गोमती की बाढ़ में बहकर आए जलकुंभियों ने किया खेतों में कब्जा, उर्वरा शक्ति कम होने के डर से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें
सिधौना गोमती नदी में बाढ़ के साथ बहकर आए जलकुंभी से किसानों के खेत पट गए है। सिधौना गांव के सैकड़ों एकड़ धान और बाजरे की खेतों में जलकुंभियों ने डेरा जमा लिया है। बाढ़ का पानी उतरने के बाद जलकुम्भी के जमा होने से किसान परेशान हैं। जिससे सैकड़ों किसानों की धान की फसल बर्बाद हो रही है। शुक्रवार को गोमती नदी के जलस्तर में घटाव होने से नदी का पानी खेतों से उतर गया है। जिससे जहां भारी दुर्गंध फैल गई है। वहीं गौरी, गोरखा, अमेहता, नुरूद्दीनपुर और सिधौना में भारी मात्रा में जलकुंभी आकर खेतों में फंस गए हैं। जलकुंभी की वृद्धि दर किसी भी अन्य पौधे की तुलना में सबसे अधिक है। जलकुंभी मुख्य रूप से रनर या स्टोलन के माध्यम से प्रजनन करती है। जो अंततः संतति पौधों का निर्माण करते हैं। प्रत्येक पौधा प्रति वर्ष हजारों बीज उत्पन्न कर सकता है और ये बीज 25 वर्षों से भी अधिक समय तक जीवित रह सकते हैं। जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में प्रकाश, स्थान, पोषक तत्वों और पानी के लिए अन्य सूक्ष्म वनस्पतियों और जीवों के साथ इसकी कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है। जलकुंभी सबसे प्रमुख, स्थायी और परेशानी पैदा करने वाला खर-पतवार है। किसानों ने अपने खेतों से जलकुंभी निकालते हुए बताया कि बाढ़ की जलजमाव से खेतों को बचाया जा सकता है, पर इन जलकुंभियों को खेतों से निकालना बहुत मुश्किल हो रहा है। जल्द ही इन्हें खेत से नहीं निकाला गया तो खेतों की उर्वरा शक्ति प्रभावित हो जाएगी।
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