● साक्षरता को कौशल के साथ जोड़ें - विजय प्रकाश
दैनिक जनजागरण न्यूज। बिहार विद्यापीठ के देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय द्वारा अन्तरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस समारोह का आयोजन देशरत्न सभागार में किया गया। इस समारोह में मुख्य रूप से बिहार में प्रौढ़ शिक्षा : इतिहास के झरोखे से विषयक संगोष्ठी की गई तथा डॉ योगेन्द्र लाल दास, प्रो. डॉ रणविजय नारायण सिन्हा और अवधेश के. नारायण द्वारा लिखित और बिहार विद्यापीठ द्वारा प्रकाशित पुस्तक “एडल्ट एण्ड एलिमेंट्री एजुकेशन इन बिहार” का लोकार्पण सेवा निवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा वरीयतम अधिकारी श्री विजय प्रकाश, अध्यक्ष बिहार के करकमलों द्वारा किया गया।
इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय भाषण में श्री विजय प्रकाश लेखकों के इस प्रयास की सराहना की और कहा कि यह पुस्तक विगत सौ वर्षों के साक्षरता पर हुए शोध कार्यों का महत्वपूर्ण समेकन है। उन्होंने कहा कि असाक्षरों को केवल अक्षरों और अंकों का बोध कराना मात्र लक्ष्य नहीं है बल्कि उसमें व्यावसायिक कौशल सहित अन्य कौशलों को विकसित करना आवश्यक है। साक्षरता एवं आर्थिक सामाजिक बदलाव का सशक्त माध्यम है| साक्षरता का लक्ष्य असाक्षरों के जीवन स्तर को बेहतर बनाना, स्वावलंबी बनाना, और एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभाने लायक बनाना है, ताकि वे एक सम्मान पूर्वक जीवन यापन करते हुए राष्ट्रीय विकास में योगदान कर सके।
जनशिक्षा निदेशक, बिहार तथा शिक्षा सचिव बिहार के पदों पर रहते हुए साक्षरता कार्यक्रम में अपने नवाचारी प्रयोगों के अनुभवों को साझा करते हुए उनहोंने कहा कि प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय का नाम बदलकर जन शिक्षा निदेशालय किया ताकि एक व्यापक परिदृश्य में भारतीय ग्रामीण नागरिकों को हुनर से लैस कर एक संसाधन के रूप में न केवल विकसित किया जाए बल्कि लोकतांत्रिक जीवन शैली में संस्कारित कर राष्ट्रीय मूल्यों को आत्मसात कराया जाए। उन्होंने कहा कि सीखने-सिखाने की प्रक्रिया मातृभाषा में सुगम होती है इसलिए उन्होंने देश भर में पहली बार मातृभाषा या स्थानीय बोली में प्रवेशिका तैयार करवाया। ताकि मातृभाषा में पहले साक्षर किया जा सके तब उन्हें हिन्दी भाषा से परिचित कराया जाए। इसके लिए जिला बार प्रवेशिका बनवाया। धनबाद के लिए काला सोना, दरभंगा के लिए माटी पानी इत्यादि तथा अन्य स्थानीय भाषा यथा संताली, मुण्डारी, भोजपुरी भाषा में एवं बोली में प्रवेशिकाएं विकसित की गईं। उन्होंने रूचि के अनुरूप शिक्षा के विषय को बनाने के लिए सांस्कृतिक विषय आधारित यथा- रामायण, हनुमान चालीसा आदि को पढ़ाने पर बल दिया। उन्होंने पाउलोफ्रेयर के शिक्षण विधि की भी चर्चा की और आई.पी.सी.एल. शिक्षण विधि को कारगर बताया क्योकि इस विधि से शिक्षण की गति बहुत तेज हो जाती है। उन्होंने प्रशिक्षुओं को कम से कम अपने समुदाय के दो प्रौढ़ असाक्षरों को साक्षर बनाने के लिए संकल्पित होने के लिए प्रेरित किया।
डॉ राणा अवधेश कुमार भा.प्र.से. (से.नि.) सम्प्रति सचिव बिहार विद्यापीठ ने अपने संबोधन में कहा कि अर्नाकुलम माडल के आधार पर ही बिहार में साक्षरता अभियान संचालित हुआ। महिला साक्षरता पर विशेष बल दिया गया । फलत: महिला साक्षरता और कुल साक्षरता में वृद्धि हुयी। साक्षरता सद्भाव बढ़ाने का कार्यक्रम है।
अली इमाम, पूर्व प्राचार्य, डायट बिक्रम, पटना ने अपने संबोधन में कहा कि 1937 में सर सैयद महमूद ने पहली बार संगठित रूप से प्रौढ़ शिक्षा का कार्यक्रम संचालित करवाया। साक्षरता के क्षेत्र में दीपायतन जैसी संस्था की भूमिका सराहनीय रही है। राज्य का यह पुनीत कर्तव्य है कि राज्य के वर्तमान साक्षरता कार्यक्रमों में दीपायतन की भूमिका सुनिश्चित करे।
निकुंज प्रकाश नारायण पूर्व निदेशक,शोध एवं प्रशिक्षण, बिहार सरकार ने साक्षरता और अनोपचारिक शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि- शिक्षा और साक्षरता में ज्ञान और गुण दो बातों का समावेश है। अत: ज्ञान अर्जन के साथ पढने वालों में उन गुणों को विकसित करना जरुरी है जिससे वे बेहतर जीवन जी सकें।
वाई एल दास निदेशक शोध बिहार विद्यापीठ ने “एडल्ट एण्ड एलिमेंट्री एजुकेशन इन बिहार” पुस्तक के लेखक की हैसियत से कहा कि यह पुस्तक जहां प्रौढ़ शिक्षा के सौ साल के इतिहास से रूबरू कराती है ,वहीं प्रौढ़ शिक्षा और एलिमेंट्री एजुकेशन में हुए अनुसंधान के विश्लेषणात्मक अध्ययन के निष्कर्षों से भी अवगत कराती है।आज़ के सन्दर्भ में यह प्रामाणिक दस्तावेज है जो प्रौढ़ शिक्षा और प्रारंभिक शिक्षा को एक सुधारात्मक कार्रवाई के लिए दिशा बोध कराती है। उन्होंने साक्षर, शिक्षित और ज्ञान मूलक समाज के निर्माण के लिए सभी बुद्धिजीवियों को अपना महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए प्रेरित किया।
अवधेश के नारायण, सहायक सचिव, बिहार विद्यापीठ ने बिहार में प्रौढ़ शिक्षा के इतिहास से परिचय कराते हुए कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में 1857 के गदर से लेकर 1947 तक साक्षरता कक्षाएं राष्ट्रीयता और गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए जागरुकता हेतु चलाई जाती रही। 1917 में चम्पारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी ने यह महसूस किया कि शिक्षा और साक्षरता ही मुक्ति का एक मात्र साधन है। इसलिए महात्मा गांधी ने साक्षरता, शिक्षा विशेष कर स्वास्थ्य, स्वच्छता, स्वावलंबन हेतु हुनर,कौशल की शिक्षा के लिए विद्यालय खोला था। उन्होंने देश में चलाये गये पुलिस एजुकेशन, कैदियों की शिक्षा, सामाजिक शिक्षा अभियान, लाइब्रेरी मूवमेंट, ईच वन टीच वन, राष्ट्रीय पौढ़ शिक्षा कार्यक्रम, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन इत्यादि की विशेष चर्चा की।
मृदुला प्रकाश, निदेशक, (शिक्षा संस्कृति एवं संग्रहालय) बिहार विद्यापीठ ने कहा कि महिलाओं को सशक्त, जागरूक और स्वावलंबी बनाने के लिए साक्षरता और हुनर से लैस करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। महिला चरखा समिति कदमकुआं पटना की स्थापना के पीछे प्रभावती देवी का यही उद्देश्य था। वे जीवन पर्यन्त महिलाओं को जागृत करती रहीं, घरेलू और कुटीर उद्योग में प्रशिक्षित करती रही, उसी परम्परा को आगे हमलोग आगे बढ़ा रहे हैं।
अनिल प्रसाद पूर्व प्राध्यापक अंग्रेजी विभाग, यमन में शिक्षा को पानी और हवा के समान जरुरी बताया। रणविजय नारायण सिन्हा ने भी अपने विचार व्यक्त किया|
श्यामानंद चौधरी निदेशक ने अपने वक्तव्य में साक्षरता के क्षेत्र में किये गए प्रयोगों के अपने अनुभवों को साझा किया|
कार्यक्रम में चन्द्रकान्त आर्य ने उद्घोषणा का कार्य किया | श्रीमती मिताली मित्रा ने आगत अतिथियों का स्वागत किया। रिम्पल कुमारी ने धन्यवान ज्ञापन के साथ कार्यक्रम समापन की घोषणा की।
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