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सोमवार, 24 जुलाई 2023

स्वास्थ्य-चर्चा / होम्योपैथी में है मधुमेह का प्रभावी उपचार : डॉ. मयंक चौधरी

"किसी भी रोग की उत्पत्ति एक प्रक्रिया है। शरीर यह प्रक्रिया अपने को जीवित रखने और पहले से बेहतर बनाने के लिए करता है। इस प्रक्रिया में जो लक्षण उत्पन्न होते हैं, उन्हें हम बीमारी कह सकते हैं।"
    यह विचार जर्मन के चिकित्सक एवं वैज्ञानिक डॉ. हैमर के हैं। उनके अनुसार रोग साइकोसोमेटिक प्रक्रिया के अंतर्गत अलग-अलग लक्षण देते हैं और कई चरणों में पूरे होते हैं। रोग के उत्पत्ति की इस प्रक्रिया को हम संक्षिप्त में समझते हैं-
     डॉ. हैमर की रिसर्च लर्निंग जी.एन.एम. के अनुसार हर रोग के पीछे एक निश्चित कारण जिम्मेदार होता है। वह हमारे ब्रेन के एक निश्चित हिस्से पर असर करता है और उसका असर शरीर के उस हिस्से पर साथ ही साथ आ जाता है, जिसे वह ब्रेन का हिस्सा नियंत्रित कर रहा होता है।
     डॉ. हैमर के उपर्युक्त शोध के अनुसार रोग का चक्र तीन चरणों में हमारे शरीर में पूरा होता है-
पहला चरण : बायोलॉजिकल कॉन्फ्लिक्ट या DHS,  इस चरण में अप्रत्याशित घटना, जिसका हमें अंदाजा भी नहीं होता, हमारे जीवन में घटती है, यह घटना हमारे मन (phyce), दिमाग (brain) और शरीर (body) पर एक साथ असर करती है। सीधे शब्दों में कहें तो जीवन की अप्रत्याशित घटनाएं हमें बीमार बना सकती हैं। ये हमारे मन, हमारे मस्तिष्क और शरीर तीनों पर एक निश्चित क्रम में असर डालती हैं ।

दूसरा चरण : इस चरण conflict active phase कहते हैं। इसमें अप्रत्याशित घटना के विरुद्ध शरीर की प्रतिक्रिया होती है। इसके तहत शरीर में ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम का sympathetic part एक्टिव हो जाता है, जिसमे संबंधित ऑर्गन से जुड़े सिम्पटम्स (लक्षण) के साथ कुछ जनरल सिम्पटम्स आते हैं, जैसे-
1. तेज हृदय गति
2. ब्लड-प्रेशर का बढ़ना
3. मंद पाचन
4. उत्तेजना

तीसरा चरण : इसे हीलिंग फेज कहते हैं। इस चरण में अप्रत्याशित कारण के समाप्त होते ही शरीर स्वयं ही हीलिंग शुरू कर देता है। जो भी क्षति दूसरे चरण में होती है, उसकी भरपाई शरीर करने लगता है। इसमें संबंधित अंगों के लक्षणों के साथ निम्नलिखित लक्षण देखने को मिलते हैं-
1. अच्छी भूख
2. मंद नब्ज
3. शारीरिक थकान
4. मानसिक संतुष्टि
  
     इस प्रकार आपने देखा कि कैसे तनावपूर्ण जीवन-शैली और जीवन से संबंधित अन्यान्य कारण हमारे मन पर असर करते हैं, उसका प्रभाव हमारे तन पर पड़ता है और रोग पैदा होते हैं।
     मधुमेह रोग की उत्पत्ति का आधार भी यही है। हमारे शरीर के पाचन सहायक अंग पैंक्रियाज में दो तरह सेल्स अल्फा आइलेट सेल्स और बीटा आइलेट सेल्स पाए जाते हैं। जिसमें अल्फा आइलेट सेल्स glucagon हार्मोन बनाता है, जो कि  खून में  ग्लूकोज को बढ़ाता है, वहीं बीटा सेल्स इन्सुलिन का निर्माण करते हैं, और खून से ग्लूकोज या शुगर को कम या नियंत्रित करते हैं।

Conflict के कारण : 
     डॉ.  हैमर के अनुसार जब हम किसी तनाव पूर्ण परिस्थिति में हों, तो हमारे शरीर को ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस ऊर्जा को पूरा करने के लिए बीटा सेल्स निष्क्रिय या क्षमता से कम कार्य करने लगते हैं और हमारे रक्त में शुगर बढ़ जाती है, जो बढ़ी हुई ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करती है। जब परिस्थिति सामान्य हो जाती है, तो हमारे बीटा सेल्स सामान्य इन्सुलिन बनाने लगते हैं, और ब्लड शुगर सामान्य हो जाता है ।
      परंतु, जब तनावपूर्ण जीवन-शैली हमारे जीवन में स्थायी हो जाती है, तब हमारे शरीर में ब्लड शुगर बढ़ जाती है । ब्लड में शुगर बढ़ना, मीठा खाने से ज्यादा हमारे जीवन के तनाव पर निर्भर करता है ।

डायबिटीज का उपचार : 
    यदि एलोपैथी पद्धति को देखें, तो इसमें मूलतः ब्लड में बढ़े हुए शुगर को कम करने पर ध्यान दिया जाता है, और टैबलेट या इन्सुलिन के माध्यम से इलाज किया जाता है। जिन कारणों ने हमारे शरीर में इन्सुलिन की कमी कर शुगर को बढ़ाया है, वे हमारे शरीर में बने रहते हैं। नतीजतन हमारी निर्भरता एलोपैथी या अंग्रेजी मेडिसिन पर सदैव बनी रहती है।

डायबिटीज और होम्योपैथी : 
    होम्योपैथी चिकित्सा विधा में रोग और रोग से जुड़े कारणों का अत्यधिक महत्त्व है। इसमें हर बीमारी से जुड़े प्रत्येक लक्षण का गहन और विस्तृत अध्ययन कर रोग के कारणों को दूर करने का प्रयत्न किया जाता है ।
       डायबिटीज या मधुमेह रोग में, जैसा कि हमने देखा यह जिन कारणों से उत्पन्न होता है। उन सभी कारणों को दूर करने की क्षमता होम्योपैथी में है। जब डायबिटीज से जुड़े कारण दूर होते हैं, तो यह रोग भी अन्य रोगों की तरह समाप्त होने लगता है। होम्योपैथी के समुचित उपचार से मधुमेह रोगी सामान्य जीवन जीने लगता है।
    
        - हर्षित होम्यो क्लिनिक
        हिन्द नगर, कानपुर रोड
            लखनऊ-226012
           मो. 8127494542

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