भारत के जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों को प्रधानमंत्री मोदी की श्रद्धांजलि: स्मृति से विरासत तक
औपनिवेशिक उत्पीड़न के विरुद्ध राष्ट्र के संघर्ष को अपने साहस से आकार देने वाले भारत के जनजातीय नायक दशकों तक कमोबेश इतिहास के हाशिये तक ही सीमित रहे। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, इस धारणा का स्वरूप बदल गया है। स्मरणीय कार्यक्रमों, स्मारकों, प्रकाशनों, प्रतीकात्मक विमोचनों और वंशजों के साथ सीधे जुड़ाव के माध्यम से जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों की गाथाएँ अब भारत की राष्ट्रीय विरासत की आधारशिला के रूप में सम्मानित की जा रही हैं।
राष्ट्रीय उत्सवों के जरिए इतिहास का सम्मान
जनजातीय इतिहास को जीवित बनाए रखने के महत्व को पहचानते हुए मोदी सरकार ने 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में स्थापित किया है, जो भारत के जनजातीय क्रांतिकारी भगवान बिरसा मुण्डा की जयंती के रूप में मनाया जाता है। समय के साथ, इस उत्सव ने जनजातीय गौरव सप्ताह का रूप ले लिया, जिसे विभिन्न मंत्रालयों और राज्यों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों, प्रदर्शनियों और शैक्षिक गतिविधियों के साथ मनाया जाता है जो जनजातीय नायकों की विरासत को जीवंत बनाते हैं।1
भारत की जनजातीय महिलाओं के नेतृत्व और साहस पर और अधिक बल देते हुए सरकार ने 2023 में, रानी दुर्गावती 500वीं जन्मशताब्दी के अवसर पर राष्ट्रीय समारोह की घोषणा की।2 प्रधानमंत्री मोदी ने लगातार इन स्मरणोत्सवों को प्रतिरोध के जीवंत स्थलों से जोड़ा है:
• हूल दिवस पर, उन्होंने औपनिवेशिक उत्पीड़न के विरुद्ध संथाल नायकों- सिद्धो-कान्हो, चांद-भैरव और फूलो-झानो के विद्रोह को जन स्मृति में जीवित रखते हुए उन्हें सम्मानित किया।3
• राजस्थान के बांसवाड़ा में, उन्होंने गोविंद गुरु, तिलका मांझी, सिद्धू-कान्हू और बुधु भगत जैसे नायकों की याद में मानगढ़ धाम की गौरव गाथा में भाग लिया।4
• वे बिरसा मुण्डा की जन्मस्थली झारखंड के उलिहातु जाने वाले पहले प्रधानमंत्री भी बने। उन्होंने वहाँ उलगुलान आंदोलन के नायक को पुष्पांजलि अर्पित कर जनजातीय वीरता को राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना में और अधिक समाहित किया।
परिवारों को जोड़ना: इतिहास को व्यक्तिगत बनाना
प्रधानमंत्री मोदी के दृष्टिकोण की विशिष्ट विशेषता जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के साथ सीधा जुड़ाव रहा है, जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि इतिहास केवल स्मारकों के बारे में नहीं, बल्कि जीवित परिवारों के बारे में है।
• उन्होंने ओडिशा में बक्शी जगबंधु, रिंडो माझी और लक्ष्मी पांडा सहित पाइका विद्रोह के नायकों के परिवारों को सम्मानित किया और 1817 के सशस्त्र विद्रोह में उनके साहस को नमन किया।6 7
• प्रधानमंत्री मोदी ने शहीद वीर नारायण सिंह के वंशजों से व्यक्तिगत रूप से बातचीत की, उनका हालचाल पूछा और उनके योगदान को याद रखा जाना सुनिश्चित किया।8
• बिरसा मुण्डा की 150वीं जयंती के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने बिरसा मुण्डा, सिदो मुर्मू, कान्हू मुर्मू और अन्य जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को सम्मानित करते हुए देश भर में जनजातीय समुदायों के समर्थन के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।9
परिवारों के साथ जुड़कर प्रधानमंत्री ने इतिहास के साथ मानवीय संबंध स्थापित करते हुए इस बात पर बल दिया है कि जनजातीय नायकों का बलिदान भारत की पहचान को आकार देता रहेगा।
स्मारक और सार्वजनिक स्थल: विरासत को सन्निहित करना
प्रधानमंत्री मोदी के विजन के तहत, भारत के जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के साहस को पूरे देश में संरक्षित और सम्मानित किया जा रहा है। 2016 के स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में घोषित की गई -जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय योजना के तहत 10 राज्यों में 11 संग्रहालयों को मंजूरी दी गई है, जिससे उनके नेतृत्व और संघर्षों का सम्मान करने वाले स्थान निर्मित होंगे।10 अब तक, तीन संग्रहालयों का उद्घाटन किया जा चुका है:
• भगवान बिरसा मुण्डा स्मृति उद्यान सह स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय, रांची
• बादल भोई राज्य जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय, छिंदवाड़ा
• राजा शंकर शाह एवं कुंवर रघुनाथ शाह स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय, जबलपुर11
• प्रधानमंत्री मोदी ने जबलपुर में वीरांगना रानी दुर्गावती स्मारक और उद्यान का भूमि पूजन भी किया।1213
• रानी माँ गाइदिन्ल्यू जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय का निर्माण उनकी विरासत के सम्मान में किया जा रहा है।14
• प्रधानमंत्री मोदी ने इस स्मरणोत्सव को आगे बढ़ाते हुए रायपुर में शहीद वीर नारायण सिंह के नाम पर जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों पर भारत के पहले डिजिटल संग्रहालय का भी उद्घाटन किया, जो देश भर के नागरिकों और विद्यार्थियों के लिए इंटरैक्टिव कहानियाँ और कलाकृतियाँ प्रस्तुत करता है।15
इन वास्तविक और डिजिटल स्मारकों के माध्यम से, जनजातीय वीरता अब भारत के सांस्कृतिक और नागरिक ताने-बाने में गुंथ गई है, जो पीढ़ियों को उनके साहस की विरासत का सम्मान करने और उसे आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है।
सार्वजनिक स्थल: जनजातीय नायकों का सम्मान
प्रधानमंत्री मोदी ने यह सुनिश्चित किया है कि भारत के सार्वजनिक स्थल भी जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत को प्रतिबिंबित करें।
• भोपाल स्थित रानी कमलापति रेलवे स्टेशन गोंड रानी की स्मृति को अमर करता है।16
• जननायक टंट्या भील स्टेशन और टंट्या मामा भील विश्वविद्यालय, ब्रिटिश शासन का विरोध करने वाले भील योद्धाओं की स्मृति में बनाए गए हैं।
• आंध्र प्रदेश के भीमावरम में अल्लूरी सीताराम राजू की 30 फुट ऊँची कांस्य प्रतिमा, रम्पा विद्रोह के दौरान उनके नेतृत्व का कीर्तिगान करती है।18
• इसी प्रकार, प्रधानमंत्री मोदी ने झारखंड के रांची में बिरसा मुण्डा की प्रतिमा का अनावरण किया, जो इस जनजातीय प्रतीक और उलगुलान आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका का सम्मान करती है।19
• जनजातीय क्षेत्रों में बिरसा मुण्डा जनजातीय गौरव उपवन स्थापित किए जा रहे हैं, जो सम्मान को समुदायों और आगंतुकों- दोनों के लिए जीवंत विरासत स्थलों में बदल रहे हैं।
इन पहलों के माध्यम से, स्मारक, स्टेशन, विश्वविद्यालय और संग्रहालय मिलकर स्मृति का एक जीवंत परिदृश्य तैयार करते हैं।
जनजातीय इतिहास को जीवंत करना: पुस्तकें, कॉमिक्स और डिजिटल कहानियाँ
प्रधानमंत्री मोदी ने जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों की गाथा का हर पीढ़ी तक पहुँचना सुनिश्चित करते हुए देश में उनको याद करने की पद्धति को बदल दिया है। आदि शौर्य ई-बुक के माध्यम से, उन्होंने 150 से अधिक वर्षों के जनजातीय प्रतिरोध का डिजिटल रूप से वर्णन किया है, जबकि प्रेरक कॉफ़ी-टेबल बुक- ट्राइबल हैरिटेज ऑफ इंडिया- जनजातीय कला, संस्कृति और स्वतंत्रता संग्राम में उसके योगदान का कीर्तिगान करती है।
इसमें रचनात्मकता जोड़ते हुए, अमर चित्र कथा के सहयोग से प्रकाशित कॉमिक संकलन "ट्राइबल लीडर्स ऑफ फ्रीडम स्ट्रगल" 20 जनजातीय नायकों के जीवन को रोचक तरीके से वर्णित करता है।
प्रतीकात्मक श्रद्धांजलि: सिक्के, टिकट और उपवन
प्रधानमंत्री मोदी ने पाइका विद्रोह की स्मृति में स्मारक सिक्के और डाक टिकट जारी किए।24
उन्होंने बिरसा मुण्डा की 150वीं जयंती पर उनकी विरासत को राष्ट्रीय स्मृति में अंकित करते हुए एक सिक्का भी जारी किया।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध सशस्त्र प्रतिरोध का नेतृत्व करने वाली नागा स्वतंत्रता सेनानी रानी गाइदिन्ल्यू की स्मृति में भी एक सिक्का जारी किया।
निष्कर्ष: हाशिये से इतिहास के केंद्र तक
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी अब फुटनोट मात्र नहीं रह गए हैं, बल्कि वे भारत की राष्ट्रीय गाथा के केंद्रीय पात्र बन चुके हैं।
बिरसा मुण्डा, शहीद वीर नारायण सिंह, गोविंद गुरु, सिद्धू-कान्हू, रानी गाइदिन्ल्यू, अल्लूरी सीताराम राजू और असंख्य अन्य जनजातीय नायकों की विरासत अब संरक्षित, प्रतिष्ठित और आने वाली पीढ़ियों के लिए सुलभ बनाई जा रही है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि भारत केवल नेताओं को ही नहीं, बल्कि संघर्ष के पीछे के लोगों, परिवारों, समुदायों और देश की स्वतंत्रता को आकार देने वाले प्रतिरोध की भावना को भी याद रखे।
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