Breaking

मंगलवार, 23 जनवरी 2024

"अयोध्या राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद मोदी बोले- सदियों की परीक्षा के बाद हमारे राम आ गए..."

अयोध्या लंबे बरसे के बाद आखिरकार अयोध्या में रामलला विराजमान हो गए हैं। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि मैं गर्भगृह में ईश्वरीय चेतना का साक्षी बनकर आपके सामने उपस्थित हुआ हूं।प्रधानमंत्री जी के हाथों प्रतिष्ठा होने की बात थी। यह स्वाभाविक भी था। यह संभव हो सका, इसके अनेक कारण हैं। अनेक कारण मिलकर एक विशिष्ट स्तर पर पहुंच जाते हैं। इस प्रकार का परिवर्तन लाने के लिए जीवन को साधना पड़ता है। सनातन की अंत:करण की आवश्यकता के रूप में हमें प्रधानमंत्री प्राप्त हुए हैं। यह देश का नहीं, संपूर्ण विश्व का सौभाग्य है कि उनकी उपस्थिति हमें प्राप्त हुई। मुझे इस बात का आश्चर्य भी हुआ, जब 20 दिन पूर्व मुझे यह समाचार मिला कि प्रधानमंत्री जी को इस प्रतिष्ठा के लिए स्वयं अपने लिए क्या-क्या सिद्ध करना चाहिए, इसकी नियमावली लिखकर उन्हें भेजना है। जिस तरह का हमारा राजनीतिक माहौल हो, कोई किसी भी समय आकर कहीं भी अनुष्ठान करके चला जाता है, लेकिन यहां भगवान श्रीराम की प्रतिष्ठा करनी है। समस्त जीवन आदर्शों के प्रतीक राम हैं। इसलिए महान विभूति को यह लगा कि मैं अपने को भी साध लूं। कर्म, वचन और वाणी से खुद को सिद्ध और शुद्ध बनाऊं। उसका मार्ग तप ही है। तप से ही विशेष परिशुद्धि होती है। आज मुझे आपको बतलाते हुए अंत:करण गदगद होने की अनुभूति हो रही है। हम लोगों ने महापुरुषों से परामर्श करके लिखा था कि आपको तीन दिन का उपवास करना है, लेकिन आपने 11 दिन का संपूर्ण उपोषण किया। हमने एक समय अन्न छोड़ने को कहा था, उन्होंने अन्न का ही त्याग कर दिया। मैं तार्किक हूं। आपकी परमपूजनीय माताजी से मिलकर मैंने यह पुष्टि भी की थी कि आपका अभ्यास चालीस वर्षों का है। हमने कहा था कि इन दिनों में आपको विदेश प्रवास नहीं करना चाहिए ताकि सांसरिक दोष न लगें। उन्होंने विदेश प्रवास टाल दिया। दिव्य देश का प्रवास किया। नासिक से शुरू किया, रामेश्वरम गए। इन स्थानों पर जाकर मानो वे निमंत्रण दे रहे थे कि आइए दिव्य आत्माओं पधारिए और आशीर्वाद दीजिए। हमने केवल कहा था कि तीन दिन तक भूमि शयन करना चाहिए। आप 11 दिनों से इस कड़कड़ाती ठंड में भूमि शयन कर रहे हैं। मित्रो! ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था, तब उन्होंने तप तप इति कहा था। लेकिन आज तप की कमी है। इस तप को हमने प्रधानमंत्री में साकार देखा। मुझे एक राजा याद आता है। उस राजा का नाम छत्रपति शिवाजी महाराज था। लोगों को पता नहीं है शायद। मल्लिकार्जुन दर्शन के लिए जब वे गए, तब तीन दिन उपवास किया। तब राजा ने कहा कि मुझे संन्यास लेना है, मैं शिवजी की आराधना के लिए जन्मा हूं। उस प्रसंग में उनके ज्येष्ठ मंत्रियों ने उन्हें समझाया और कहा कि भगवत कार्य भी सेवा ही है। भगवती जगदंबा ने प्रधानमंत्री को भी हिमालय से लौटाकर कहा कि जाओ भारत माता की सेवा करो। कुछ स्थानों पर शीष अपने आप झुक जाता है। समर्थ रामदास स्वामी ने शिवाजी के लिए लिखा था- निश्चयाचा महामेरू। बहुत जनासी आधारू। अखंडस्थितीचा निर्धारू। श्रीमंत योगी।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Comments