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बुधवार, 27 दिसंबर 2023

आराधना-महोत्सव गुरु परम्परा से ही हो रहा है राष्ट्र एवं धर्म का उत्थान शंकराचार्य वासुदेवानंद

प्रयागराज। भगवान आदिशंकराचार्य जी मंदिर, ब्रह्म निवास अलोपीबाग में श्रीमज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज के सानिध्य में हो रहे श्रीमद्भागवत कथा के अन्तिम दिन आज पूज्य स्वामी जी ने बताया कि सनातन धर्म के अनुसार गुरू ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश और परमब्रह्म है। भगवान विष्णु, नारद जी, शुक्राचार्य, वृहस्पति गुरू, भगवान परशुराम, पूज्य व्यास जी, भगवान आदिशंकराचार्य आदि सभी गुरू परम्परा के वाहक हैं और सबने समय-समय पर सनातन धर्म के सूत्र व सिद्धान्तों के प्रचार-प्रसार व विस्तार के लिए कार्य प्रयास एवं संघर्ष किया है। भगवान आदिशंकराचार्य की परम्परा को कायम रखते हुए 1941 में पीठोद्धारक ब्रह्मलीन स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती जी द्वारा भगवान ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य जी, उनके बाद श्रीमद्ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य ब्रह्मलीन शान्तानंद सरस्वती जी, ज्योतिष्पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन स्वामी विष्णुदेवानंद सरस्वती जी तथा उनके बाद 14/15 नवम्बर 1989 ई0 से मैं स्वयं इस पीठ का पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य हूँ। गुरूओं के आदेश व परम्परा को निभाते हुए सनातन धर्म, संस्कृति व गौरव को विश्वव्यापी बनाने में संलग्न हूँ।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि गुरू परम्परा से ही राष्ट्र एवं धर्म का विश्वव्यापी उत्थान हो रहा है। गुरू परम्परा से ही हमें अपने इतिहास, भूगोल, संस्कृति एवं जीवन शैली का ज्ञान होता है। वरिष्ठ शंकराचार्य स्वामी शान्तानंद सरस्वती जी महाराज एवं मुख्यमंत्री श्रीमहंत योगी आदित्यनाथ जी के गुरू श्री महंत श्री अवैद्यनाथ जी ने भी श्री राम मंदिर अयोध्या के निर्माण के लिए संघर्ष किया। उनकी प्रेरणा से ही मैंने और श्री महन्त योगी आदित्यनाथ जी ने मंदिर आंदोलन को आगे बढ़ाया और स्व0 श्री अशोक सिंहल जी के सतत प्रयास से सभी सनातन परम्परा के संत एक साथ खड़े हुए। परिणामस्वरूप अयोध्या में श्री राम जन्म भूमि स्थल पर भव्य दिव्य राम मंदिर बन रहा है। यह शहीद श्री राम कारसेवकों के बलिदान का फल है।
आराधना महोत्सव में आज सर्वप्रथम पूज्य शंकराचार्य जी ने पूज्य श्री मज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य ब्रह्मलीन शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी शान्तानंद सरस्वती जी के जयन्ती समारोह में उनका एवं उनके खड़ाऊ का पूजन एवं आरती किया। पूज्य कथा व्यास जी ने आज श्रीमद्भागवत कथा के समापन के अवसर पर कहा कि सभी श्रद्धालु भक्तों को श्रीमद्भागवत कथा से ज्ञात अपने आदर्श चरित्र-पात्रों के आचरण का अनुशरण एवं अनुकरण करना चाहिए।
समापन के अवसर पर पूज्य स्वामी शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती जी के निर्देश पर चोटी प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। चोटी सम्राट आचार्य विपिन शास्त्री की चोटी 42 इंच लम्बी होने के कारण उन्हें 10वें वर्ष भी चोटी सम्राट घोषित किया गया। विपिन शुक्ल को 30 इंच की चोटी होने पर प्रथम, आकाश शर्मा को 26 इंच की चोटी होने पर द्वितीय तथा 22 इंच की चोटी होने पर कृष्णा पाण्डेय व प्रकाश मिश्र को तृतीय पुरस्कार मिला। राघवेन्द्र उपाध्याय को चतुर्थ स्थान सहित कुल 32 प्रतियोगियों को प्रोत्साहन सहित चोटी रखने के लिए पूज्य शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी द्वारा पुरस्कृत किया गया। 
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से पूज्य शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी ने व्यास मंच पर लगे पूर्व ज्योतिष्पीठाधीश्वर पूर्व जगद्गुरू शंकराचार्यों के चित्र पर माल्यार्पण करके उनकी पूजा अर्चना किया। मुख्य रूप से चमोली से पधारे जोशी मठ, तीर्थ पुरोहित ऋषि प्रसाद सती, संत श्री बंगाली बाबा, स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती, स्वामी शंकरानंद, स्वामी ब्रह्मदत्तपुरी जी, दण्डी संन्यासी विनोदानंद जी सरस्वती, माता कल्याणी देवी मंदिर अध्यक्ष पं0 सुशील पाठक, पूर्व प्राचार्य ज्योतिष्ठपीठ संस्कृत महाविद्यालय, पं0 शिवार्चन उपाध्याय, आचार्य विपिन जी, कानपुर से पधारे पं0 रामजी त्रिपाठी, आचार्य अभिषेक मिश्र, आचार्य मनीष जी, जितेन्द्र जी, राजेश राय दिल्ली, आलोक कनकने, दीप्त कुमार पांडे कानपुर, सीताराम शर्मा जयपुर, श्रीमती लीला शर्मा पंजाब एवं ज्योतिष्पीठ प्रवक्ता ओंकारनाथ त्रिपाठी आदि ने कार्यक्रम में भाग लिया।

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