प्राचीन काल की बात है। राजा जनक ने ज्यों ही योग बल से शरीर का त्याग किया, त्यों ही एक सुन्दर सजा हुआ विमान आ गया और राजा दिव्य-देहधारी सेवकों के साथ उस पर चढकर चले।विमान महाराज को संमनी पुरी के निकटवर्ती भाग से ले जा रहा था। ज्यों ही विमान वहाँ से आगे बढ़ने लगा, त्यों ही बड़े ऊँचे स्वंर से राजा को हजारों मुखों से निकली हुई करुणध्वनि सुनायी पड़ी.पुण्यात्मा राजन्! आप यहां से जाइये नहीं, आपके शरीर को छूकर आने वाली वायु का स्पर्श पाकर हम यातनाओं से पीड़ित नरक के प्राणियों को बड़ा ही सुख मिल रहा है।धार्मिक और दयालु राजा ने दुखी जीवों की करुण पुकार सुनकर दया के वश निश्चय किया कि, जब मेरे यहाँ रहने से इन्हें सुख मिलता है तो यम, मैं यहीं रहूंगा। मेरे लिये यही सुन्दर स्वर्ग है। राजा वहीं ठहर गये। तब यमराज ने उनसे कहा, यह स्थान तो इष्ट, हत्यारे पापियों के लिये है।हिंसक, दूसरो पर कलंक लगाने वाले, लुटेरे, पतिपरायणा पती का त्याग करनेवाले, मित्रों को धोखा देने वाले, दम्भी, द्वेष और उपहास करके मन-वाणी-शरीरों, कभी भगवान्का स्मरण न करने वाले जीव यहाँ आते हैं और उन्हें नरकों मे डालकर मैं भयंकर यातना दिया करता हूँ। तुम तो पुण्यात्मा हो, यहाँ से अपने प्राप्य दिव्य लोक में जाओं। जनक ने कहा, मेरे शरीर से स्पर्शं की हुई वायु इन्हें सुख पहुँचा रही है, तब मैं केसे जाऊं ? आप इन्हें इस दुख से मुक्त कर दें तो में भी सुखपूर्वक स्वर्ग में चला जाऊंगा।यमराज ने [पापियों की ओर संकेत करके] कहा, ये कैसे मुक्त हो सकते है ? इन्होंने बड़े बड़े पाप किये हैं।
रविवार, 27 अगस्त 2023
राजा जनक को नर्क द्वार का दर्शन .... read more

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