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बुधवार, 14 मई 2025

Lmp. 'दवा' के नाम पर जहर? राजेश मेडिकल स्टोर पर छापा, बरामद हुईं एक्सपायरी और संदिग्ध दवाएं

● उम्मीदों की डिब्बी में निकले धोखे से बीमार पड़ा भरोसा

लखीमपुर खीरी। जब उम्मीदों की डिब्बी में दवा नहीं, धोखा निकले तो समाज का भरोसा भी बीमार पड़ जाता है। महेवागंज की संकरी गलियों में बसे राजेश मेडिकल स्टोर पर उस भरोसे की जड़ें आज हिलती नजर आईं, जब औषधि निरीक्षक बबीता रानी के नेतृत्व में हुई छापेमारी ने एक चिंताजनक हकीकत को उजागर कर दिया।
दवा की दुकान, जहाँ जीवन रक्षा की संजीवनी मिलनी चाहिए, वहाँ एक्सपायरी और नारकोटिक दवाओं का ज़खीरा मिला। जिन वाइलों में जीवनदायिनी औषधि होनी चाहिए थी, उनमें संदिग्ध, लेबलविहीन तरल भरा था जैसे दवा नहीं, कोई रहस्य चुपचाप अपनी परतों में छुपा बैठा हो। राजेश गुप्ता, इस दुकान के स्वामी, निरीक्षण के समय मौजूद थे। उन्होंने लाइसेंस दिखाया, परंतु वहाँ कार्यरत फार्मासिस्ट रुचि गुप्ता, जिन्हें उन्होंने अपनी छोटी बहू बताया ग़ैरहाज़िर पाई गईं। दवाएं फर्श पर बेतरतीब पड़ी थीं, जैसे उन्हें खुद अपनी हालत पर अफ़सोस हो। जब कागज़ी प्रमाण मांगे गए, तो उत्तरों की जगह खामोशी ने दस्तक दी। ऐसा लगा मानो मेडिकल स्टोर नहीं, कोई भट्ठी हो, जहाँ नियमों और जिम्मेदारियों को धीरे-धीरे जला दिया गया हो। लकड़ी की पुरानी रैक, जिसने न जाने कितनी बरसातें झेली होंगी, वहीं छुपाकर रखी गईं थीं नारकोटिक दवाएं, जिनका कोई हिसाब-किताब उपलब्ध नहीं था। चार वाइल्स, पारदर्शी ज़हर सी, बिना नाम-गाम के, सील कर राजकीय विश्लेषक को भेज दी गईं। एक कफ सिरप भी नमूने के रूप में भेजा गया—यह जानने कि यह राहत है या राहत के नाम पर छल। जांच जारी है। निरीक्षण रिपोर्ट लखनऊ मंडल भेज दी गई है और दुकान स्वामी को कारण बताओ नोटिस देने की संस्तुति की गई है। इस घटना ने एक बार फिर यह सोचने को विवश कर दिया है कि जिन दुकानों से हमें जीवन की उम्मीद होती है, यदि वही संदेह का केंद्र बन जाएँ, तो फिर समाज अपनी आस्था किस पर टिकाए?

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