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शनिवार, 8 नवंबर 2025

सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा: जीएसटी से जुड़े सुधार भारत की स्वास्थ्य गाथा को नए सिरे से लिख रहे हैं

सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा: जीएसटी से जुड़े सुधार भारत की स्वास्थ्य गाथा को नए सिरे से लिख रहे हैं 

लेखक: प्रोफेसर बेजोन कुमार मिश्र, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी हैदराबाद में मानद प्रोफेसर

56वीं जीएसटी परिषद का निर्णय प्रत्येक भारतीय को किफायती तरीके से गुणवत्तापूर्ण एवं सुरक्षित स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

कुछ नीतिगत निर्णय व्यवस्थाओं में बदलाव लाते हैं और कुछ ऐसे दुर्लभ सुधार भी होते हैं, जिनमें जिंदगी को नया रूप देने की ताकत होती है। 56वीं जीएसटी परिषद द्वारा किए गए  व्यापक स्वास्थ्य सेवा से जुड़े कर संबंधी सुधार निर्णायक रूप से बाद वाली श्रेणी में आते हैं। चार दशकों से भी अधिक समय में भारत के स्वास्थ्य सेवा परिदृश्य को विकसित होते देखने वाले एक व्यक्ति के रूप में, मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि: यह एक क्रांतिकारी बदलाव है।

शासन और करुणा का मेल

जरा भारत के श्रेणी-2 वाले एक शहर में एक ऐसी मां की कल्पना कीजिए, जो अपने बच्चे को एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी से जूझते हुए देख रही है। हाल ही तक, इलाज की भारी लागत के कारण उसके सामने असंभव विकल्प थे – अपना घर बेच दो, भारी ब्याज दरों पर उधार लो या फिर असहाय होकर देखते रहो। सरकार द्वारा 36 जीवन रक्षक दवाओं को जीएसटी से पूरी तरह मुक्त करने के फैसले ने इस क्रूर गणित को पूरी तरह से बदल दिया है और उस मां के चेहरे पर मुस्कान ला दी है। 

ये कोई क्रमिक तरीके से धीरे- धीरे होने वाले बदलाव नहीं हैं। कैंसर की चिकित्सा, हृदय रोग संबंधी दवाएं, आनुवंशिक रोगों एवं दुर्लभ बीमारियों के उपचार - ये सभी अब जीएसटी से पूरी तरह मुक्त हैं। दुर्लभ रोगों के लिए राष्ट्रीय नीति, जिसमें 50 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता का प्रावधान है, को साथ मिलाकर हम दुर्लभ रोगों से प्रभावित 7.2 करोड़ भारतीयों के लिए एक व्यापक सुरक्षा कवच बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। यह एक मानवीय चेहरे वाले शासन का उदाहरण है।

उम्मीद का गणित

आंकड़े अक्सर इंसानी कहानियों को धुंधला कर देते हैं। लेकिन इस मामले में, वे ऐसी कहानियों  को स्पष्ट करते हैं। जरा गौर कीजिए कि व्यवहार में इन सुधारों के मायने क्या हैं: आनुवंशिक कोलेस्ट्रॉल संबंधी विकार से जूझ रहे एक मरीज को सालाना लगभग 48,000 रुपये की बचत हो सकती है। गुर्दे, हृदय और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाली एक दुर्लभ बीमारी, फैब्री रोग से जूझ रहे मरीज के इलाज की लागत में सालाना 19 लाख रुपये तक की कमी आ सकती है। यहां तक कि बेहद आम पायी जाने वाली पुरानी बीमारियों के लिए भी, यह राहत काफी बड़ी है। मधुमेह और उच्च रक्तचाप के मरीजों को सालाना 6,000 रुपये तक की बचत हो सकती है।

ये बचत न सिर्फ बजट पर पड़ने वाले दबाव को कम करती हैं, बल्कि इनकी वजह से जानें भी बचती हैं। बचाया गया हर एक रुपया इलाज की निरंतरता सुनिश्चित करता है, परिवारों को चिकित्सा की वजह से छाने वाली कंगाली से बचाता है और मरीजों को बीमारी से लड़ने के क्रम में सम्मान एवं सुरक्षा बनाए रखने में मदद करता है।

दवाओं से परे

इन सुधारों की खूबी उनके व्यापक प्रभाव में निहित है। आवश्यक दवाओं पर जीएसटी को 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत, चिकित्सा उपकरणों पर 18 प्रतिशत/12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत और नैदानिक उपकरणों पर 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत करके, सरकार ने स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी संपूर्ण मूल्य श्रृंखला पर ध्यान दिया है। स्वास्थ्य और जीवन बीमा के प्रीमियम पर दिया जाने वाला पूर्ण छूट विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह कदम इस तथ्य को स्वीकार करता है कि वित्तीय सुरक्षा भी उपचार जितनी ही महत्वपूर्ण है।
इस कदम का आशय सिर्फ आज स्वास्थ्य सेवा को किफायती बनाने से नहीं है; बल्कि इसका संबंध भविष्य में भी इस किफायती सेवा को स्थायीi बनाने से है। आवश्यक और जटिल जेनेरिक दवाओं के स्थानीय निर्माण को प्रोत्साहित करके, ये सुधार ‘आत्मनिर्भर भारत’ की भावना को साकार करते हैं और साथ ही यह भी सुनिश्चित करते हैं कि भारत आयात पर निर्भरता का बंधक न बने। एक सरलीकृत कर संरचना का अर्थ यह है कि दवा कंपनियां अनुपालन संबंधी कसरतों के बजाय नवाचार एवं गुणवत्ता पर ध्यान केन्द्रित कर सकती हैं।

सर्वव्यापी प्रभाव

मेरी नजर में सबसे ज्यादा उत्साहित करने वाली बात यह है कि: ये सुधार सकारात्मक चक्र बनाते हैं। कम लागत का मतलब है उपचार संबंधी बेहतर अनुपालन। इस बेहतर अनुपालन का मतलब है स्वास्थ्य संबंधी बेहतर नतीजे। बेहतर नतीजों का मतलब है स्वास्थ्य सेवा पर पड़ने वाले बोझ में दीर्घकालिक स्तर पर कमी। किफायती निवारक देखभाल का मतलब है शीघ्र उपाय। शीघ्र उपाय का मतलब है रोग का बेहतर निदान और समग्र लागत में कमी।
एकाएक, दिहाड़ी मजदूर को दवा और भोजन के बीच चुनाव नहीं करना पड़ेगा। एक मध्यमवर्गीय परिवार को स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थिति के लिए अपनी बचत खर्च नहीं करनी पड़ेगी। बुज़ुर्गों को इलाज के खर्चों के लिए पूरी तरह बच्चों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। स्वास्थ्य बीमा अब एक आकांक्षा के बजाय सुलभ हो गई है। 

विकसित भारत का एक खाका

भारत 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की आकांक्षा रखता है। इस संदर्भ में, यह सुधार एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करता है: स्वास्थ्य सुरक्षा के बिना आर्थिक विकास एक खोखली प्रगति है। 56वीं जीएसटी परिषद ने यह माना है कि ‘विकसित भारत’ के लिए सबसे पहले एक स्वस्थ भारत होना जरूरी है - एक ऐसा भारत जहां चिकित्सा संबंधी निदान वित्तीय संकट का कारण न बने; एक ऐसा भारत जहां उपचार भुगतान की क्षमता के बजाय नैदानिक जरूरतों  के आधार पर निर्धारित हो। 

परिवर्तनकारी शासन कुछ ऐसा ही होता है – छिटपुट बदलाव नहीं, बल्कि बुनियादी बातों की पुनर्कल्पना। इसका मतलब यह समझना है कि स्वास्थ्य सेवा कोई कर लगाने लायक विलासिता की वस्तु नहीं, बल्कि नागरिकों को सक्षम बनाने संबंधी एक बुनियादी जरूरत है।

आगे की राह

बेशक, अकेले कर संबंधी सुधार भारत की स्वास्थ्य सेवा संबंधी सभी चुनौतियों का समाधान नहीं कर पायेंगे। हमें अभी भी अधिक संख्या में डॉक्टरों, बेहतर बुनियादी ढांचे, मजबूत प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों, निरंतर दवाओं से जुड़े नवाचार और रचनात्मक स्वास्थ्य बीमा उत्पादों की जरूरत है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि: इन जीएसटी सुधारों ने उल्लेखनीय बदलाव लाया है। इन्होंने यह साबित कर दिया है कि जब नीतियां सहानुभूति एवं दूरदर्शिता के साथ बनाई जाती हैं, तो वास्तविक बदलाव संभव होता है।

जैसे-जैसे इन सुधारों के बाद के बिक्री के आंकड़े और मामले (केस स्टडीज) सामने आ रहे हैं, उन बातों की निरंतर पुष्टि हो रही है जो हमेशा से नैतिक रूप से स्पष्ट थीं: सुलभ स्वास्थ्य सेवा मात्र अच्छी नैतिकता का नहीं, बल्कि अच्छी अर्थव्यवस्था का परिचायक है। स्वस्थ नागरिक उत्पादक नागरिक साबित होते हैं। सुरक्षित परिवार स्थिर परिवार साबित होते हैं। बीमाकृत आबादी आत्मविश्वास से लबरेज आबादी होती है।

56वीं जीएसटी परिषद ने भारत को कर राहत से कहीं ज्यादा कुछ दिया है। इसने लाखों परिवारों को कहीं ज्यादा मूल्यवान चीज दी है: उम्मीद। यह उम्मीद कि बीमारी का मतलब कंगाली नहीं है। यह उम्मीद कि इलाज संभव है। यह उम्मीद कि आने वाला कल आज से कहीं ज्यादा स्वस्थ होगा।

विकसित भारत की यात्रा की कहानी में, इस सुधार को एक महत्वपूर्ण मोड़ के तौर पर याद किया जाएगा – एक ऐसा क्षण जब स्वास्थ्य सेवा ने वास्तव में विशेषाधिकार से अधिकार, आकांक्षा से हकीकत बनने की दिशा में अपनी यात्रा शुरू की।

यह सिर्फ एक अच्छी नीति ही नहीं है। यह एक परिवर्तनकारी नेतृत्व है।

(प्रोफेसर बेजोन कुमार मिश्र, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी हैदराबाद में मानद प्रोफेसर हैं) 
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