गणेश चतुर्थी के अवसर पर गणपति आगमन की धूम, जगह जगह पर सजे भव्य पंडाल, पूजा-उत्सव, भजन-कीर्तन को देख कर गोलू का मन भी मचल उठा बप्पा को घर लाने को मोदक का भोग लगाने का।
फिर क्या था ज़िद कर बैठा मां ओ मां हमें भी घर सजाना है गणपति बप्पा को घर लाना है, पर बेचारी मां गंगा, कहे तो क्या.! करे क्या.? बड़ी मुश्किल से रोटी का ही जुगाङ हो पाता है, जैसे तैसे गोलू की पढ़ाई और गुड़िया की दवाई!
ऐसे में आगमन से गणपति विसर्जन, मूर्ति, पूजा, भोग आदि की व्यवस्था करे भी तो कैसे.! अपने बच्चे का दिल भी नहीं तोड़ना चाहती थी वो और वर्षों से ऐसी ही चाह मन के किसी कोने में उसने भी दबा रखी थी।
अरे हां, मन में आए ख्याल ने उसकी आंखों में उत्साह की किरण जगा दी... शहर के किनारे स्थित सरोवर से स्वच्छ मिट्टी ला कर गणपति रूप में ढाल, रंग रोगन कर, पाते पर पीत वस्त्र बिछा कर, पुष्प से सजाकर और मोदक भोग लगाकर निज श्रद्धानुसार विधिवत पूजन अर्चन कर, नाचते गाते निर्धारित सरोवर में विसर्जन कर गोलू, गुड़िया के मन संग खुद के अंतर्मन को खुश कर दिया।
गंगा की इस सुधी सोंच, प्रयास और कार्य ने न केवल बच्चों को सुख दिया अपितु हम सभी को भी शिक्षा प्रदान की, कि यदि हम में विश्वास और आस हो, निर्णय लेने का सही प्रयास हो तो सब कुछ संभव है...
✍🏻रामG
राम मोहन गुप्त 'अमर'
लखीमपुर खीरी
गणपति बप्पा सब पर कृपा करें...
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