Breaking

सोमवार, 22 अप्रैल 2024

सोमवार विशेष / त्रिनेत्र धारी अविनाशी शिव को क्यों कहा जाता है त्रिलोचन ? क्या है त्रिनेत्र की कथा ?

● त्रिनेत्र धारी अविनाशी शिव को क्यों कहा जाता है त्रिलोचन, क्या है भगवान भोलेनाथ के "त्रिनेत्र" की कथा, जानिए यहां... 


 भगवान शिव आदि, अनादि माने जाते हैं यानी की भगवान शिव जिनका न कोई आरम्भ है और न ही कोई अंत। कोई नहीं जानता कि भगवान शिव का जन्म कब हुआ और कैसे हुआ था और ना ही कोई जानता है कि भगवान शिव कहां रहते हैं। भक्तों के मन में बस शिव के प्रति सच्ची भावना होनी चाहिए। भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत पर है। भगवान शिव को समय और काल चक्कर के बंधनों से परे माना जाता है, जिन पर वासना, भावना, अपमान, मान, मोह , माया आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।भोलेनाथ महादेव को त्रिलोचन के नाम से भी जाना जाता है। त्रिलोचन का अर्थ है तीन आंखों वाले प्रभु महाकाल। भगवान शिव ही एक मात्र ऐसे देव हैं, जिनकी तीन आंख हैं। मान्यता के अनुसार प्रभु नीलकंठ अपनी तीसरी आंख का प्रयोग तब करते हैं, जब उन्हें सृस्टि का संहार करना होता है। आखिर भगवान शिव को कैसे मिला तीसरा नेत्र? क्या है इसका रहस्य। क्या है शिव के त्रिनेत्र की पौराणिक कथा, आइए जानते हैं महाभारत के छठे खंड के अनुशासन पर्व में बताया गया है कि किस तरह से शिवजी को तीसरी आंख मिली। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार नारद जी भगवान शिव और माता पार्वती के बीच हुए बातचीत को बताते हैं। इसी बातचीत में त्रिनेत्र का रहस्य छुपा हुआ है।नारद जी बताते हैं कि एक बार हिमालय पर भगवान शिव एक सभा कर रहे थे, जिसमें सभी देवता, ऋषि-मुनि और ज्ञानीजन शामिल थे। तभी सभा में माता पार्वती आईं और उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए अपने दोनों हाथों से भगवान शिव की दोनों आंखों को ढक दिया।जैसे ही माता पार्वती ने भगवान शिव की आंखों को ढंका, संपूर्ण सृष्टि में अंधेरा छा गया। ऐसा लगने लगा जैसे सूर्य देव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। इसके बाद धरती पर मौजूद सभी जीव-जंतुओं के बीच जीवन का संकट पैदा हो गया।सूर्य के प्रकाश का प्रभाव खत्म हो गया और धरती पर हाहाकार मच गया था। अंधकार इस प्रकार का था कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी कुछ नहीं देख पा रहे थे। तभी भगवान शिव ने अपने माथे पर ज्योतिपुंज प्रकट किया।इसी वजह से सृष्टि में वापस से रोशनी लौटी उनकी ज्योतिपुंज को ही तीसरी आंख कहा जाता है। ऐसे में पार्वती जी ने भी शिव से उनकी तीसरी आंख के रहस्य के बारे में पूछा था तब शिवजी ने उन्हें बताया था कि उनकी तीसरी आंखें जगत की पालनहार है। अगर वह ज्योतिपुंज ही प्रकट नहीं करते तो सृष्टि का विनाश हो जाता। ऐसे में शिवजी अपनी तीसरी आंख तभी खोलते हैं जब विनाश का समय होता है। उससे पहले वह अपनी तीसरी आंख को हमेशा बंद रखते हैं।कई धर्मग्रंथों में कहा गया है कि शिव जी की एक आंख सूर्य है, तो दूसरी आंख चंद्रमा है। इसलिए जब पार्वती जी ने उनके नेत्रों को बंद किया तो चारों ओर अन्धकार फैल गया था।कहते हैं शिव जी की तीसरी आंख उनका कोई अतिरिक्त अंग नहीं है बल्कि ये उनकी दिव्य दृष्टि का प्रतीक है, जो आत्मज्ञान के लिए बेहद ज़रूरी है। शिव जी को संसार का संहारक कहा जाता है जब जब संकट के बादल छाए तब तब भोलेनाथ ने पूरे संसार को विपदा से बचाया है।माना जाता है कि महादेव की तीसरी आंख से कुछ भी बच नहीं सकता। उनकी यह आंख तब तक बंद रहती है जब तक उनका मन शांत होता है किन्तु जब उन्हें क्रोध आता है तो उनके इस नेत्र की अग्नि से कोई नहीं बच सकता।शिव जी की तीसरी आंख हमे यह सन्देश देती है कि हर मनुष्य के पास तीन आंखें होती है। ज़रुरत है तो सही समय पर उसका सही उपयोग करने की। ये तीसरी आंख हमें आने वाले संकट से अवगत कराती है। सही गलत के बीच हमें फर्क बताती है और साथ ही हमें सही रास्ता भी दिखाती है।
जीवन में कई बार ऐसी परेशानियां आ जाती है जिन्हें हम समझ नहीं पाते ऐसी परिस्तिथि में यह हमारा मार्गदर्शन करती है। धैर्य और संयम बनाए रखने में भी ये हमारी मदद करती है।भगवान शिव शव के जलने के बाद उस भस्म को अपने पूरे शरीर पर लगाते हैं। इसका अर्थ यह है कि हमारा यह शरीर नश्वर है। एक न एक दिन इसी प्रकार राख हो जाएगा इसलिए हमें कभी भी इस पर घमंड नहीं करना चाहिए। साथ ही सुख और दुःख दोनों हो जीवन का हिस्सा है, जो व्यक्ति खुद को परिस्तिथियों के ढाल लेता है उसका जीवन सफल हो जाता है और यह उसका सबसे बड़ा गुण होता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Comments