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गुरुवार, 30 मई 2024

भीषण गर्मी का जाप करने से गर्मी से नहीं मिलेगी राहत : डॉ0 के0 एन0 तिवारी

भीषण गर्मी का जाप करने से गर्मी से राहत नहीं मिलेगी, हमें अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होना चाहिए

 10-15 दशक पूर्व के काल को अनुभव करें तो देखेंगे कि प्रकृति मानव - जीवन, खेती-बारी सबके लिए सर्वथा अनुकूल थी, समय पर वर्षा (वारिधि मांगे देहि जल), मानव जीवन के अनुकूल तापमान, सर्दी-गर्मी, निस्संदेह वह आनन्दमय समय जो बीत चुका है, वह लौट नहीं सकता। उसका अनुभव  और उस पर विश्वास करना नयी पीढी के लिए कठिन हो सकता है। हर मौसम कितना सुहावना और सुखमय रहता था, वह अब इतिहास हो गया। 

अपने आठ दशक के ग्रामीण जीवन जीने की ललक, कठिनाई और उसके सुखद दीर्धकालिक  अनुभव के अनुसार  कह सकता हूं कि तब के गांव और अबके गांव  में बड़ा बदलाव  हो गया है। तब सुख सुविधाओं का अभाव था परन्तु लोगों में आपसी चारा, सद्भाव, सहयोग और हार्दिक संवेदनशीलता, साहचर्य का भाव बेमिसाल था।
 गांव का वातावरण, आज की भौतिक सुविधाओं से कोसों दूर था। भौतिक संसाधनों के अभाव की जिन्दगी जीने के बावजूद गांव के लोग सर्वथा चिन्तामुक्त थे। लोग कितने प्रसन्न और सन्तुष्ट दिखते थे, जिसका सही ग्यान शायद गूगल गुरू भी नहीं करा सकते। इसीलिए तो एक महाकवि ने लिखा "अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है, क्यों न इसे सबका मन चाहे"। 
भौतिक सुख सुविधाएं जुटाने की प्रतियोगितात्मक प्रव्रृति, प्राकृतिक संसाधनों के निर्मम  दोहन और मशीनीकरण को बढावा देकर हम विकास के दावे की कितनी भी ढोल पीट लें,  परन्तु जलवायु परिवर्तन के कारण प्रकृति का दिनों-दिन बढता निष्ठुर प्रहार हमारे जीवन को कितना कठिन बनाता जा रहा है, यह  केवल चिन्ता का विषय  नहीं है, बल्कि इस परिस्थिति से कैसे पार पाया जा सके यह नितान्त विचारणीय है। 
क्योंकि इस स्थिति के लिए हम यानी समस्त समाज की सुविधाजनक अव्यवहारिक संसाधनों को जुटाने की होड और प्रकृति के साथ छेडछाड की ढिठाई ने ही वैश्विक तपन और जलवायु परिवर्तन की वीभत्स समस्या को जन्म दिया है। 
पहले हमने प्रकृति को सताया, अब प्रकृति हमें सता रही है, यह तो स्वाभाविक ही है, और हो भी रहा है। प्रकृति के साथ अनवरत छेडछाड, अवैज्ञानिक और असंवैधानिक विकास का प्रतिफल भोगने को हम विबस हैं। 

आदमी की लालच, समृद्धि का अविवेकी प्रदर्शन और नासमझी  सब कुछ विनाश का कारण बन जाता है। 
इस समय आसमान से बरसती निष्ठुर आग, असमय बूडा बाढ़ आदि की समस्याओं से हम वाकिफ हैं। इससे हमें सबक सीखना चाहिए और अपने जीवन जीने के ढंग में यथासंभव बदलाव करना चाहिए, प्रकृति का आदर सम्मान करना चाहिए अन्यथा बहुत देर हो जाएगी। 

सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया

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