प्रयागराज। सिर में सेहरा सजाकर, सजधज कर दूल्हे की बरात आपने खूब देखी होगी। अपवाद तौर पर कुछ जगह लड़कियां व किन्नर भी बरात निकाल चुकी हैं। बरात में शामिल होकर नाचे-गाए भी होंगे। प्रयागराज में इससे इतर भी बरात निकलती है, जिसमें दूल्हा कोई इंसान नहीं बल्कि मुगदर व हथौड़ा बनते हैं। प्रयाग में रंगोत्सव की शुरुआत अनोखी मुगदर बरात से होती है। महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के मोहल्ले दारागंज में बैंडबाजा, रोड लाइट के साथ मुगदर का श्रृंगार करके धूमधाम से बरात निकाली गई। मुगदर की बरात में सैकड़ों लोग शामिल हुए। इसके साथ होली उत्सव की शुरुआत हो गई। मुगदर की तरह हथौड़ा भी दूल्हा बनकर सड़कों पर घूमता है। होलिका दहन की पूर्व संध्या पर 6 मार्च को हथौड़ा को सजाकर, नजर उतारकर दूल्हा बनाकर घुमाया जाएगा।मुगदर की बरात निकालने की परंपरा ब्रिटिश हुकूमत काल में 1936 में हुई। मौजूदा मुगदर बरात के संरक्षक धर्मराज पांडेय बताते हैं कि ब्रिटिश शासनकाल में खुलेआम होली खेलने पर रोक थी। लोग घर से बाहर निकलने से डरते थे। उस दौर में लोगों का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए मेरे बाबा सीताराम पांडेय होली के दिन बाहर निकलकर होली खेलने की शुरुआत की थी। वे पहलवान थे, इसलिए हाथ में मुगदर लेकर फगुआ गाते हुए चलते थे, उन्हें देखकर लोगों का झुंड चलता था। टेसू के फूलों से घर में बना रंग खेलते थे। बाबा की मृत्यु 1945 में हुई तो पिता रामावतार पांडेय ने परंपरा को आगे बढ़ाया। रामावतार का निधन 1965 में होने के बाद भी परंपरा आगे बढ़ती रही। इसे 2023 में भव्य स्वरूप दिया गया। तबसे बैंडबाजा, ढोल-ताशा के साथ प्रयागराज सेवा समिति की ओर से मुगदर की बरात निकाली जाती है।
मुगदर बरात के संयोजक तीर्थराज पांडेय ''बच्चा भैया बताते हैं कि मुगदर बरात में आधा दर्जन मुगदर शामिल हुए। उन्हें अलग-अलग अखाड़ों से लाया गया है। दूल्हा कृष्णा राव का दो सौ वर्ष पुराना पांच फिट का मद्रासी मुगदर को बनाया गया।हथौड़ा बरात निकालने की परंपरा 1993 में शुरू हुई। जीरो रोड चौराहा से अजीत तिवारी ''नेता जी, बाबा अभय अवस्थी, अरुण पाठक, डा. सुधीर कुमार तिवारी जैसे लोगों के संयोजन में बराती निकलती थी। मौजूदा समय इसे संजय सिंह के नेतृत्व में मीरगंज मोहल्ले से निकाला जाता है।
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