● लोक-साहित्य में कृषि-विमर्श पर शोध करेंगे लोक-अध्येता श्री सिंह
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अयोध्या। मसौधा ब्लाक क्षेत्र के ग्राम मैनुद्दीनपुर निवासी दया भान सिंह को संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की सीनियर फ़ेलोशिप के लिए चुना गया है। सामुदायिक सेवा और कृषि कार्य में संलग्न श्री सिंह को इस सम्बन्ध में संस्कृति मंत्रालय के सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र नई दिल्ली के निदेशक ऋषि वशिष्ठ द्वारा प्रेषित एक पत्र के माध्यम से अवगत कराया गया है।
उल्लेखनीय है कि भारतीय संस्कृति के वैविध्यपूर्ण संदर्भों में उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों को फेलोशिप दिए जाने की योजना के तहत संस्कृति मंत्रालय द्वारा श्री सिंह का चयन हुआ है। देश की अत्यंत प्रतिष्ठित इस फेलोशिप के लिए श्री सिंह को बीस हज़ार रुपये प्रतिमाह की अध्येतावृत्ति प्रदान की जाएगी। यह शोध-अध्ययन विषय-विशेषज्ञद्वय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् उत्तर प्रदेश के संयुक्त निदेशक (कृषि) व प्रख्यात कृषि विज्ञानी डॉ. धीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव तथा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित कृषि संचार विशेषज्ञ यदुनाथ सिंह मुरारी के सम्यक निर्देशन में किया जाएगा।
संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रेषित पत्र के अनुसार इस फेलोशिप के तहत श्री सिंह को दो वर्षों में अपना शोधकार्य पूरा कर प्रस्तुत करना होगा। मंत्रालय द्वारा अधिसूचित शोध का शीर्षक ‘लोक-साहित्य में कृषि-विमर्श' है।
ज्ञात हो कि संस्कृति मंत्रालय की सीनियर फेलोशिप की गौरवमयी उपलब्धि अर्जित करने वाले श्री सिंह डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के प्रौढ़, सतत एवं प्रसार शिक्षा विभाग में लम्बे समय तक अपनी सेवाएँ दी हैं। वे मैनुद्दीनपुर निवासी श्री बब्बन सिंह के कनिष्ठ पुत्र है। देश की अति प्रतिष्ठित यह फेलोशिप मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि परम्परा लोकमानस से जुड़ी हुई है। लोकजीवन में कृषि-संस्कृति लोक-साहित्य के विभिन्न स्वरूपों में अभिव्यक्त हुई है। कृषि ही लोकमानस की संस्कृति है। इसमें माटी की गंध और रोटी की सुगंध के मध्य आबद्ध पावन संस्कारों के अक्षुण्ण सूत्र विद्यमान हैं।
अपने अध्येय विषय पर चर्चा करते हुए श्री सिंह ने बताया कि किसान अपनी अभिलाषाएँ, महत्त्वाकांक्षाएँ और संवेदनाओं को विभिन्न लोकगीतों, कहावतों, लोककथाओं, बुझौव्वलों, लोक-अल्पनाओं आदि के माध्यम से व्यक्त करता रहा है। पारम्परिक कृषि उद्यम अंतर्गत निरवाही, कटनी, चैता, रोपनी आदि लोकगीतों के माध्यम से उसके मनोभाव प्रस्फुटित होते हैं। वस्तुतः लोक-साहित्य कृषि संस्कृति के माध्यम से सतत संवहित होता है। श्री सिंह ने बताया कि लोककथा, कहानी, काव्य, पर्व-त्योहारों के गीत, संस्कारों के गीत आदि में भारतीय कृषि संस्कृति की झलक मिलती है। उन्होंने कहा कि लोक-साहित्य में कृषि विषयक सारगर्भित संदर्भों का सम्यक अनुशीलन इस शोध के तहत किया जाएगा।
लोक-समुदाय के समर्पित अध्येता श्री सिंह को संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा सीनियर फ़ेलोशिप प्रदान किए जाने पर साहित्यकारों, प्रगतिशील किसानों, विचारकों, समाजसेवियों सहित समाज के प्रबुद्ध वर्ग के लोगों ने हर्ष व्यक्त करते हुए बधाई दी है।
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