( धर्मवीर गुप्ता )
भाषा विचार अभिव्यक्ति का माध्यम है। हमारे मन में जो विचार उत्पन्न होते हैं उन्हें हम भाषा के द्वारा व्यक्त करते हैं किंतु यदि हम अपनी बात उस भाषा में दूसरों के सामने रखते हैं जिसे सामने वाला समझ न सके तो वही भाषा हमारा मजाक बना देती है। कई बार शर्मिंदगी का सामना भी करना पड़ता है। विभिन्न भाषाओं का ज्ञान होना अच्छी बात है परन्तु ज्ञान का उपयोग अपने को ऊँचा दिखाने या दूसरों को अपमानित करने के लिए करना गलत है। जहाँ तक संभव हो सके हमें उसी भाषा में बात करनी चाहिए जो सामने वाला समझ सके।
एक बार की बात है जब मैं एक विद्यालय में सहायक अध्यापक के रूप में कार्य कर रहा था। मेरे सामने ऐसी घटना घटी जिसने मुझे चिंतन करने पर विवश कर दिया। विद्यालय में शिक्षक अभिभावक गोष्ठी चल रही थी। गोष्ठी के दौरान एक अभिभावक ने तंबाकू निकालकर हथेली पर डाला और उसे बनाने लगा। प्रधानाचार्य ने अपना प्रभाव दिखाने के लिए अंग्रेजी में उससे कहा ," डोंट मेक टोबैको हेयर।" अंग्रेजी भाषा का ज्ञान न होने के कारण बिना अर्थ समझे उसने सिर हिलाया और बोला," हां हां आप सही कह रहे हैं।" प्रधानाध्यापक थोड़े नाराज हुए। उन्होंने पुनः उससे कहा," आई एम सेइंग डोंट मेक टोबैको हेयर उसने पुनः बिना समझे उत्तर दिया," हां हां आप बिल्कुल सही कह रहे हैं ।" प्रधानाचार्य की नाराजगी बढ़ी। उन्होंने एक बार पुनः अंग्रेजी में ही अपनी बात कही ,"आई एम अगेन सेइंग डोंट मेक टोबैको हेयर," आदमी ने अपने ज्ञान के अनुसार सिर हिलाते हुए कहा ," हां भैया आप बिल्कुल सही कह रहे हो।" प्रिंसिपल साहब झल्ला उठे। उन्होंने गोष्ठी के दौरान ही चाय समोसा उठाकर फेंक दिया और बोले ,"मैं कब से कह रहा हूँ यहां तंबाकू मत बनाओ लेकिन तुम मान ही नहीं रहे हो।" आदमी ने उत्तर दिया ,"भैया ,यह बात अगर पहले बता दिया होता तो हम काहे बनाते और उसने तंबाकू फेंक दिया। गोष्ठी में बैठे अन्य लोग भी प्रधानाध्यापक को ही समझाने लगे कि गलती आप की थी। प्रधानाध्यापक अभिभावकों का मुँह देखते रह गए। मैं यह देखकर हैरान था। उस समय मैं यह चिंतन कर रहा था कि उस भोले भाले ग्रामीण का दोष क्या था ? उसने जानबूझकर तो ऐसा किया नहीं था। प्रधानाध्यापक इस बात को जानते थे कि वह साधारण ग्रामीण व्यक्ति है फिर अंग्रेजी में बात क्यों की ? यदि प्रधानाध्यापक अपने विवेक का इस्तेमाल करते तो ऐसी समस्या नहीं आती। उसी विद्यालय में एक और घटना घटी।
एक दिन एक महिला अपने बच्चों को लेकर देर से विद्यालय पहुंची। बालक कक्षा एक का छात्र था। प्रधानाचार्य ने पूछा," व्हाई आर यू सो लेट।" महिला ने कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि वह अंग्रेजी पढ़ना लिखना नहीं जानती थी। प्रधानाचार्य ने प्रभाव दिखाने के लिए अंग्रेजी में उससे पुनः कहा ," व्हाई आर यू सो लेट।" महिला भी झल्लाकर बोली," दहिजरिगा, नासि काटे अंग्रेजी अपनी अम्मा बहिनिस बुलिये। प्रधानाध्यापक उस महिला का मुँह देखते रह गये। उपस्थित अन्य लोग भी अपनी हंसी नहीं रोक पाये।
दोनों ही परिस्थितियों में भाषा का ही कमाल था। बातचीत करते समय सामने वाले की भाषा शैली व उसकी भाषा समझने की शक्ति का ध्यान नहीं दिया गया और विषम परिस्थितियां उत्पन्न हो गयी और वह उपहास का पात्र बन गए। यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम अपने बातचीत की शैली व भाषा के कारण लोगों के बीच सम्मान पाते हैं अथवा भाषा शैली के कारण हम असम्मान पाते हैं और उपहास का पात्र बन जाते हैं इसलिए हमें भाषा वही प्रयोग करनी चाहिए जो सामने वाला आसानी से समझ सके। प्रभाव जमाने या दिखाने के लिए विदेशी भाषा का प्रयोग करना उचित नहीं है।
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