प्रयागराज इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है की एकमात्र चश्मदीद गवाह के बयान पर सजा का आदेश तभी दिया जा सकता है जब उसकी गवाही पूरी तरह से विश्वसनीय हो। चश्मदीद गवाह के बयान में विरोधाभास उसकी घटनास्थल पर उपस्थित को संदिग्ध बनाता है। ऐसी स्थिति में एकमात्र गवाह के बयान पर सजा नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने कानपुर नगर के बिंदकी थाना क्षेत्र के सीपई गांव में वर्ष 2001 में हुई हत्या की घटना में उम्रकैद की सजा पाए नौ अभियुक्तों को दोष मुक्त करते हुए सजा से बरी कर दिया है।अभियुक्त झंडे यादव उर्फ शिवकुमार सहित अन्य नौ अभियुक्तों की अपील पर न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति समिति गोपाल की खंडपीठ ने यह आदेश दिया। अपीलार्थी की ओर से अधिवक्ता आशुतोष कुमार पांडे ने बहस की। सजा का फैसला रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को नजर अंदाज किया। अभियुक्तों द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत की गई जुर्म स्वीकारोक्ति को इसलिए महत्व नहीं दिया जा सकता है क्योंकि मजिस्ट्रेट ने अभियुक्तों का बयान रिकॉर्ड करने से पूर्व उनको इसके परिणाम की चेतावनी नहीं दी थी। न हीं उन्हें यह समझाया था कि यह बयान उनके खिलाफ पढ़ा जा सकता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विभागीय गलती के कारण अधिक वेतन निर्धारण मामले में सीएमओ इटावा की ओर से जारी वसूली कार्रवाई पर रोक लगा दी है और पक्षकारों को जवाब व प्रतिउत्तर दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने इस याचिका को अन्य विचाराधीन याचिकाओं के साथ निस्तारण के लिए सूचीबद्ध करने का भी निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने यह आदेश नीरज दुबे की याचिका पर अधिवक्ता गणेश मिश्र व वरुण मिश्र को सुनकर दिया है.
मंगलवार, 24 सितंबर 2024
उम्रकैद की सजा काट रहे 9 आरोपियों को HC ने किया बरी गवाह के बयान को बताया विरोधाभास

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