लेखक: कमल मानव साहित्यकार, शाहजहांपुर।
संकल्प, दृढ़ विश्वास, देश पर बलिदान हो जाने की भावना आत्म विश्वास और साहस बड़े से बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के आधारभूत सिद्धांत हैं।देश भक्ति का स्वाभिमानी जज्बा अपने ध्येय के लिए कोई मजबूरी , गरीबी और जीवन की तमाम जटिल समस्याएं नहीं देखता। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में यही जजवा था बलिदानी पंडित बाबूराम शर्मा का जिन्होंने कारागार की अमानवीय यातनाएं झेलते हुए देश के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी।
16अक्तूबर 1909 को पंडित रामेश्वर दयाल मिश्र और माता सुमित्रा देवी की प्रथम संतान के रूप में शाहजहांपुर की सदर तहसील के ग्राम अख्त्यारपुर बघौरा में जन्मे पंडित बाबूराम बाल्यकाल से ही प्रखर मेधा, शारीरिक बल और साहस की प्रतिमूर्ति थे। उनका परिवार नितांत धार्मिक और कर्तव्यनिष्ठ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा उनकी माता और दंडी संत स्वामी कृष्णा आश्रम के द्वारा हुई। जूनियर हाई स्कूल कांट में बरनाक्युलर करते समय ही वे पंजाब के एक क्रांतिकारी डा o बलबीर सिंह के संपर्क में आए और कांग्रेस के युवक संघ का नेतृत्व करने लगे। उन्हें जनपद में संगठन का कार्य सौंपा गया जिसे उन्होंने गांधी जी द्वारा चलाई जा रही प्रत्येक गतिविधि को चलाकर जिले और विशेषकर कांट और जलालाबाद क्षेत्र में उन्होंने आंदोलनकारियों का एक बड़ा संगठन खड़ा कर दिया।
22अप्रैल 1941 को मैजिस्ट्रेट एहसान अली ने व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने तथा सत्याग्रहियों का संगठन बनाने के साथ ही सरकार का हर प्रकार विरोध करने पर धारा 38 (1) के तहत 6 माह कठोर कारावास और 75 रुपए जुर्माना की सजा सुनाई। जुर्माने की धनराशि न अदा करने पर उन्हें तीन माह का अतिरिक्त कारावास दिया गया। उस समय जेल आंदोलनकारियों से खचाखच भरी थी। आंदोलन करियों के साथ पूर्णतयः अमानुषिक व्यवहार किया जाता और भूखा रखा जाता। आए दिन किसी न किसी घटना को लेकर सत्याग्रही अनशन करते थे। वे 9 माह का कठोर कारावास समाप्तकार जनवरी 1942 में अपने गांव लौटे और पुनः कांग्रेस के आदेशों के परिपालन में व्यस्त हो गए।इस दौरान विदेशी वस्त्र बहिष्कार, चरखा आंदोलन, अछूतोद्धार तथा समाज के लोगों को एकताबद्ध करने उन्हें स्वतंत्रता का मूल्य समझाने आदि के विभिन्न कार्यक्रम चलते रहे। 7अगस्त 1942 को गांधी जी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो के नारे के साथ भारत छोड़ो आंदोलन का प्रारंभ किया जिसकी आंच शाहजहांपुर में भी तेजी से आई। प्रशासन ने चिन्हित आंदोलनकारियों को नजरबंद करने का निर्णय लिया।
9अगस्त1942 को पंडित बाबूराम शर्मा को थाना कांट पुलिस के एक दरोगा व पांच सिपाहियों द्वारा फूलों की हथकड़ी डालकर, फूलमाला पहनाकर ढोल बजवाते हुए आसपास के गांवों की भारी भीड़ के सामने चालाकी से गिरफ्तार कर उसी दिन शाहजहांपुर जिला जेल में नजरबंद कर दिया गया। स्थानीय पुलिस की यह चाल उन्हें सम्मानजनक तरीके से बिना किसी प्रतिरोध के संपन्न हो गई । भारत छोड़ो आंदोलन एक निर्णायक आंदोलन था। जेल आंदोलनकारी नजरबंद सेनानियों से भरी थी। राजनैतिक बंदियों से कैदियों से बदतर व्यवहार किया जाता, उन्हें मारा पीटा जाता और जघन्य अपराधियों के बीच में रहने को विवश किया जाता था। बहुत अधिक संख्या हो जाने के कारण कुछ आंदोलनकारियों को अन्य जेलों में स्थानांतरित किया गया। पंडित जी अपने साथियों में गीता पर प्रवचन कर आत्मा की अमरता का सिद्धांत समझाकर आंदोलनकारियों का मनोबल बढ़ाते और देश के स्वतंत्र होने की आशा करते।
स्वतंत्रता सेनानी श्रीमुक्ताप्रसाद और श्री बसंतलाल खन्ना के अनुसार व्यापक असरदार नेतृत्व और जेल के अंदर से बाहरी गतिविधियां चलाने के संदेह में उन्हें जेल में धीमा जहर दिया जाने लगा। अंततः मात्र 36 वर्ष की अवस्था में बिना किसी बीमारी के अच्छी कद काठी वाले इन बलिष्ठ महापुरुष की जेल प्रशासन ने धीमा जहर देकर हत्या कर दी ।यही कारण था की इन शहीद का शव उनके परिवार को नहीं सौंपा गया। शहर के मोहल्ला मोती चौक निवासी सेठ बनबारीलाल को तत्काल शवदाह कराने की शर्त पर उनका शव सौंपा गया।पश्चात खन्नौत के टेढाघाट पर शहर के कुछ गणमान्य लोगों और उनके परिजनों की उपस्थिति में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
अत्यंत सामान्य परिवार से देशभक्ति का सर्वोच्च बलिदान देने वाले पंडित बाबूराम शर्मा शाहजहांपुर के चौथे और स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम शहीद के रूप में सदैव याद किए जायेंगे। उनका स्मारक उनके पैतृक ग्राम अख्त्यारपुर बघौरा में स्थित है तथा उनके नाम से ग्राम के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालय संचालित हैं।
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