● खेती किसानी में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने के साथ ही अपनी आय में भी किया इजाफा
● ✍️ धर्मवीर गुप्ता, बाँकेगंज
उमस भरी गर्मी की जगह खुशगवार गुलाबी सर्दी ने ले ली है। अपने आप में खेती का पर्याय बन चुके यदुनंदन सिंह पुजारी दर्जनों महिला पुरुष श्रमिकों के साथ सुबह से शाम तक खेतों में व्यस्त हो गए हैं। हवा का रुख भांप कर खेती किसानी करने वाले श्री सिंह जहां कैश क्रॉप जिमीकंद की खुदाई और बाजार का खाका खींच रहे हैं वही गत वर्ष हुए लाभ को देखकर कम समय में ज्यादा मुनाफा देने वाली लहसुन की बुवाई में व्यस्त हो गए हैं। गैर परंपरागत खेती के जुनून ने उनके खेतों को कृषि अनुसंधान का केन्द्र बना दिया है। इससे क्षेत्र के तमाम किसानों को लाभ मिला है।
राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने के साथ ही कई सम्मान अर्जित कर चुके हैं यदुनंदन सिंह पुजारी के खेतों की सैर करना मानो किसी कृषि विज्ञान से संबंधित ग्रंथ के पन्ने पलटना जैसा लगता है। जिसका हर एक खेत ग्रंथ के पन्ने की तरह फसल की नई कहानी लिख रहा है। कहीं एक एकड़ में गुलाबों की बहार है तो दूसरे में गेंदे की फ़सल रोपी जा चुकी है। अगले खेत में पूरे एकड़ भर में लगी आधुनिक अमरूद की छोटी-छोटी टहनियों में भरे हुए फूलों पर मधुमक्खियां मकरंद ले रहीं हैं। अगले पड़ाव पर अन्नानास लहलहा रहे हैं। एक खेत में नवरात्रि में अपनी कीमत के कारण धूम मचा चुका केला फसल दे रहा है तो पड़ोस के खेत में केले की नई फसल चार फीट की हो चुकी है। उनके साथ बाग की छांव में बैठकर बात करते समय ऊपर नजर जाती है तो आंवले की टहनियां फलों से लदी हुई दिखाई देती है। सामने लीची के हरे भरे पौधे हैं उनमें कुछ तेज पत्ता और दालचीनी के भी हैं। इस सुहानी तस्वीर के तुरंत बाद बांस की नई खेती का ताना बाना बुनने को तैयार हो रही पौध एक एक अलग ही कौतूहल से भर देती है। इतनी विविधता की बाबत पूछे जाने पर वह कहते हैं कि धरती मां हमें उतना ही आशीर्वाद देती है जितनी उसकी सेवा की जाए। इन्हीं फसलों के मध्य कभी खीरा, ककड़ी, तरबूज तो कभी मक्के का भुट्टा और अदरक समय-समय पर सेवा का मेवा देते रहते हैं। वर्ष भर इससे मिलने पैसे उनके चेहरे पर मुस्कराहट बनाएं रखते हैं तो हरी भरी बगिया को संवारने वाले क्षेत्र के छोटे बड़े महिला पुरुष के हाथों को पर्याप्त मिलता हैं। बदले में मिले कैश से उनके चेहरे की रौनक बढ़ती है। वह मुस्कुरा कर कहते हैं कि खेती करना उनका उद्यम या व्यवसाय नहीं है बल्कि यह उनके जीवन जीने की एक राह है, जिसमें वह पूरी तरह से डूब चुके हैं और उन्हें बजाज मिल या सरकारी क्रय केंद्रों पर अपनी फसल बेचने को कभी मुंह ताकना नहीं पड़ता है। उन्हें तब सुकून मिलता है जब शिक्षित नवयुवकों का गुट उनसे इस राह को चुनने की सलाह मांगने आता है। वे किसी को भी मायूस नहीं करते हैं। खेती के वास्तविक स्वरूप को उनके सामने रखते हैं और उतार-चढ़ाव के बारे में बताते हैं। वे कहते हैं कि खेती करना भी एक कला है, जिसको समय-समय पर कभी मौसम तो कभी बीमारियों से चुनौती मिलती है परंतु यह महज चुनौती है। इनका समय पर निदान कर विजय पाई जा सकती है। खेती को पूरे चाव से करना चाहिए कभी नकारात्मक अथवा हीन भावना से नहीं देखना। कृषि विभाग और विश्वविद्यालय के कृषि छात्र यदा कदा खेती से रूबरू होने के लिए उनके खेत पर आते हैं। बहुत कुछ हमसे सीखते हैं और बहुत कुछ हमें सिखा कर जाते हैं। खेती करना घाटे का सौदा कभी नहीं होता है। हां, इसकी सेहत का ख्याल रखना उतना ही जरूरी है जितना की अपनी सेहत का। यदि यह बात ध्यान रहे तो न खेती बीमार होगी न कृषक का चेहरा मायूस होगा।
शिक्षित नवयुवकों से मेरी सलाह है कि खेती की तरफ सकारात्मक भाव से मुड़कर देखे न कभी उन्हें बेरोजगारी का दंश झेलना होगा न जॉब की चिंता होगी जैसे फसलें लहलहाएंगी वैसे उनके चेहरे मुस्कुराएंगे।
● वाराणसी और जौनपुर जिमिकंद का बाजार :
यदुनंदन सिंह पुजारी बताते है यूं तो दिवाली पर्व पर पूरे देश में जिमीकंद की मांग बढ़ जाती है परंतु बनारस और जौनपुर जिमीकंद की मंडी है इसलिए दीपावली से करीब एक सप्ताह पूर्व जिमीकंद की खुदाई कराकर जौनपुर तथा बनारस भेजेंगे।
● उगा चुके हैं यह फसलें :
यदुनंदन सिंह पुजारी का केले की खेती से शुरू हुआ सफर शतावर, पपीता, स्ट्राबेरी, प्याज, लहसुन, ताइवानी तरबूज, ताइवानी अमरूद, जिमिकंद, गेंदा, गुलाब, ग्लैडियोलस, अदरक, अनन्नास, की खेती से होकर गुजर रहा है। लीची, आंवला, तेज पत्ता, दालचीनी, मीठे स्वाद का अमरख, बारहों मास हरा भरा रहने वाला तुलसी का पौधा बगीचे की शोभा बढ़ाता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Post Comments