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शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

काव्य कलिका : शिक्षक दिवस विशेष - डॉ0 गिरिधर रॉय

● उन तमाम गुरुओं को जिनसे कुछ भी सीखा उनको सादर नमन करते हुए उनके श्रीचरणों में श्रद्धासुमन के रूप में कुछ पंक्तियॉं समर्पित हैं।


शिक्षक दिवसके अवसर पर
करते  हैं  गुरुओं  का  वंदन
जिनसे जगको ज्ञान मिला है 
चलो करें  उनका अभिनंदन

प्रथम गुरु  तो  माँ  होती  है,
पर नहीं परीक्षा  वो लेती  है,   
चूम-चाटकर सुधा पिलाकर 
निर्मल निश्छल कर  देती है 

किससे  कैसा  व्यवहार करें 
यह माँ  ही तो सिखलाती है    
छूकर चरण प्रणाम करो तुम
यह भी  हमको  बतलाती है

गुरु ही ब्रह्मा  गुरु ही विष्णु
गुरुवर  ही  है  शंकर  दानी 
विश्वकोश  हैं   गुरु   हमारे 
कौन भला है  इनसे  ज्ञानी 

गुरुओं का इतिहास रहा है 
कैसे - कैसे शिष्य  दिए थे,
पर कुछ  ऐसे  गुरु  हुए  हैं
शिष्य अगूँठा माँग लिए थे 

गुरु-शिष्यके शुचि रिश्तेको,
पुनः  धरा पे  लाना  ही  है,
बदला सबकुछ कैसे इतना 
ज़िम्मेदार  जमाना  भी  है

गुरुकुल में गोली चलती हैं, 
विद्यालय में  बम  हैं  बनते 
और मदरसों की  ये हालत
आतंकी  उसमें   हैं  पलते  

ना अब वैसे  गुरु  रह  गए
ना  ही  अब  वैसे  चेले  हैं,
कहीं दिखाई दिए अगर तो
सौ में बस  वही अकेले  हैं

विश्वगुरु के पद पर हिन्द को
फिरसे स्थापित करना होगा,
चन्द्रगुप्त  को  लाना  है  तो 
चाणक्य  हमें   बनना  होगा

                       ✍️ ●  डॉ. गिरिधर राय
                                  *************

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