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गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

विचार प्रवाह / नेतृत्वकर्ता बनना है तो जिम्मेदारी उठाना सीखे युवा

                           धर्मवीर गुप्ता

                    एक बार पंद्रह अगस्त के कार्यक्रम से पूर्व प्रबंध कमेटी और अध्यापकों के बीच गोष्ठी हो रही थी। गोष्ठी का विषय पंद्रह अगस्त का कार्यक्रम था। विद्यालय नया खुला था प्रबंधक भी नया, प्रधानाचार्य भी नया, कुछ अनुभवी अध्यापक थे तो कुछ अनुभवहीन, सभी इस कार्यक्रम को प्रभावशाली बनाना चाहते थे ताकि विद्यालय का प्रभाव वहां की जनता पर पड़े और वे इस विद्यालय की ओर आकर्षित होकर अपने बालकों का प्रवेश वहां कराएं। उन्हीं तैयारियों को देखने के लिए तथा अध्यापकों को दायित्व  सौंपने के लिए यह गोष्ठी की गई थी। गोष्ठी में प्रबंधक ने पूछा मंच संचालन का कार्य कौन अध्यापक करना चाहेगा ? सभी अध्यापक शांत हो गए। कोई भी इस जिम्मेदारी को उठाने के लिए तैयार नहीं था। सभी को यह लग रहा था कि कुछ गलत हो जायेगा। तभी एक अध्यापक ने कहा मैं इस जिम्मेदारी को निभाऊंगा । प्रबंधक ने शंका भरी नजरों से उसे देखा इसका कारण था कि वह अध्यापक नया था किंतु अन्य कोई विकल्प न देखकर उन्होंने उसे यह दायित्व उठाने की अनुमति दे दी। पंद्रह अगस्त के दिन सुबह कार्यक्रम प्रारंभ हुआ अध्यापक ने मंच संचालन का कार्य किया । यद्यपि उसे अनुभव नहीं था किंतु उसने अपने प्रयासों से मंच संचालन का कार्य ठीक किया। कई लोगों ने उसके प्रयासों की सराहना की और अब वह अध्यापक एक कुशल वक्ता भी है। विचार कीजिए यदि उसने दायित्व स्वीकार करने से मना कर दिया होता तो क्या वह एक कुशल वक्ता हो सकता था ? शायद नहीं, क्योंकि जब तक व्यक्ति नये दायित्वों को उठाने से डरता है तब तक उसमें नये गुणों का विकास नहीं हो सकता है और जब तक उसमें गुणों का अभाव होगा वह कुशल नेतृत्वकर्ता नहीं बन सकता है। 
                    किसी भी कार्य की शुरुआत कहीं न कहीं, कभी न कभी तो करनी ही होगी। उस जिम्मेदारी का निर्वहन आज और अभी से क्यों नहीं यह विचार मस्तिष्क में तुरंत आ जाना चाहिए जब दायित्व लेने का प्रश्न युवाओं के सामने उठाया जाए तो उसे तुरन्त आगे बढ़कर दायित्व लेने का कार्य करना चाहिए। अवसर उसके दायित्व उठाने की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं और जब युवा दायित्वों को स्वीकार करने लगते हैं तो वे एक कुशल नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरते हैं। कुशल नेतृत्वकर्ता का हर जगह सम्मान होता है। उसे सभी आदर भाव से देखते हैं। इतिहास में जितनी भी क्रांतियां हुई है जितने भी महापुरुष हुए हैं इन सब में कुशल नेतृत्वकर्ता का गुण विद्यमान था और उसी गुण के कारण वे विश्व में अपनी पहचान बनाने में सफल हो सके।
        कुशल नेतृत्वकर्ता के अभाव में न ही कोई क्रांति हुई है न ही सामाजिक परिवर्तन हुए है। सुभाष चंद्र बोस, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर, महात्मा गांधी, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद ,ज्योतिबा फुले, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानंद, डॉ राजेंद्र प्रसाद प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू के नाम  कुशल नेतृत्वकर्ता के गुण के कारण ही इतिहास में दर्ज है।
           घर से लेकर बाहर तक, संस्था में कार्य करने से लेकर व्यापार करने तक कई अवसर ऐसे ऐसे आते हैं जब लोग दायित्व को उठाने के लिए युवाओं से अपेक्षा करते हैं और युवा उन दायित्वों को लेने से किसी अनजान भय या परिस्थितियों के कारण बचना चाहते हैं। यह अनजान भय ही युवाओं को कुशल नेतृत्वकर्ता बनने से रोकता है। जब भी युवाओं से  दायित्व लेने की अपेक्षा की जाए। युवा भयमुक्त होकर दायित्व लें। यह मानकर कि उनसे अधिक अच्छा कोई कर ही नहीं सकता। युवा निश्चित ही एक कुशल नेतृत्वकर्ता बनकर उभरेंगे। उनका सर्वत्र सम्मान होगा। उनकी खुद की पहचान होगी। परिवार, समाज और राष्ट्र को लाभ होगा।

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