◆ अंजलि श्रीवास्तव
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
नवरात्रि में हम सब नवदुर्गा की उपासना में संलग्न हैं। नवरात्र यूँ तो पवित्र रात्रि का प्रतीक है। ऐसी रात्रि जो पाप रूपी अँधेरे का दमन कर जीवन में नई रोशनी का संचार करती है। प्रकृति मातृशक्ति है।देवी भागवत पुराण के अनुसार पूरे वर्ष में चार नवरात्रि मनाई जाती है।
यह चारों नवरात्रि ऋतु चक्र पर आधारित हैं। इनमें दो गुप्त नवरात्रि और दो उत्सवधर्मी नवरात्रि हैं। जो उत्सवधर्मी नवरात्र हैं, वे वासंतीय या चैत्र नवरात्र तथा शारदीय नवरात्र हैं। दोनों ही ऋतु परिवर्तन से संबंधित हैं। इस समय रोगाणुओं के संक्रमण की संभावना ज्यादा होती है। हमारे शरीर को नवमुख द्वार वाला कहा जाता है और उसके भीतर निवास करने वाली जीवन शक्ति का नाम भी नवदुर्गा है। इन मुख्य इंद्रियों के अनुशासन स्वच्छता स्थापित करने के स्वरूप में शरीर को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए प्रयास किया जाता है। ज्योतिष की दृष्टि से चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है जो आत्म शुद्धि और मुक्ति के लिए है। चैत्र नवरात्रि से नव वर्ष पंचांग की गणना शुरू होती है और वर्ष में अन्न-धन व्यापार और सुख-शांति का आकलन किया जाता है।
नवरात्र का महत्त्व सिर्फ धर्म अध्यात्म और ज्योतिष की दृष्टि से नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी नवरात्रि का अपना महत्व है। ऋतु बदलने की वजह से आसुरी शक्तियाँ प्रभावित होती हैं, जिसका अंत करने के लिए हवन जिसमें कई तरह की जड़ी-बूटियों और वनस्पतियों का प्रयोग किया जाता है।
वैज्ञानिक सिद्धांत के अनुसार मंदिरों में घंटी और शंख की आवाज के कंपन दूर-दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है। यह रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है। वैज्ञानिक तत्त्व को ध्यान में रखते हुए रात्रि में हम संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में खींचते हैं।
नवरात्रि के वजह से लोगों के अंदर सामाजिक ऊर्जा का संचार भी होता है, जो वह विलासिता से दूर होकर एक आदर्श जीवन की ओर अग्रसर करती है। इसलिए ऋषि-मुनियों ने नवरात्र में पूजा पाठ का विधान रात में ज्यादा महत्व दिया है। जिस प्रकार सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को रोकती हैं, उसी प्रकार मंत्र जाप के विचार-तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पैदा करती है। माना जाता है की नवरात्रि के किए गए प्रयास शुभ संकल्प बल के सहारे देवी दुर्गा की कृपा से सफल होते हैं । काम, क्रोध, मद, मत्सर और लोभ आदि जितनी भी राक्षसी प्रवृतियां हैं, उनका हनन करके हम विजय का उत्सव मनाते हैं।
◆ अंजलि श्रीवास्तव
- सेक्टर- डी, मकान नं. 195
शांतिपुरम, फाफामऊ, प्रयागराज, (उ.प्र.)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Post Comments