प्रयागराज गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर श्रीशंकराचार्य आश्रम ब्रह्मनिवास अलोपीबाग में चातुर्मास कर रहे श्रीमज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरुशंकराचार्य स्वामी वासुदेवादन्द सरस्वती जी महाराज के सानिध्य में भव्य दिव्य रूद्राभिषेक सम्पन्न हुआ। उक्त अवसर पर पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने बताया कि भगवान आदिशंकराचार्य जी महाराज ने ज्योतिष्पीठ, शारदापीठ, श्रृंगेरीपीठ और गोवर्धनपीठ की स्थापना किया और हर एक पीठ में एक-एक विद्वान प्रमुख के रूप में आचार्य बनाकर वेद आदि के प्रचार-प्रसार के लिये नामित किया। श्रीमज्ज्योतिष्पीठ के पीठाधीश्वर के रूप में पूज्य पीठोद्धारक ब्रह्मलीन स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती जी महाराज को सन् 1941 में देश के विद्वान संतों, तपस्वियों, राजाओं, महाराजाओं ने मिलकर पीठासीन किया। उन्होंने बताया कि सन् 1941 के पहले 165 वर्षों तक ज्योतिष्पीठ प्राकृतिक एवं क्षेत्रीय बाधाओं के कारण सुचालित नहीं हो पाया, किन्तु पूज्य पीठोद्धारक जी महाराज ने सन् 1941 के पश्चात् पीठासीन होने पर सनातन धर्म की रीढ़ गुरु परम्परा को पुनर्जीवित किया और वेद और शास्त्रों के प्रचार-प्रसार के लिये कठिन परिश्रम करके जन सामान्य तक पहुँचाया। पूज्य स्वामी जी ज्ञानी एवं तपस्वी संत होने के कारण सनातन धर्मियों में नई चेतना जागृत किया।
उक्त कार्यक्रम में श्रीमज्ज्योतिष्पीठ संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व प्रधानाचार्य पं0 शिवार्चन उपाध्याय, दण्डी स्वामी विनोदानन्द जी, दण्डी स्वामी अद्वैतानन्द जी, आचार्य छोटे लाल जी, आचार्य विपिन जी मिश्र, आचार्य अभिषेक मिश्र, आचार्य मनीष मिश्र आदि सहित विभिन्न प्रान्तों के जिलों से आये हुये श्रृद्धालु भक्तों ने भी मन्दिर में स्थापित भगवान राधामाधव, हनुमान जी, गणेश भगवान सहित भगवान आदिजगद्गुरू शंकराचार्य एवं पूज्य पीठोद्धारक स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती जी की पूजा-आरती किया।
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