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सोमवार, 12 मई 2025

Lmp. जेल की दीवारों के भीतर योग ने जगाई नई उम्मीद, हड्डी रोग निवारण शिविर संपन्न

लखीमपुर खीरी। लोहे की सलाखों के पीछे बंद जीवन जब निराशा के अंधेरों में डूबने लगे, तभी आशा की एक किरण योग के स्वरूप में वहाँ पहुँची, जिसने तन को ही नहीं, मन को भी राहत दी, ऐसा ही साक्षात हुआ जब भारतीय योग संस्थान लखीमपुर खीरी द्वारा जिला कारागार में हड्डी रोग निवारण शिविर का आयोजन किया गया।
यह आयोजन केवल एक शिविर नहीं, बल्कि एक मानवता की पुकार थी, जहाँ महिला जिला प्रधान अर्चना श्रीवास्तव ने जेलर हरबंश पाण्डेय के सहयोग से एक नई रोशनी की लौ जलाई। इस पुनीत प्रयास में 32 महिला बंदियों ने भाग लियाऔर योग, ध्यान व आसनों के माध्यम से अपने भीतर बदलाव की यात्रा शुरू की। शिविर में डॉ. सुशीला सिंह, संगठन मंत्री, ने न केवल आसान कराए बल्कि उनके पीछे छुपे वैज्ञानिक लाभों की गूढ़ व्याख्या की। जिला मंत्री कामिनी मिश्रा ने हड्डी रोग की पीड़ा में योग से मिलने वाली राहत को सहज रूप में बताया। वहीं क्षेत्रीय प्रधान संतोष दीक्षित ने ध्यान साधना द्वारा आत्मचिंतन की ओर महिलाओं का मार्ग प्रशस्त किया। केंद्र प्रमुख संध्या शुक्ला ने विभिन्न आसनों का जीवंत प्रदर्शन कर महिलाओं को नई ऊर्जा से भर दिया। शिविर की आत्मा बने जेलर हरबंश पाण्डेय, जिन्होंने सरल भाषा में हड्डी रोग की जटिलताओं को समझाकर, योग के द्वारा रोगमुक्ति की राह बताई। उनका मानवीय दृष्टिकोण बंदियों के लिए प्रेरणा बना। इस जेल में निरंतर चल रही योग कक्षाएं अब मात्र दिनचर्या नहीं रहीं, बल्कि बंदी महिलाओं के जीवन में नवचेतना का संचार कर रही हैं। आज वहाँ प्रतिस्पर्धा है पर वह सर्वश्रेष्ठ बनने की, आत्मविकास की। कुछ महिलाएं जो जेल से रिहा हो चुकी हैं, वे बाहर योगकक्षाओं में शामिल होकर समाज के लिए उदाहरण बन रही हैं। शिविर के समापन पर अर्चना श्रीवास्तव द्वारा भेंट की गई योग पुस्तिका ने सभी महिलाओं के चेहरों पर मुस्कान बिखेर दी। यह कोई साधारण पुस्तिका नहीं थी यह उनके लिए एक नई शुरुआत का प्रतीक बन गई। जेल के अधिकारीगण भी इस परिवर्तन से अभिभूत हैं। उनका कहना है कि यह अब जेल नहीं, एक सुधारगृह है, जहाँ योग ने चेतना का दीप जलाया है। जिन रोगों ने वर्षों से महिलाओं को जकड़ा हुआ था, वे अब योग की शक्ति से पीछे हट रहे हैं। यह आयोजन एक प्रमाण है कि यदि संकल्प हो, सहयोग हो और संवेदना हो, तो लोहे की सलाखों के भीतर भी एक उज्जवल भविष्य आकार ले सकता है।

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