
 
पुरानी दिल्ली व दिल्ली के पुराने के लोग दरिया गंज के विश्व प्रसिद्ध मोती महल रेस्तरां के बारे में ज़रूर जानते होंगे..अगर आप लालकिला से दरिया गंज आयें तो गोलचा सिनेमा हाल से पहले और दरियागंज सब्जी मंडी के बिल्कुल करीब करीब 77 वर्ष से बड़ी शान से चला रहा मोती महल, आज भी खाने के शौकीन लोगों की आकर्षित करता है.. इसी तरह टोरंटो के ज़ेर्राड इंडिया बाज़ार का मोती महल रेस्तरां भी पिछले करीब 50 वर्षों से यहाँ के लोगों के लिए अच्छे चटकारे वाले खाने की चाहत बना हुआ है. पूरे टोरंटो में अगर किसी का मन है ‘छोले भठूरे’ खाने का का तो मोती महल के छोले भठूरे ही पहली पसंद हैं. हम जब वहां पर मिठाई लेने गये तो हमारे सामने अधिकतर लोगों ने छोले भठूरे का ही आर्डर दिया. जब यह बड़े फूले फूले भठूरे दिखाई पड़े तो हमारी भी जबान ललचाने लगी लेकिन मज़बूरी यह थी की बस कुछ देर पहले ही भोजन किया था...और भठूरे का साइज़ देख कर हिम्मत नहीं पड़ी की पूरा खा भी पायेंगे. इसलिये अगली बार पर छोड़ दिया. 

ज़ेर्राड इंडिया बाज़ार के बीचों बीच मोती महल अपनी गौरवान्वित गाथा स्वयं ही कह जाता है. 50 वर्ष पूर्व पंजाब से आये दम्पति *श्री गुरजीत एवं श्रीमती देवेंदर चड्ढा जी* ने उस समय भारतीय खाने और खासकर पंजाबी, मुगलई कहने की मांग को परखते हुए टोरंटो में पहला भारतीय भोजनालय खोला और उसका नाम दिया ‘मोती महल’. श्रीमती देवेंदर के हाथों से तैयार भोजन और विशेषकर छोले भठूरे को दिन दुगनी रात चौगनी शोहरत मिलने लगी. दक्षिणी एशिया के लोग अधिकतर मसालेदार खाने के लिए आने लगे और मोती महल चल पड़ा. ज़ेर्राड इंडिया बाज़ार में पहले एक सिनेमा हाल होता था जिसका नाम था ‘नाज़’ जहाँ पर बॉलीवुड व अन्य भारतीय फिल्मे देखने के लिए लोग मिस्सिसगा. ब्रहमटन, मिल्टन इत्यादि जगह से लोग आते थे और फिल्म देखने के बाद मोती महल का भोजन उनका लक्ष्य होता था. उस सिनेमा हाल के बंद होने के बाद थोडा असर तो पड़ा लेकिन जब अन्य शहरों में भी भारतीय भोजनालय खुलने लगे तो यहाँ पर भी असर अच्छा खासा पड़ा और लोगों की आमद कम होती हई. फिर थोड़े दिनों के बाद लोगों को मोती महल के जायके के याद आने लगी, शायद वो बात उन रेस्तरां में नहीं मिल पाई जो यहाँ चड्ढा दम्पति के हाथों में और आत्मीय  व्यवहार में थी. जब मैंने यहाँ पर कई लोगों से बातों बातों में मोती महल का ज़िक्र किया तो कोई भी ऐसा नहीं था जो की इसको नहीं जनता था बल्कि सभी ने यही कहा की जब हमे अपने अमृतसरी छोले भठूरे की हुडक उठती है तो सीधे मोती महल पहुच जाते हैं.

मोती महल का प्रवेश द्वार ही बहुत आकर्षक है,  इसके द्वार पर लिखे लाल रंग से  लिखा मोती महल और उस पर अंकित आकृति आपको किसी प्राचीन मुगल कालीन इमारत की झलक दिखलाता है और अंदर प्रवेश करते है दिल्ली की किसी पोश कॉलोनी के पुराने तरह के मिठाई की दुकान और उसके अंदर चल रहे रेस्तरां की याद दिला देगा. आरम्भ में खाने की बहुत सारी टेबल और कुर्सियां हैं फिर मिठाई रखने के लिए बड़े बड़े रेफ्रीजरेटड शो केस जिसमे आपको अनेक तरह की शुद्ध भारतीय मिठाईयां जैसे काजू कतली, कलाकंद, काला जामुन, रसमलाई, मिल्क केक, मोतीचूर के लड्डू, बेसन के लड्डू इत्यादि दिखाई पड़ेंगी जिसको देख कर लगेगा की आप अपनी शहर की मिठाई की दुकान पर ही खड़े हैं..यहाँ पर मिठाई किलो नहीं पौंड के हिसाब से मिलती है. 

यहाँ खाने में विविधता भी लाजवाब है, दिल्ली, मुंबई, अमृतसर, गुजराती, राजस्थानी, दक्षिण भारत के स्ट्रीट फ़ूड का समावेश आपके लिए हाज़िर है जैसे छोले बठुरे के साथ राज कचोडी, कचोडी चना, भेल पुरी, गोल गप्पे, भल्ला-पापडी चाट, दही पूरी, प्याज की भजिया, चना समोसा, समोसा चाट, सेव पुरी, आलू की टिक्की, कई तरह की बिरयानी, चिकन समोसा, सांभर डोसा, इडली सांभर, आलू परांठा, चिकन कीमा परांठा, प्याज का परांठा, पनीर पुदीना परांठा रुलामी रोटी के साथ एक लम्बी सूची है व्यंजनों की.  हां बादशाही फलूदा और मलाईदार लस्सी का ज़िक्र न हुआ तो सब बेकार है..इसके इलावा दोपहर एवं रात्रि के पूर्ण वेज-नॉन वेज भोजन का भी भरपूर इंतजाम है. रेस्तरां के चारो तरफ लगी व्यंजनों के फोटो आपको और ललचा देते हैं.. मुझे उम्मीद है मेरा इतना ही व्याखान काफी है टोरंटो के इस मोती महल के बारे में बताने के लिए हाँ एक विशेष बात की कुछ समय के बाद जब चड्ढा दम्पति जब यहाँ से सेवा निवृत होंगे तब इसका सारा कार्यभार इनके युवा पार्टनर मीत पटेल के हाथों पर आ जायेगा..मीत पटेल वही हैं जो यहाँ 2016 में मोती महल में एक डीश वॉशर की नौकरी पर आये थे और अपनी मेहनत, व्यापारिक सूझ बूझ और व्यवहार  अब इसके मालिक से बनने जा रहे हैं...कहते हैं जहाँ चाह वाह राह है.

चलते चलते दरिया गंज के मोती महल के बारे में कुछ अहम जानकरी साझा करना चाहूँगा..1947 में श्री कुंदन लाल गुजराल, ठाकुर दास मग्गू और कुंदन लाल जग्गी ने मिलकर इसकी शुरुआत करी थी..यह वही कुंदन लाल गुजराल हैं जिन्होंने 1947 में पहली बार ‘बटर चिकन’ को ईज़ाद कर इतिहास रचा और आज दुनिया के लाखों रेस्तरां में बटर चिकेन बनाया जाता है..1947 से पहले पेशावर में मोखा सिंह लम्बा जी मोती महल को चलाते थे. बटर चिकन के साथ दाल मखनी, पनीर मखनी एवं तंदूरी चिकन भी शुरुआत भी मोती महल दरिया गंज से हुई है. मोनीश गुजराल ने 120 आउटलेट के साथ इसको विश्व व्यापक चैन में ढाला है, दिल्ली के आस पास मोती महल के नाम से 27 रेस्तरां हैं वहीँ..कनाडा के ओंटारियो प्रांत जिसमे टोरंटो भी आता है करीब चार मोती महल है..लेकिन ज़ेर्राड इंडिया बाज़ार के मोती महल का कोई जवाब नहीं है..आना, तो खाना, अपने आप मालूम पढ़ जायेगा की हम तारीफ यूंही नहीं कर रहे हैं.

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