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रविवार, 3 मार्च 2024

औरंगजेब ने इस शिवलिंग पर मारी थी तलवार, चोट लगते ही निकली थी खून और दूध की धार

प्रयागराज। संगमनगरी  के गंगा घाटों में सभी घाटों का इतिहास अलग है। दारागंज के दशाश्वमेध घाट का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है। इस घाट पर स्वयं ब्रम्हा जी ने यज्ञ किया था। इसके अलावा धर्मराज युधिष्ठर ने इसी घाट पर दस यज्ञ किये थे। इसीलिए इस घाट को दशाश्वमेध घाट के नाम से जाना जाता है। 
सम्पूर्ण भारत में संगम का धार्मिक, पौराणिक, साहित्यक और राजनैतिक में विशेष महत्व माना गया है। जिसे तीर्थराज भी कहा जाता है। इसका वर्णन वेदों में भी किया गया है। मां गंगा तट पर देश विदेश से लाखों लोग आते हैं और मोक्ष की कामना करते है। आइये जानते है संगम घाट से करीब दो किलो मीटर की दूरी पर बने दशाश्वमेध घाट की मान्यता के बारे में।ऐसी मान्यता है कि चार वेदों को पाने के बाद स्वयं ब्रह्माजी ने प्रयागराज के इसी स्थान पर यज्ञ किया था। सृष्टि से पहले यहां यज्ञ करने के बाद से इसे तीर्थराज प्रयाग कहा जाने लगा। इस दारागंज के दशाश्वमेध घाट का ऐतिहासिक महत्व है।
मंदिर के महंत, पुजारी हरि शंकर ने बताया कि मुगल सम्राट अकबर प्रयागराज की धार्मिक और सांस्कृतिक ऐतिहासिकता से काफी प्रभावित था।अकबर ने इस नगरी को अल्लाह का वास कहा था। इसीलिए उसने यहां का नाम इलाहाबाद रखा था।  सम्राट अकबर ने ईश्वर की शक्ति को देखने के लिए इस शिवलिंग पर अपनी तलवार चलाई थी। उस दौरान यह शिवलिंग कट गयी थी। उस वक्त शिवलिंग से दूध और खून की धारा निकली थी। जो आज भी देखने को मिलती है। आज भी शिवलिंग के सिर पर तलवार से कटी धार साक्षात इस  इतिहास का प्रमाण है। दशाश्वेधम घाट पर स्थित शिव मंदिर में ब्रह्माजी ने यज्ञ किया था। इस घाट पर सावन में पूरे एक माह कांवरियों की गंगा जल लेने की भारी भीड़ देखने को मिलती है। कांवरिये गंगाजल भरकर पहले दशाश्वमेध के शिव मंदिर में गंगाजल चढ़ाते हैं। इसके बाद यहां का जल लेकर काशी जाते हैं।   महाशिवरात्रि और सावन पर्व पर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।
दशाश्वमेध घाट का कायाकल्प पहले भी प्रस्तावित हुआ था। इसका पुनर्निर्माण करने के साथ-साथ इसकी छत को जलरोधी बनाने की तैयारी शुरु की जा रही है। जिससे बारिश के पानी का रिश्ताव अंदर न हो। मंदिर मे नई सीढ़ियों, दो प्रवेश द्वार, संगमरमर का फर्श, रेलिंग और छत की डिजाइन की तैयारी भी की जा रही है।कोरीडोर में शामिल किये जाने के बाद अब कार्य तेजी से किया जा रहा है। अधिकारियों के मुताबिक  इस शिवामंदिर की दीवारों पर   पौराणिक महत्व को भी दर्शाया जाएगा।  मंदिरों की दीवारों व अंदर की छतों पर नकाशी भी कराई जाएगी।

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