दीपोत्सव की पावन श्रृंखला में आज गोवर्धन पूजा का शुभ अवसर समर्पण, आस्था और प्रकृति-संरक्षण का दिव्य संदेश लेकर आया है। यह दिन उस अद्भुत क्षण की स्मृति है जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर व्रजवासियों की रक्षा की थी। यह केवल एक चमत्कार नहीं, बल्कि मानवता के लिए अमर उपदेश है कि सच्चा बल बाहुबल में नहीं, श्रद्धा और विश्वास में निहित होता है।
गोवर्धन पूजा हमें यह स्मरण कराती है कि “प्रकृति ही हमारी सच्ची पूजनीय है।” जिस धरती ने हमें जन्म दिया, जो जल हमें जीवन देता है, जो गौवंश हमारे अन्न और अस्तित्व का आधार है वही हमारे आराध्य हैं। आज के दिन जब घर-आँगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतीकात्मक रचना होती है, दीपों की पंक्तियाँ जगमगाती हैं और अन्नकूट का भोग लगता है, तब यह संपूर्ण सृष्टि के प्रति कृतज्ञता का उत्सव बन जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण की यह लीला हमें प्रेरणा देती है कि अपने प्रियजनों की रक्षा और प्रकृति की सेवा ही सच्ची भक्ति का स्वरूप है। करुणा, एकता और प्रेम के दीप हर हृदय में जलें यही इस पर्व का मर्म है।
इस गोवर्धन पूजा पर प्रभु श्रीकृष्ण आपके जीवन में भी प्रेम, समृद्धि और शांति के दीप प्रज्वलित करें।
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