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रविवार, 20 अप्रैल 2025

#story : "राजा, रानी और झोपड़ी की वो रोटी" .... लेखक : गोविंद गुप्ता

🔘 "राजा, रानी और झोपड़ी की वो रोटी"

कभी-कभी जीवन की चमक-धमक,
हमें अपने ही जीवन का सच्चा उजास भुला देती है।

एक समय की बात है —
एक विशाल साम्राज्य था, और उसका एक प्रतापी राजा।
राजा बुद्धिमान था, वीर था, किंतु हृदय से एक सामान्य पुरुष भी —
प्रेम का आकांक्षी, स्नेह का प्यासा।

उसकी रानी —
सौंदर्य और सादगी की प्रतिमा।
विनम्रता जिसमें लहर की तरह बहती थी,
और त्याग, जैसे उसकी सांसों में बसता हो।

विवाह को वर्षों बीत चुके थे।
रानी अब माँ थी — और माँ जब बनती है,
तो प्रेम के सारे रंग बच्चों में ढल जाते हैं।

राजा ने महसूस किया —
कि अब रानी की दृष्टि में पहले-सा आकर्षण नहीं।
वो बालों में फूल नहीं खोंसती,
न ही संध्या की बेला में राजा के संग बैठकर बातें करती।

मन उचाट हो गया।
और एक दिन वह शिकार पर निकल पड़ा,
जैसे बाहर का जंगल भीतर की बेचैनी को मिटा देगा।

लेकिन नियति ने एक और मोड़ रखा था।

घोड़े से गिरा राजा — घायल हो गया।
पास ही एक छोटी सी झोपड़ी थी,
जहाँ एक सुंदर नवयुवती ने उसे देखा,
और माता-पिता संग सेवा-सुश्रुषा में लग गई।

राजा के शरीर से पहले उसका मन ठीक हुआ —
उस झोपड़ी की सादगी में, उस कन्या की मुस्कान में
उसे नया आकर्षण दिखा।

राजमहल लौटते हुए, राजा का मन वहीं अटक गया।

कुछ समय पश्चात वह फिर लौटा —
और उस कन्या को अपनी दूसरी रानी बनाकर ले आया।

परंतु राजसी जीवन उस कन्या को रास न आया।
शरीर धीरे-धीरे रोगी हो गया, चेहरा मुरझाने लगा।

राजा ने वैद्य बुलवाए, मंत्रियों को दौड़ाया,
किन्तु रोग का कारण पकड़ में न आया।

एक अनुभवी दरबारी ने निवेदन किया —
“राजन, एक सप्ताह मुझे रानी की दिनचर्या देखने दें।”

अनुमति मिली।
दरबारी ने देखा —
सोन-पात्रों में परोसा गया भोजन untouched पड़ा होता।
वह रोटी — जो मिट्टी की खुशबू से बनती थी,
अब सोने की थाली में अपनी आत्मा खो चुकी थी।

रोटी छिपाकर गोशाला भेजी जाती थी।
रानी का मन वहाँ था, जहाँ कंडे की आँच पर
नमक-मिर्च की रोटी सिंकती थी।

दरबारी ने राजा से कहा —
“राजन, जिसे जिस मिट्टी में साँस लेना आया हो,
उसे महलों की हवा दम घोंटने लगती है।”

राजा मौन हो गया।
और उसी क्षण निर्णय लिया —
ससम्मान, प्रेम और संपत्ति देकर कन्या को उसके घर लौटा दिया।

राजमहल लौटते समय उसने पीछे मुड़कर देखा —
पर दिल अब आगे था… वहाँ, जहाँ उसकी पहली रानी
30 वर्षों से बिना किसी शिकायत के,
हर दिन अपने हाथों से भोजन बनाती रही।

राजा उसके पास गया —
और रानी ने मुस्कुरा कर कहा,
"मैंने तुम्हें कभी कम नहीं चाहा,
बस अपने कर्तव्यों में इतना खो गई कि
तुम्हारा ध्यान भी बच्चों की सफलता से छोटा लगने लगा।"

"तुम मेरे राजा हो,
पर वो मेरे भविष्य थे — जिनकी ज़िंदगी मेरी गोद से शुरू हुई थी।"


---

और उस दिन राजा को समझ आया —
कि प्रेम का अर्थ साज-सज्जा नहीं,
बल्कि मौन त्याग है… बिना दिखावे के।

झोपड़ी की रोटी स्वादिष्ट हो सकती है,
पर जीवन की भूख सिर्फ निभाने से मिटती है।

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