मानवी मधु बनीं दरोगा ताली बजाने से ताली बजवाने तक का सफर नहीं था आसान
पटना । जिसने बचपन से ही अपनी पहचान को लेकर भेदभाव सहा। समाज और रिश्तेदारों के तानों के डर से असली पहचान छिपाई। आर्थिक तंगी झेली। पिता का साया सिर से उठने के बाद घर की जिम्मेदारी भी संभाली। कभी समाज के ताने सुनने वाली मानवी मधु कश्यप अब लोगों के लिए मिसाल बन गई है।यह कहानी है मानवी मधु कश्यप की। ताली बजाने से ताली बजवाने तक की कहानी है मानवी मधु कश्यप की। जहा किन्नरों को समाज में एक अलग ही नज़र से देखा जाता है,उनको समाज मे वो दर्ज़ा नहीं दिया जाता जो एक आम नागरिक को भी दिया जाना चाहिए ,वही बिहार की मानवी मधु कश्यप ने हर उस इंसान के मुँह पर एक ऐसा तमाचा है जो किन्नरों को अलग नज़रिये से देखते है।
मानवी ने अपनी कड़ी मेहनत और दृढ संकल्प से बिहार की पहली किन्नर दरोगा बन ,समाज मे एक नया सन्देश और साथ ही किन्नरों को एक नयी पहचान दी है। बिहार पुलिस में दारोगा के पद पर चयनित होने वाले तीन ट्रांसजेंडर उम्मीदवारों में मधु एकमात्र ट्रांसवुमेन हैं।आपको बता दे की मधु बाक़ा जिले की रहने वाली है। बचपन मे मां ने बेटे को जन्म दिया था। पर जब मधु ने होश संभाला तो खुद को लड़की महसूस किया और समाज ने उसे 'हिजड़ा, किन्नर, छक्का और कोथी' जैसे नाम दिए। बचपन से ही मधु को अपने अस्तित्व को लेकर भेद भाव का सामना करना पड़ा। सम्मान के साथ जिंदगी जीने का सपना देखना और उसे अपनी आइडेंटिटी के साथ साकार होते देखना मानवी को अंदर ही अंदर खा रहा था। और फिर मानवी ने निश्चय किया की वो कड़ी मेहनत करके अपने आपको को एक सम्मानजनक पहचान देंगी।
और फिर क्या था मानवी निकल पड़ी अपनी राह पर। समाज और रिश्तेदारों के तानो के बीच मानवी ने अपनी स्नातक की डिग्री पूरी की। बचपन मे ही माधवी के पिता के गुजरने की वजह से परिवार की ज़िम्मेदारी उनपर आ गयी। पर आर्थिक तंगी होने के बावजूद मानवी आगे बढ़ती रही। साल 2022 में मधु ने मद्य निषेध विभाग में सिपाही पद के लिए परीक्षा दी। लिखित परीक्षा में सफलता मिली लेकिन शारीरिक परीक्षा में वह चूक गईं। उस दौरान उनकी सर्जरी हुई थी और वह छह महीने तक बिस्तर पर रहीं।लेकिन मधु ने हार नहीं मानी और अपने सफर को जारी रखते हुए आगे बढ़ती रही। इस बार उन्होंने दारोगा पद के लिए आवेदन किया और सफलता हासिल की। मधु की इस उपलब्धि पर उनके परिवार और दोस्तों में खुशी की लहर है। वही परिवार और रिश्तेदार जो कभी उनको अलग नज़र से देखते थे आज उनकी इस कामयाबी पर उनको बधाई दे रहे है।मधु की राह आसान नहीं रही। भीख मांगनी पड़ी, तालियां बजानी पड़ी और लोगों की हिकारत और दुत्कार भी सहनी पड़ी । आर्थिक तंगी का सामना करते हुए उन्होने सिर्फ कुछ चीज़ो का साथ कभी नहीं छोड़ा। वो थी उनकी हिम्मत और दृढ संकल्प। मधु की कहानी उन सभी लोगों के लिए मिसाल है जो सामाजिक रूढ़ियों और भेदभाव का सामना करते हुए अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते है। हर उस शख्स के लिए एक मिसाल है मधु की कहानी जो कुछ कर गुजरने की चाहत मे हर बाधा का सामना कर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते है।
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