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शनिवार, 20 दिसंबर 2025

विकसित भारत G RAM G 125 दिन के रोजगार की गारंटी V B - G RAM G; अब गाँव बनेंगे देश की ग्रोथ की इनकम


लेखक :  शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय ग्रामीण विकास, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री

भारत गांवों का देश है। पूज्य बापू ने भी कहा था कि असली भारत गांवों में बसता है। गांव को विकसित बनाये बिना विकसित भारत का संकल्प साकार नहीं हो सकता। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में गांवों को विकसित, आत्मनिर्भर, सशक्त और संपन्न बनाने के लिए कई योजनाएँ चल रही हैं। हाल ही में संसद में पारित “विकसित भारत - जी राम जी’ बिल इसी दिशा में ऐतिहासिक कदम है। 

पिछले कई दशकों से देश में कई सरकारें आईं और सभी ने ग्रामीण रोज़गार की गारंटी देने के लिए कई प्रयास किए हैं। मनरेगा भी उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह रही कि कागज़ों पर तो योजनाएं बहुत अच्छी लगती थीं, मगर गांवों में, खेतों-खलिहानों में, मेरे गरीब भाइयों-बहनों को वह हक नहीं मिल पाता था जिसका वादा किया गया था। फाइलों में काम दिखता था, पर ज़मीन पर मज़दूर भूखा सोता था। कहीं भ्रष्टाचार था, कहीं व्यवस्था की कमज़ोरी थी, कहीं समय पर भुगतान नहीं होता था। और यह हमारी पीड़ा रही है।

आज जब विकसित भारत G RAM G बिल की बात हो रही है, तो स्वाभाविक रूप से कुछ साथियों के मन में सवाल उठते हैं। वे पूछते हैं कि यह पुरानी व्यवस्था को कमज़ोर तो नहीं करेगा? क्या गरीब मज़दूरों के अधिकार छिन तो नहीं जाएंगे? मैं इन चिंताओं का सम्मान करता हूं। किसी भी बड़े सुधार पर बहस होनी चाहिए, सवाल उठने चाहिए। यही लोकतंत्र की ताकत है। लेकिन साथ ही मैं आपसे निवेदन करूंगा कि इस नए विधेयक को खुले मन से, बिना किसी पूर्वाग्रह के पढ़िए और समझिए।
 
यह हर ग्रामीण परिवार को साल में 125 दिन के रोज़गार की पक्की कानूनी गारंटी देता है। सिर्फ 100 दिन नहीं, बल्कि 125 दिन। और अगर 15 दिन के अंदर काम नहीं मिला, तो बेरोज़गारी भत्ता मिलेगा। मनरेगा के ज़माने में जो दिक्कतें थीं, जिनकी वजह से लोगों को उनका हक नहीं मिल पाता था, उन्हें हटा दिया गया है। 

गांव का विकास सिर्फ रोज़गार देने से नहीं होता, बल्कि गांव में ऐसी अधोसंरचना बनाने से होता है जो आने वाली पीढ़ियों के काम आएं। पानी के तालाब, सड़कें, सिंचाई की व्यवस्था, बाढ़-सूखे से बचाव के काम – ये सब जब मज़दूरी के साथ-साथ होंगे, तो गांव खुद-ब-खुद मज़बूत होगा। यही तो स्थायी विकास है। 

कुछ लोग कहते हैं कि VB– G RAM G मांग-आधारित रोज़गार को कमज़ोर करता है। लेकिन इस विधेयक को ध्यान से पढ़िए, हर धारा को समझिए। धारा 5(1) साफ-साफ कहती है कि हर उस ग्रामीण परिवार के पात्र वयस्क सदस्य को कम से कम 125 दिन का गारंटीकृत रोज़गार मिलेगा। यह बिल मांग के अधिकार को कमज़ोर नहीं करता, बल्कि इसे और मज़बूत करता है।

कुछ साथी कहते हैं कि यह योजना रोज़गार की जगह संपत्ति बनाने को ज़्यादा अहमियत देती है। यह सोच ही गलत है। रोज़गार और गांव का विकास – ये दोनों एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं। विधेयक साफ तौर पर आजीविका की कानूनी गारंटी देता है, और साथ ही उस रोज़गार को ऐसे कामों से जोड़ता है जो गांव को मज़बूत बनाएं, जो स्थायी हों, जो आने वाली पीढ़ियों के काम आएं।

धारा 4(2) और अनुसूची में चार मुख्य क्षेत्र बताए गए हैं – पानी की सुरक्षा, बुनियादी ग्रामीण ढांचा, आजीविका से जुड़ा ढांचा, और प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के काम। सोचिए, जब गांव में तालाब बनेगा तो मज़दूर को मज़दूरी भी मिलेगी और गांव को पानी भी मिलेगा। जब सड़क बनेगी तो रोज़गार भी मिलेगा और गांव शहर से जुड़ेगा भी। 

कुछ लोग भ्रम फैला रहे हैं कि यह योजना सारी शक्ति केंद्र में ले आएगी, गांव का अधिकार छीन लेगी। यह पूरी तरह से गलत है। धारा 4(1) से 4(3) एकदम साफ कहती है कि सारे काम गाँव के स्तर पर तय होंगे, ग्राम सभा से मंज़ूरी लेनी होगी। ग्राम सभा – जहां गांव का हर व्यक्ति बैठता है, जहां गांव के लोग मिलकर फैसला लेते हैं – वही तय करेगी कि उनके गांव में क्या काम होना चाहिए, किस चीज़ की ज़रूरत है।

विधेयक ने पुरानी व्यवस्था की एक बड़ी कमी को दूर किया है – बिखराव को। पहले एक विभाग अपना काम करता था, दूसरा विभाग अपना काम करता था, दोनों के मध्य कोई तालमेल नहीं था। अब सारे काम विकसित भारत राष्ट्रीय ग्रामीण अवसंरचना स्टैक में जोड़े जाएंगे, ताकि एक साथ मिलकर योजना बने, एक साथ काम हो, और पूरी व्यवस्था स्पष्ट दिखाई दे। इससे न तो भ्रष्टाचार होगा, न दोहराव होगा, न पैसों की बर्बादी होगी। यह ऊपर से थोपा गया केंद्रीकरण नहीं है, बल्कि मिलकर काम करने का तरीका है। धारा 16, 17, 18 और 19 पंचायतों को, कार्यक्रम अधिकारियों को, ज़िला प्राधिकारियों को योजना बनाने, लागू करने और निगरानी का अधिकार देती हैं। 

एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठाया गया है – खेती के व्यस्त मौसम में अगर सारे मज़दूर सरकारी कामों में लग गए, तो किसान की फसल कौन काटेगा? यह सवाल बिल्कुल सही है, और विधेयक में इसका भी जवाब दिया गया है। धारा 6 राज्य सरकारों को अधिकार देती है कि वे साल में कुल साठ दिनों के लिए – जिसमें बुवाई और कटाई का समय आता है – पहले से ही घोषणा कर दें कि इन दिनों इस योजना के तहत काम नहीं होगा। इससे किसान को मज़दूर मिलेंगे, फसल समय पर बोई जाएगी, समय पर कटेगी। और सबसे अच्छी बात यह है कि धारा 6(3) राज्यों को यह छूट देती है कि वे ज़िला, ब्लॉक या ग्राम पंचायत स्तर पर अलग-अलग घोषणा कर सकें। क्योंकि हर इलाके की खेती-किसानी अलग होती है। कहीं धान की बुवाई जून में होती है, कहीं जुलाई में। कहीं गेहूं की कटाई अप्रैल में, कहीं मई में। यह लचीलापन यह पक्का करता है कि बढ़ी हुई रोज़गार गारंटी खेती में रुकावट नहीं, बल्कि सहयोगी बने। 

कुछ आलोचक पैसों की कमी की आशंका जताते हैं। वे कहते हैं कि राज्यों को कम पैसा मिलेगा। बिल की धारा 4(5) और धारा 22(4) साफ कहती हैं कि राज्यों के लिए बजट तय, पारदर्शी मापदंडों के आधार पर बांटा जाएगा। कोई मनमानी और भेदभाव नहीं होगा। जिस राज्य को जितनी ज़रूरत होगी, जहां जितना काम होगा, वहां उतना पैसा जाएगा। साथ ही, यह व्यवस्था राज्यों को महज़ काम करने वाली एजेंसी नहीं, बल्कि विकास का साझेदार मानती है। 

तकनीक से बाहर किए जाने की आशंकाएँ भी जताई गई हैं। कहा जाता है कि बायोमेट्रिक, मोबाइल ऐप – ये सब गरीब मज़दूर के लिए मुश्किल होंगे।  तकनीक का इस्तेमाल किसी को बाहर करने के लिए नहीं, बल्कि व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए किया जा रहा है। धारा 23 और 24 बायोमेट्रिक, जियो-टैग किए गए काम, रीयल-टाइम डैशबोर्ड और नियमित सार्वजनिक जानकारी को अनिवार्य बनाती हैं।

इससे क्या फायदा होगा? फर्जी हाज़िरी नहीं होगी, फर्जी लोगों के नाम पर पैसा नहीं खाया जाएगा, झूठे रिकॉर्ड नहीं बनेंगे। जो ईमानदार मज़दूर मेहनत करेगा, उसका पैसा सीधे उसके खाते में आएगा। बिचौलिए नहीं रहेंगे, भ्रष्टाचार नहीं रहेगा। यहाँ तकनीक को सख्त दरबान के रूप में नहीं, बल्कि मददगार के रूप में देखा गया है। अपवाद को संभालना, जिनके पास मोबाइल नहीं है उनकी मदद करना – यह सब इसके मूल डिज़ाइन में शामिल है।

धारा 20 ग्राम सभा द्वारा सामाजिक व्यवस्था को मज़बूत करती है, जिससे समुदाय की निगरानी और बढ़ती है। गांव के लोग खुद देखेंगे, जांचेंगे कि काम ठीक से हो रहा है या नहीं। तकनीक जवाबदेही को कमज़ोर नहीं करती, बल्कि मज़बूत आधार देती है। यह गरीब का दुश्मन नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का दुश्मन है।

यह ग्रामीण भारत के मेरे भाइयो-बहनों को सच्चा सशक्तिकरण देने की दिशा में एक ठोस और विश्वास से भरा कदम है। यह गांव के विकास का नया संकल्प है। यह उस भारत की नींव रखने का प्रयास है जहां हर गांव समृद्ध हो, हर हाथ को काम मिले, हर परिवार खुशहाल हो, और हर गरीब सम्मान के साथ जी सके। विकसित भारत का सपना तभी साकार होगा जब हमारे गांव विकसित होंगे। और VB–G RAM G उसी दिशा में एक मज़बूत, विश्वासभरा और ईमानदार कदम है।

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