प्रयागराज। बिहार और उत्तर प्रदेश के भोजपुरी भाषी क्षेत्र में दीपावली के अगले दिन घर से दलिदर या दरिद्र को को भगाने की मजेदार परंपरा है। गांव की स्त्रियां टोली बनाकर ब्रह्म बेला में हाथ में सूप और कलछुल लेकर घरों से निकलती हैं और सूप बजाती हुई दलिदर को बगल वाले गांव के सिवान तक खदेड़ आती है। दलिदर भगाने की इस लोक परंपरा को देवी लक्ष्मी की बड़ी बहन अलक्ष्मी से जोड़कर देखा जाता है। पुराणों के अनुसार अलक्ष्मी समुद्र मंथन में लक्ष्मी के पहले मिली थी। लक्ष्मी युवा, सौंदर्यवान थी लेकिन अलक्ष्मी वृद्धा, कुरूप। लक्ष्मी धन, वैभव और सौभाग्य का प्रतीक और अलक्ष्मी दरिद्रता, दुख, दुर्भाग्य का कारण। लक्ष्मी का संबंध मिष्ठान्न से है, अलक्ष्मी का खट्टी और कड़वी चीजों से। यही वजह है कि मिठाई घर के भीतर रखी जाती है और नीबू तथा तीखी मिर्ची घर के बाहर लटका दी जाती है। लक्ष्मी मिठाई खाने घर के अंदर तक आती हैं। अलक्ष्मी नींबू, मिर्ची खाकर दरवाज़े से ही संतुष्ट लौट जाती हैं।भोजपुरी लोक संस्कृति में संभवतः दरिद्रता की देवी अलक्ष्मी को दलिदर कहकर भगाया जाता है। आज के दिन गांव की औरतें सूप और कलछुल की कर्कश ध्वनि के बीच दलिदर को बगल वाले गांव की सीमा तक खदेड़ देती है। बगल वाले गांव की औरतें उसे अपने बगल के गांव के सिवान तक। सिलसिला चलता रहता है। प्रतिस्पर्द्धा ऐसी कि दलिदर उस पूरे इलाके में 360 डिग्री घूमकर ही रह जाता होगा। इलाके से निकलने का शायद ही कोई रास्ता बचता होगा उस बेचारे के पास। शायद यही कारण है कि सदियों तक खदेड़े जाने के बावजूद देश में दलिदर आज भी जस का तस बना हुआ है।
बुधवार, 22 अक्टूबर 2025
पूर्वांचल / भोजपुरी भाषी क्षेत्र की अनोखी परंपरा "भाग दलिदर भाग" read more .....
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