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सोमवार, 24 जुलाई 2023

भाषा कभी प्राचीन एवं मध्यकालीन नहीं होती -प्रो हरिशंकर मिश्र

प्रयागराज। हिन्दुस्तानी एकेडेमी प्रयागराज उत्तर प्रदेश एवं नया परिमल प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में होने वाली त्रि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी भाषा संसद के दूसरे दिन का आयोजन इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग में संपन्न हुआ. प्रथम सत्र में सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ प्रारम्भ हुआ। अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान शाल, स्मृति चिन्ह से एकेडेमी के सचिव देवेंद्र प्रताप सिंह ने किया। स्वागत भाषण में एकेडेमी के सचिव देवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि हिन्दुस्तानी एकेडेमी एवं नया परिमल की परिकल्पना पर आयोजित भाषा संसद का उद्देश्य धीरे-धीरे परिलक्षित होता दिख रहा है । स्वागत भाषण के पश्चात्य 'मध्यकालीन भारतीय भाषाओं में अंतःसम्बन्ध’ पर संवाद हुआ।  इस सत्र के अध्यक्ष प्रो. हरिशंकर मिश्र ने कहा की भाषा कभी प्राचीन या मध्यकालीन नहीं होती, वह नदी की तरह प्रवाहमान होती है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा की जो भाषा जनोन्मुखी नहीं होती वह समाप्त  हो जाती है।  मन्त्र के सम्बन्ध में उन्होंने कहा जब आक्रान्ताओं ने गर्भगृह को नष्ट कर दिया तो विमान बनाने की तकनीकी भी नष्ट हो गई। यह तकनीकी ही मात्र थी, और उसके बाद हम कथाओं के फेर में पड़े रहे अतिथि वक्ताओं में प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा की भारतीय भाषाओं के बीच नाभि-नाल का सम्बन्ध है। प्रो. श्रुति ने बताया कि बुद्ध के उपदेशों को मागधी में संकलित न करके पालि में क्यों किया गया। डॉ. प्रीती सिंह ने मध्यकालीन भाषा के विभिन्न पक्षों पर अपने विचार प्रस्तुत किए। डॉ. विकास शर्मा ने आजादी का आन्दोलन और कृष्ण का उदाहरण देकर अपने विचार प्रस्तुत किये।  सत्र के सूत्रधार डॉ. बृजेश कुमार पाण्डेय ने विद्यार्थियों और शोधार्थियों के सम्मिलित प्रश्नों के माध्यम से वक्ताओं से सवाल जवाब किया। दूसरे सत्र में ‘आधुनिक भारतीय भाषाओं में अन्तःसम्बन्ध’ पर परिचर्चा का आयोजन हुआ. अध्यक्षता कर रहे प्रो. पवन अग्रवाल ने कहा कि भावना के रूप में हम हिन्दी को राष्ट्रभाषा मानते हैं. साथ ही यह भी कहा कि  भाषा की तकदीर राजनीति तय करती है। अतिथिवक्ता प्रो. प्रभाकर सिंह ने कहा कि भारत बहुलतावादी संस्कृति और बहुलतावादी भाषाओं का राष्ट्र है।  रामविलास शर्मा की किताब ‘भाषा और समाज’ के हवाले से उन्होंने कई बातें रखी।  डॉ. लेखराम दन्नाना ने भारतीय भाषाओं के विरोधाभास की बात की। प्रो. मुन्ना तिवारी ने बोलियों की ताकत की बात की. उन्होंने हिंदी और संस्कृत के सम्बन्धों के बारे में कहा कि हिन्दी आज संस्कृत से अलग नहीं बस उसका स्वरूप बदल गया है।  डॉ. सुनील कुमार राय ने कहा कि भारतीय भाषाओं में अंत:लगाव है, विरोध नहीं।  इस सत्र के सूत्रधार डॉ. चितरंजन सिंह ने विद्यार्थियों और शोधार्थियों के सम्मिलित प्रश्नों के माध्यम से अतिथि वक्ताओं से अनेक प्रकार के सार्थक प्रश्न पूछकर संवाद स्थापित किया।  कार्यक्रम के तृतीय सत्र में नया परिमल के सदस्य विद्यार्थियों ने संगीतमय प्रस्तुति दी। इस पूरे कार्यक्रम के दौरान इलाहाबाद विश्वविद्यालय के स्नातक-परास्नातक के छात्र, शोधार्थी और शिक्षकगण एवं एकेडेमी के समस्त कर्मचारी उपस्थित रहे। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. विनम्र सेन सिंह ने किया। 
नया परिमल के सचिव डॉ.विनम्रसेन सिंह ने कहा कि कल तृतीय और अंतिम दिवस 24/07/2023 के कार्यक्रम का आयोजन हिन्दुस्तानी एकेडेमी के गाँधी सभागार में सुबह 10बजे से होगा।

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