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शनिवार, 3 दिसंबर 2022

भगवत गीता का मुख्य उद्देश्य है मोह नाश कर अर्जुन के शौर्य का पुनर्जागरण : अवधेश

जब युद्ध के निर्णय के पश्चात युद्धोत्सुक सेनायें आमने सामने खड़ी हों, ऐसे में दूसरे पक्ष की ओर से युद्ध करने आये पितामह भीष्म, आचार्य द्रोण, कुलगुरु कृपाचार्य एवं अन्य बन्धु बान्धव व संबंधियों को देखकर युद्ध के मुख्य नायक अर्जुन दुविधा में पड़ जाते हैं, दुविधा इसलिए कि अर्जुन भी कुरुक्षेत्र में युद्ध करने ही आये थे। 
ऐसी परिस्थिति में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को जो मार्गदर्शन कराया, वह गीता में वर्णित है। अत: गीता का मुख्य उद्देश्य अर्जुन के मोह का नाश करके, उनके शौर्य का पुनर्जागरण करना है। क्योंकि धर्म की संस्थापना के लिए अन्याय करने वाले दुर्योधन और अन्याय होते चुपचाप देखने वाले राजपुरुषों को दण्ड देना आवश्यक था, जिसके लिए निमित्त बनने की योग्यता उस समय अर्जुन में थी। 
तुम क्या लेकर आये थे, क्या लेकर जाओगे, फल की इच्छा मत करो, यह कायरता फैलाना गीता का उद्देश्य नहीं है।

भगवान कृष्ण तो कहते हैं -
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।*
अर्थात मारे गये तो स्वर्ग, जीत गये तो पृथ्वी का भोग। 
और
योगक्षेमं वहाम्यहम् -
अर्थात अप्राप्त वस्तुकी प्राप्ति करा देना 'योग' है और प्राप्त सामग्रीकी रक्षा करना 'क्षेम' है। भगवान् कहते हैं कि मेरे में नित्य-निरन्तर लगे हुए भक्तों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ।

भगवान कृष्ण कर्म फल का त्याग करने को इसलिए कहते हैं कि उनका भक्त प्राप्त फल की आसक्ति में अथवा फल न प्राप्त की निराशा में हतोत्साहित होकर तपस्या आदि शुभ कर्मों को करना छोड़ न दे। कारण कि आज जो अच्छा लगता है, वह कल विष हो सकता है और जो आज बुरा लग रहा है, वह कल के लिए अमृत हो सकता है। भक्त को लगातार शुभ कर्मों में लगाये रखना गीता का एक उद्देश्य है। 

अवधेश 
ग्रेटर नोएडा

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