बात कुछ वर्ष पहले की है । महर्षि में हीँ आश्रम बनमनखी धरहरा में एक बार एक चोर बाबा के केला बगान में शाम को घुसा। जब आश्रम के सभी साधु महात्मा खाना खा पीकर सोने चले गए,तब वह चोर एक बड़े लाठी में कचिया को बाँधकर केला के गाछ से पका -पका केला काटने लगा ।(केला का बगान आश्रम से सटा हुआ हीं था।)एक शिष्य पेशाब करने केला बगान तरफ हीं जा रहे थे ,कि कुछ खुर- खुर की आवाज सुनाई दी, शिष्य वहीं रुक गये और इधर -उधर देखने लगे,तो देखते हैं कि एक चोर पका-पका केला काटकर उस केले को रस्सी से बांँध रहा है।वो शिष्य चुपके से जाकर उस चोर का सर्ट का काॅलर पकड़ लिया और एक रुम में उसको बाहर से बंद कर दिया।
जब सुबह हुई परमाराध्य गुरुदेव महर्षि मेंहीँ परमहंस जी महाराज अपने कक्ष से निकल कर बाहर आए और कुर्सी पर जैसे हीं बैठे, वैसे हीं वो शिष्य उस चोर को पकड़ कर गुरुदेव के सामने लाया और बोला कि गुरुदेव यह चोर केला बगान में केला चुरा कर भाग रहा था, इसको सजा दी जाए।
गुरु देव तो दयालु होते हैं,बोले कि यह शाम को हीं केला लेने आया होगा ,तभी से लेकर अभी तक यह बेचारा भूखा है,
सबसे पहले इसको चूड़ा-दही का भोजन कराओ ।अब वहाँ जितने भी शिष्यगण थे गुरु देव की उन बातों को सुनकर अवाक रह गए,और गुरुदेव की कही हुई बातों को मानी । शिष्य ने उन चोरों को भरपेट दही -चूड़ा खिलाया । फिर गुरुदेव शिष्य से बोले इसने जो केला काटकर बाँधी है,उस बाँधे हुए केले को इसके माथे पर रख दो , शिष्य ने गुरुदेव की बात मानी , फिर गुरुदेव उस चोर से बोले , बेचारा रात भर भूखा था ,जाओ सीधे घर चले जाओ।
सभी शिष्य गुरुदेव की इस बातों पर सोचने लगे कि हमलोग सोचे गुरुदेव उस चोर को सजा देंगे,यहाँ तो चोर के साथ सब उल्टा हीं हो गया, गुरुदेव उसको खिला भी दिए और माथा पर केला भी दिलवा दिए।
इधर चोर रास्ते में सोचने लगा कि मेरे घर में कुछ नहीं था , मैं बहुत भूखा था, गुरुदेव मेरी दुःख मन हीं मन समझ गये कि हम बहुत भूखे हैं इसलिए भोजन करवा दिए ,मेरे घर में एक दाना अनाज नहीं था , गुरुदेव मेरे घर की समस्या को भी देख लिए, इसलिए मेरे माथे पर कटा हुआ केला भी रखवा दिए।
गुरुदेव कितने दयालु होते हैं वो मन हीं मन सबकुछ देख लेते हैं और बुरे आदमी को भी माफ कर देते हैं, ऐसा सोचकर वह अपना घर गया , देखता है उसका बच्चा भूख से रो रहा है,सभी बच्चों को वह चोर, पका केला खाने को दिया, और पत्नी को कहा तुम भी पका केला खा लो, बहुत जोरों की भूख तुमको भी लगी होगी , फिर पत्नी ने भी पका केला खाई । केला खाने के बाद उस चोर ने धरहरा आश्रम एवं गुरुदेव के बारे में सारी बात अपनी पत्नी को बतलाया और बोला, आज से मैं कसम खाता हूंँ कि मैं अब कभी भी चोरी एवं झूठ नहीं बोलूँगा ।अब वह चोर सुधर गया ।
साल भर भी नहीं हुआ , धरहरा आश्रम आकर अपना परिचय उसी चोर के रुप में दिया , गुरुदेव से माफी माँगी और गुरुदेव से गुरु दीक्षा लेकर सत्कर्म करने लगा।
तो ऐसे होते हैं सतगुरु।
नीतू रानी
स्कूल -म०वि०सुरीगाँव
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