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मंगलवार, 9 जुलाई 2024

संगम नगरी में है पूरी दुनिया का भीष्म पितामह का इकलौता मंदिर,लंबी उम्र की लोग मांगते हैं दुआ

प्रयागराज।संगम नगरी सदियों से धार्मिक पर्यटन का एक महत्वपूर्ण केंद्र रही है।यहां हर 12 साल में आयोजित होने वाला महाकुंभ का मेला हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र तीर्थ यात्राओं में से एक है।संगम नगरी में महाभारत काल के भीष्म पितामह का एक प्राचीन मंदिर है।
भीष्म पितामह पूरे महाभारत में सबसे वरिष्ठ और सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में शामिल थे।भीष्म पितामह अपनी सूझबूझ और परिपक्वता से महाभारत के भीष्म पितामह कहलाए।भीष्म पितामह का एकमात्र मंदिर संगम नगरी के दारागंज में नाग वासुकी मंदिर के पास है।यहां दीपावली और पितृपक्ष में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।मंदिर के संरक्षक पंडित श्याम बिहारी मिश्र बताते हैं कि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था।आज भी ऐसा माना जाता है कि वह जीवित है। इसी वजह से यहां आने वाले श्रद्धालु अपने और अपने परिवार के लोगों के लिए लंबी उम्र की दुआओं की कामना करते हैं।
पंडित श्याम बिहारी मिश्र बताते हैं कि दारागंज में स्थित भीष्म पितामह का या मूर्ति भारतवर्ष में एकमात्र है जो 12 फीट लंबी है।भीष्म पितामह यहां बड़ों की सैया पर लेटे हुए हैं।या उसी मुद्रा में बनी है जब जैसे की अर्जुन के द्वारा भीष्म पितामह को बड़ों की सैया पर लेटा दिया गया था,लेकिन उनकी मृत्यु नहीं हो रही थी,क्योंकि उनको इच्छा मृत्यु का वरदान था।इस प्रकार की मुद्रा में भीष्म पितामह आज भी मौजूद हैं।श्याम बिहारी मिश्रा के मुताबिक पूरे महाभारत के सबसे महान योद्धाओं में शामिल भीष्म पितामह का जिक्र तो महाभारत में होता है,लेकिन इनकी पूरी दुनिया में कहीं मूर्ति नहीं बनी है। इसी के चलते प्रयागराज के तीर्थ पुरोहितों ने हजारों वर्ष पहले मिलकर भीष्म पितामह के इस मूर्ति का निर्माण करवाया था। बताते हैं कि ऐसी मान्यता ठीक ही पहले इस मूर्ति से खून निकलता था,लेकिन वर्तमान में ऐसा कुछ नहीं है।बता दें कि संगम नगरी में 2025 में लगने वाले महाकुंभ की वजह से सभी प्राचीन धार्मिक मंदिरों का नवनिर्माण किया जा रहा है।इसी कड़ी में नवास की मंदिर के पास भीष्म पितामह के मंदिर को भी नए सिरे से बनाया जा रहा है।जहां बड़ी संख्या में रोज देश भर के श्रद्धालु आकर इनका दर्शन करते हैं।

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