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सोमवार, 22 अप्रैल 2024

21वें संन्यास दिवस के उपलक्ष्य में गंगा पार संन्यास समज्या समारोह, जुटे संत और दण्डी संन्यासी

21वें संन्यास दिवस के उपलक्ष्य में गंगा पार संन्यास समज्या समारोह, जुटे संत और दण्डी संन्यासी, स्वामी अबिमुक्तेश्वरानंद सरस्वती.

प्रयागराज मनुष्य का शरीर प्राप्त होने पर भी, भगवदर्पण बुद्धि विकसित होने के बाद भी यदि हम योगीजनों के मार्ग (सन्यास-मार्ग) का अवलम्ब ना लें तो शायद ये इस दुर्लभ मानव शरीर के साथ सबसे बडा अन्याय होगा। इसलिए समय से तत्वोपलब्धि हो जाए इसके लिए जीवन की सबसे बडी उपलब्धि सन्यास की उपलब्धि है। ये उद्गार ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती के है।
शंकराचार्य अपने 21वें संन्यास दिवस के उपलक्ष्य में गंगा उस पार आयोजित संन्यास समज्या समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। शंकराचार्य ने कहा कि जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि ज्ञानप्राप्ति है क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है ऋते ज्ञानान्नमुक्तिः ज्ञान के बिना मुक्ति सम्भव नहीं है। सन्यास समज्या केदारघाट स्थित श्री विद्यामठ में सन्तों व भक्तों ने महोत्सव के रूप में मनाया ।संन्यास समज्या महोत्सव के प्रथम सत्र में प्रातः काल विरक्त दीक्षा लेकर चार ब्रम्ह्चारी शंकराचार्य परम्परा को समर्पित हुए। लक्षेश्वर धाम सलधा के ब्रम्ह्चारी ज्योतिर्मयानंद ने शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद से दंड संन्यास की दीक्षा ग्रहण की और अब से वे अपने नए नाम सृज्योतिर्मयानंद: सरस्वती के नाम से जाने जाएंगे। तीन अन्य ने भी विरक्त दीक्षा ग्रहण की । जिसमें गुजरात के पण्ड्या नैषध,अब से केश्वेश्वरानंद ब्रम्ह्चारी के रूप में,बंगाल के वैराग्य अब साधु सर्वशरण दास,तीसरे ब्रम्ह्चारी को पुरुषोत्तमानंद ब्रम्ह्चारी के रूप में जाना जाएगा।संन्यास समज्या में सायंकाल वेद के विभिन्न शाखाओं के विद्यार्थियों के मंगलाचरण प्रस्तुत किया। भारत धर्म महामंडल के श्रीप्रकाश पाण्डेय ने शंकराचार्य के व्यक्तित्व व कृतित्व पर स्वरचित अपनी रचना सुनाई। संन्यास समज्या के अवसर पर ही अमेरिका निवासी लेखक व बेस्ट सेलर एवार्ड से पुरस्कृत अनंतरमन विश्वनाथन की शंकराचार्य जी और गौमाता से सन्दर्भित पुस्तक का लोकार्पण हुआ। साथ ही यतीन्द्रनाथ चतुर्वेदी सम्पादित 21वें दंड ग्रहण की स्वामिश्री: सन्यास समज्या स्मारिका का लोकार्पण भी हुआ। 
इस मौके पर सपाद लक्षेश्वर धाम सलधा के ब्रह्मचारी ज्योतिर्मयानंद ने शंकराचार्य से दंड संन्यास की दीक्षा ली। अब से वह नए नाम श्रीमद्ज्योतिर्मयानंद सरस्वती के नाम से जाने जाएंगे। तीन अन्य ने विरक्त दीक्षा ली। उनमें गुजरात के श्रीपड्या नैषध अब केशवेश्वरानंद ब्रह्मचारी, बंगाल के वैराग्य अब साधु सर्वशरण दास और ब्रह्मचारी पुरुषोत्तमानन्द के रूप में जाने जाएंगे। भजन गायक कृष्णकुमार तिवारी ने भजन की प्रस्तुति दी। संन्यास दीक्षा का कार्यक्रम आचार्य पं. अवधराम पाण्डेय के नेतृत्व में हुआ। सहयोगी आचार्य पं. दीपेश दुबे, पं. करुणाशंकर मिश्र एवं पं. प्रवीण गर्ग रहे। इस अवसर पर इन्दुभवानंद ब्रह्मचारी, परमात्मानंद ब्रह्मचारी, अमित तिवारी, रमेश पाण्डेय, संतोष केसरी, राजकुमार शर्मा, रामसजीवन शुक्ल, प्रमोद मांझी आदि उपस्थित थे।

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