जीएसटी 2.0: जनता के प्रति जवाबदेही और विकास के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक
लेखक : नवनीत सहगल, अध्यक्ष, प्रसार भारती
सरकार ने इनकम टैक्स में राहत देने के बाद इनडायरेक्ट टैक्स व्यवस्था में भी सबसे बड़ा सुधार करते हुए ‘जीएसटी 2.0’ लागू करने का साहसिक निर्णय लिया है। किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के लिए यह कदम आसान नहीं होता क्योंकि टैक्स में राहत का सीधा असर राजकोषीय संग्रह पर पड़ता है लेकिन मोदी सरकार ने लगातार दूसरी बार ऐसा करके यह संदेश दिया है कि जनता के हित उसके हर फैसले की धुरी हैं। यह दुर्लभ दृश्य है कि कम समय में दो-दो बड़े टैक्स सुधार लागू किए जाएं। पहले डायरेक्ट टैक्स में राहत और अब इनडायरेक्ट टैक्स में सबसे बड़ा बदलाव। यही वह नीति है जिसने मोदी सरकार को आम आदमी के बीच विश्वास का प्रतीक बना दिया है।
विपक्ष की आशंकाएं सच्चाई से कोसों दूर
विपक्ष हमेशा की तरह इस बार भी जनता के हित में लिए गए सरकार के इतने बड़े फैसले भी भ्रम फैला रहा है। विपक्ष के कई नेताओं का आरोप है कि सरकार ने सिर्फ दरों का पुनर्गठन किया है और इससे वास्तविक सस्तीकरण नहीं होगा। जबकि सच्चाई यह है कि उपभोक्ता बाजार में पहले ही बदलाव दिखाई दे रहे हैं। दवा कंपनियां नई कीमतें घोषित कर चुकी हैं, बीमा कंपनियां कम प्रीमियम वाली योजनाएं पेश कर रही हैं और उपभोग वस्तुओं के ब्रांड्स ने MRP घटाने की घोषणाएं शुरू कर दी हैं। जहां विपक्ष भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहा है, वहीं वास्तविकता यह है कि यह सुधार जनता की ज़िंदगी को आसान बनाने के उद्देश्य से किया गया है। सरकार ने स्पष्ट कहा है कि टैक्स कलेक्शन की कमी को विकासशील क्षेत्रों और बढ़ी हुई मांग से पूरा किया जाएगा।
आम आदमी के जीवन पर सीधा असर
इस रिफॉर्म का सबसे बड़ा फायदा आम आदमी को मिलता दिख रहा है। पहले जहां दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर जहां 12 या 18 प्रतिशत तक टैक्स देना पड़ता था अब वे पांच प्रतिशत या 0 टैक्स के दायरे में आ गई हैं। इसका असर रसोई से लेकर दवा की दुकान तक दिखने लगेगा। मोदी सरकार ने खाद्य पदार्थों में सीधी राहत दी है। पैकेज्ड पनीर जैसी चीज़ें अब पहले से सस्ती होंगी। इतना ही नहीं आम आदमी की स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में भी सरकार ने सोचा। जीवनरक्षक दवाएं और कैंसर, हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों की दवाएं जीएसटी मुक्त कर दी गई हैं। स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम को भी टैक्स से बाहर करने का फैसला हुआ है। घरेलू उपकरण जैसे टीवी, एसी जैसी रोज़मर्रा की बड़ी ज़रूरतें 28 से घटकर 18 प्रतिशत जीएसटी के दायरे में आ गई हैं। ये कदम केवल राहत का प्रतीक नहीं बल्कि सरकार की उस नीतिगत सोच को भी दर्शाते हैं जिसमें ‘जनता की जेब में बचत’ को विकास का अहम आधार माना गया है।
उपभोग और मांग में बढ़ोतरी
टैक्स स्लैब घटने का असर सीधे उपभोग पर पड़ना तय है। वित्त विशेषज्ञों का मानना है कि इससे मांग में तेज़ी आएगी और छोटे व्यापारियों से लेकर बड़ी कंपनियों तक को इसका फायदा मिलेगा। जहां विपक्ष कह रहा है कि यह सिर्फ़ ‘इधर से उधर’ का खेल है, वहीं आंकड़े बताते हैं कि टैक्स घटने से रोज़मर्रा की वस्तुओं की कीमतों में वास्तविक कमी आ रही है। यही वजह है कि बाजारों में पहले ही रौनक लौटने लगी है और त्योहारी सीजन से पहले ग्राहकों में खरीदारी को लेकर उत्साह देखा जा रहा है।
युवाओं के लिए एक सशक्त अवसर
जीएसटी 2.0 का नया स्ट्रक्चर भारत के युवाओं के लिए एक सशक्त अवसर प्रस्तुत करता है। दरों को सरल बनाकर, अनुपालन प्रक्रिया को सहज बनाकर और बीमा जैसी आवश्यक सेवाओं पर छूट देकर, यह प्रणाली घरेलू क्रय शक्ति को बढ़ावा देती है। इससे युवाओं की जेब पर सीधा असर पड़ता है, अब उन्हें रोज़मर्रा की वस्तुएं और सेवाएं पहले से कम कीमतों पर उपलब्ध होंगी। एजुकेशनल मटेरियल पर जीरो टैक्स दर उनके सपनों की उड़ान में मददगार साबित होंगे।
स्टार्टअप्स और छोटे उद्यमों को भी लाभ
इस नई व्यवस्था से स्टार्टअप्स और छोटे उद्यमों को भी लाभ होगा क्योंकि कम कर दरें और आसान नियम नवाचार को बढ़ावा देंगे। युवा उद्यमियों के लिए यह एक अनुकूल वातावरण प्रदान करता है जिसमें वे अपने विचारों को व्यवसाय में बदल सकते हैं। बीमा जैसी सेवाओं पर छूट उन्हें स्वास्थ्य और वित्तीय सुरक्षा की ओर प्रोत्साहित करती है।
डिजिटल इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों को यह नया जीएसटी ढांचा मजबूत आधार दे रहा है। यह न सिर्फ आज के परिवारों के लिए सुधार है बल्कि उस भारत की नींव है जिसका निर्माण यह युवा पीढ़ी करेगी। वास्तव में जीएसटी 2.0 युवाओं को उपभोक्ता ही नहीं, देश के भविष्य निर्माता बनने की राह पर अग्रसर करता है।
निवेश और उद्योग जगत को बल
जीएसटी 2.0 से सिर्फ ग्राहकों को ही फायदा नहीं होगा, उद्योग जगत के लिए भी यह राहत का पैकेज है। छोटे और मझोले उद्यमों को जटिल टैक्स दरों और कैटेगरी क्लासिफ़िकेशन के बोझ से मुक्ति मिलेगी। इनपुट टैक्स क्रेडिट सरल होगा। अब कंपनियों को इनवॉइस मिलान की जटिलता से नहीं जूझना पड़ेगा, जिससे कारोबारी माहौल आसान होगा। विदेशी निवेशक भी सरल कर संरचना को भारत की आर्थिक क्षमता का मजबूत संकेत मान रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि भारत का टैक्स ढांचा अब दुनिया के लिए एक मॉडल बन सकता है। यह सुधार सिर्फ टैक्स कलेक्शन नहीं बल्कि निवेश और रोजगार सृजन का नया द्वार खोलेगा।
महंगाई पर नियंत्रण की रणनीति
मुद्रास्फीति किसी भी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती होती है। जीएसटी 2.0 का लक्ष्य केवल उपभोग बढ़ाना नहीं बल्कि महंगाई को नियंत्रित करना भी है। दरअसल, जब ज़रूरी वस्तुएं सस्ती होती हैं तो आम उपभोक्ता की जेब पर दबाव कम होता है और परोक्ष रूप से मुद्रास्फीति की दर घटती है। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के अनुमान हैं कि इस सुधार से महंगाई में 0.5 से 1 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। यह भारत की विकास दर को और स्थिर आधार देगा।
जीडीपी पर प्रभाव के अनुमान
अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि जीएसटी 2.0 से आने वाले वित्तीय वर्ष में भारत की जीडीपी में 0.5 से 1.2 प्रतिशत अंक तक की बढ़ोतरी संभव है। चूंकि उपभोग किसी भी अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी ताकत है ऐसे में टैक्स छूट के कारण घरेलू खपत तेज होगी और उद्योग जगत को मांग के नए अवसर मिलेंगे। यह प्रभाव विशेषकर ऑटोमोबाइल, एफएमसीजी और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में स्पष्ट दिखाई देगा।
शेयर बाज़ार की सकारात्मक प्रतिक्रिया
जीएसटी 2.0 की घोषणा के तुरंत बाद शेयर बाजार ने भी इसे बड़े उत्साह से स्वीकार किया। बीएसई सेंसेक्स 300 अंकों से अधिक चढ़ा और एनएसई निफ़्टी 50 ने 0.5 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की। ऑटो और कंज़्यूमर गुड्स कंपनियों के शेयरों में 4 से 6 प्रतिशत तक का उछाल देखने को मिला। यह स्पष्ट संकेत है कि उद्योग जगत और निवेशक इस सुधार को दीर्घकालिक लाभकारी मान रहे हैं।
राजकोषीय प्रभाव और सरकार की तैयारी
टैक्स छूट से अल्पकालिक राजस्व में कमी आना स्वाभाविक है। अनुमान है कि इससे सरकार को लगभग 48 हजार करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान हो सकता है लेकिन सरकार आम आदमी के लाभ के प्रति दृढ़ संकल्पित दिखती है। प्रधानमंत्री ने लालकिले से कहा वह कुछ ही दिन में करके दिखा दिया है। जहां तक बात राजस्व घाटे की है तो सरकार और विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ते उपभोग और तेजी से होने वाला आर्थिक प्रवाह इस घाटे को अगले दो ही वर्षों में संतुलित कर देगा। वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि ‘लोकहित के लिए यदि हमें तात्कालिक घाटा उठाना पड़े तो यह निवेश भविष्य की अर्थव्यवस्था को और मज़बूत बनाएगा।’
सुधार की दिशा में निर्णायक कदम
जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी स्पष्ट कहा ‘यह सुधार सिर्फ़ टैक्स दरों का पुनर्गठन नहीं बल्कि आम जनता की सुविधा, कारोबार में पारदर्शिता और आत्मनिर्भर भारत के लिए निर्णायक पहल है।’ जीएसटी 2.0 के तहत कर ढांचे को सरल बनाने के लिए चार दरों को घटाकर दो प्रमुख दरों में समाहित किया गया है। आवश्यक वस्तुओं को 5 प्रतिशत या शून्य कर श्रेणी में लाया गया है जबकि सामान्य उपभोग वस्तुएं 18 प्रतिशत के स्लैब में रखी गई हैं। विलासिता और हानिकारक वस्तुओं के लिए अलग से 40 प्रतिशत का ‘डिमेरिट स्लैब’ तय किया गया है।
जनता के प्रति जवाबदेही का संदेश
मोदी सरकार के इन निर्णयों का संदेश स्पष्ट है कि सरकार जनता के प्रति जवाबदेह है। यह सिर्फ़ आर्थिक सुधार नहीं बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति का भी प्रमाण है। जब पूरी दुनिया में कर वृद्धि की प्रवृत्ति है, भारत ने टैक्स घटाकर यह दिखाया है कि जनता की समृद्धि को ही विकास की असली कुंजी माना गया है।
एक ऐतिहासिक अध्याय
यह कहने में क़तई गुरेज़ नहीं है कि जीएसटी 2.0 केवल कर दरों का पुनर्गठन नहीं बल्कि भारत की आर्थिक यात्रा में ऐतिहासिक अध्याय है। इसने न सिर्फ उपभोक्ताओं को राहत दी है बल्कि उद्योग, निवेश और दीर्घकालिक विकास की राह भी खोली है। विपक्ष चाहे इसे सतही सुधार बताए लेकिन सच्चाई यही है कि आम आदमी की ज़िंदगी सस्ती और सरल बनाने वाला यह कदम आने वाले वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था को और मज़बूत करेगा। मोदी सरकार ने साबित किया है कि टैक्स नीति केवल राजस्व संग्रह का साधन नहीं बल्कि जनता के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने का औज़ार भी है। यही वजह है कि जीएसटी 2.0 को जनता के प्रति जवाबदेही और विकास के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक माना जाएगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Post Comments