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इंदौर। देश का सबसे बड़ा सवाल अब सिर्फ व्यवस्था पर नहीं, हमारी संवेदनाओं पर भी है। इंदौर की एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाली दिव्यांग शिक्षिका कुमारी चंद्रकांता जेठानी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से इच्छा मृत्यु की मांग कर देश को भीतर तक झकझोर दिया है।
व्हीलचेयर पर बैठी यह शिक्षिका सालों से मासूम बच्चों को पढ़ा रही है, लेकिन अब उनका शरीर दर्द से कराह उठा है। सात से आठ घंटे की कक्षा अब उनके लिए नरक समान पीड़ा बन चुकी है, फिर भी वे रोज़ स्कूल जाती हैं — क्योंकि पढ़ाना उनका धर्म है, जीवन नहीं।
चंद्रकांता ने अपनी पूरी संपत्ति सरकारी स्कूल के बच्चों के नाम कर दी, अंगदान और देहदान का संकल्प भी लिया, लेकिन बदले में मिला क्या? गलत इलाज, प्रशासनिक उपेक्षा और समाज की बेरुखी। जब एक आश्रम में सहारा मिला तो वहां भी सम्मान की जगह उपेक्षा ही हाथ लगी।
आज वे कहती हैं —
"मेरा शरीर अब जवाब दे रहा है, लेकिन आत्मा अब भी स्कूल जाना चाहती है।"
लेकिन इस संकट और दर्द की पराकाष्ठा ने उन्हें मजबूर कर दिया कि देश की प्रथम नागरिक से मरने की इजाजत मांगें।
क्या यह सिस्टम की सबसे बड़ी हार नहीं है?
क्या यह समाज की संवेदनहीनता की आखिरी हद नहीं है?
इस शिक्षिका की दर्द से डूबी पुकार अब देशभर के लोगों को सोचने पर मजबूर कर रही है।
👉 क्या हम इस नायिका को मरने की इजाजत देंगे, या उसके लिए जीने की कोई वजह तलाशेंगे?
👉 क्या अब भी प्रशासन जागेगा या चंद्रकांता जैसी बेटियां ऐसे ही चुपचाप दम तोड़ती रहेंगी?
यह सिर्फ एक टीचर की कहानी नहीं, यह पूरी व्यवस्था पर खड़ा होता वह आईना है जिससे हम आंखें चुराते आ रहे हैं।
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