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बुधवार, 17 जुलाई 2024

डिजिटल हाजिरी निर्णय वापसी से सरकारी शिक्षा व्यवस्था में सुधार की उम्मीद को लगा झटका

  धर्मवीर गुप्ताबांकेगंज। सरकार द्वारा डिजिटल हाजिरी लिए जाने के निर्णय का शिक्षकों द्वारा पुरज़ोर विरोध किए जाने से राज्य सरकार द्वारा दो माह के लिए डिजिटल हाजिरी पर रोक लगा देने से थोड़े समय के लिए अभिभावकों की सरकारी शिक्षा में सुधार की उम्मीद को झटका लगा है। उन्हें उम्मीद है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लोकहित का ध्यान रखते हुए इसे शीघ्र ही लागू करायेंगे। 
    योग्य शिक्षकों के बावजूद परिषदीय विद्यालयों की लचर शिक्षा व्यवस्था ने निजी विद्यालयों को फलने फूलने का अवसर दिया। शिक्षकों का विद्यालय समय से नहीं पहुंचना। कई कई दिन तक विद्यालयों से गायब रहना, हाजिरी लगाने के बाद अपने निजी कार्य से बाहर चले जाना, बच्चों की शिक्षा के प्रति जवाबदेही न होने जैसे कारकों से आम जनमानस का विश्वास इन विद्यालयों से कम होता गया। परिणाम यह हुआ कि रिक्शा चालक से लेकर मेहनत मजदूरी करके जीवन यापन करने वाले लोगों ने निजी विद्यालयों में अपने बच्चों का प्रवेश करना शुरू कर दिया जहां महंगी फीस, आने जाने का किराया, रास्ते के खतरों का सामना उन्हें करना पड़ता है परंतु बच्चों के उज्जवल भविष्य और उन्हें किसी उच्च पद पर पहुंचाने की ललक उन्हें ऐसा करने को मजबूर करती है। कुछ लोगों ने बीच का रास्ता निकाल लिया। सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए परिषदीय विद्यालयों में तथा अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए निजी विद्यालयों में दोहरा नामांकन कराना शुरू कर दिया। इससे परिषदीय विद्यालयों में पढ़ा रहे शिक्षकों को जहां अपने विद्यालयों में बच्चों की संख्या अधिक दिखाने तथा उनके लिए आने वाले मिड डे मील के  राशन और अन्य सामग्री को हड़पने का अवसर मिला तो वहीं निजी विद्यालयों को भी अपने हित पूरे होते दिखाई देने लगे। बीते दो वर्षों से यू डायस पर आधार सहित बच्चों का ब्यौरा भरे जाने से  परिषदीय विद्यालयों के कई शिक्षकों के सामने बच्चों की संख्या पूरी करना कठिन कार्य हो गया। निजी विद्यालयों ने भी प्रभावों से एक ही नामांकन करने के लिए कहना शुरू कर दिया। इससे एक झटका तो पहले ही परिषद दिए विद्यालयों के शिक्षकों को मिल चुका था। 
     शासन द्वारा शिक्षकों को दूसरा झटका डिजिटल हाजिरी के रूप में दिया गया। कुछ कर्तव्यनिष्ठ शिक्षकों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश शिक्षक समय पर विद्यालय नहीं पहुंचते हैं। कई सौ किलोमीटर दूर से आकर बच्चों को पढ़ाने का दायित्व लेने शिक्षक आए दिन विद्यालय से अनुपस्थित रहते हैं ऐसे में डिजिटल हाजिरी ने ग्रामीण जनमानस के मन में एक उम्मीद बना दी थी कि सरकारी शिक्षण व्यवस्था में उन्हें सुधार दिखाई देगा और उन्हें महंगे निजी विद्यालयों से छुटकारा मिल जाएगा परंतु विभिन्न शिक्षक संगठनों द्वारा डिजिटल हाजिरी का पुरजोर विरोध किये जाने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा दो माह के लिए डिजिटल हाजिरी पर लगाई गई रोक से जनमानस की उम्मीद को बड़ा झटका लगा है। यद्यपि कर्तव्यनिष्ठ शिक्षक भी शिक्षक संगठनों के इस विरोध को गलत मानते हैं परंतु अपने ही साथियों के विरुद्ध कुछ भी कहने से बचते हैं। एक शिक्षक तो यहां तक कहते हैं कि अभी कुछ दिन पहले ही दूर से आकर पढ़ाने वाले चार शिक्षक एक साथ विद्यालय से अनुपस्थित रहे और अगले दिन आकर उन्होंने उपस्थित दर्ज की। वे डिजिटल हाजिरी का विरोध भी कर रहे हैं। 
     कई समाज सेवी यह मानते हैं कि शासन को शिक्षकों के विरोध के आगे झुकना नहीं चाहिए बल्कि इसे कड़ाई से लागू करना चाहिए। हां, जहाँ अपेक्षित सुधार की जरूरत हो वहां सुधार अवश्य किया जाना चाहिए। यदि शिक्षक फिर भी विद्यालय नहीं जाना चाहते हैं तो उन्हें पदमुक्त कर देना चाहिए। उनके स्थान की पूर्ति, टी ई टी, बी टी सी, बी एड जैसी परीक्षा उत्पन्न करके बेरोजगार घूमने वाले करोड़ों युवाओं की नियुक्ति करके की जा सकती है। शिक्षक छात्र के भविष्य का निर्माता ही नहीं अपितु राष्ट्र की दशा और दिशा तय करने वाले होते हैं। उनकी उचित मांग को तो सरकार द्वारा माना जाना चाहिए परंतु डिजिटल हाजिरी और बच्चों की शिक्षा के प्रति जवाब देही जैसे मामलों में कोई समझौता किया जाना लोकहित में नहीं कहा जा सकता है। शिक्षक संगठनों को भी व्यक्तिगत स्वार्थ से बचना चाहिए और लोकहित के लिए डिजिटल हाजिरी पर अपनी सहमति देनी चाहिए। उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि गरीबों के बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ का प्रतिफल उनके अपने बच्चों के लड़खड़ाते भविष्य के रूप में मिलेगा।
    भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार को भी लोकहित को दृष्टिगत रखते हुए शिक्षकों की इस अनुचित मांग के आगे झुकना नहीं चाहिए। हो सकता है कि शिक्षक 2027 के चुनाव में शासन के विरोध में चले जाएं परंतु उनकी संख्या कुछ लाख में होगी परंतु उन विद्यालयों में पढ़ने वाले सैकड़ो बच्चों के माता-पिता की संख्या इनसे कहीं अधिक होगी यदि शासन कठोरता से निर्णय को लागू करने में सफल रहा और शिक्षा में सुधार हुआ तो उन अभिभावकों का विश्वास शासन सत्ता पर और बढ़ेगा। हो सकता है इसका लाभ भाजपा सरकार को तीसरी बार सत्ता रूढ़ होने के रूप में मिल सके। बस, भाजपा कार्यकर्ताओं को अपने घरों से निकलकर सरकार के निर्णय को जन जन तक पहुंचाने की जरूरत होगी।


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