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शनिवार, 26 नवंबर 2022

समता एंव न्याय का विधान है संविधान : डॉ श्लेष गौतम

प्रयागराज हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में संविधान दिवस के अवसर पर  एकेडेमी परिसर के गाँधी सभागार में  भारतीय संविधान की प्रस्तावना का वाचन एवं ‘भारतीय संविधान में निहित दर्शन’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। कार्यक्रम के प्रारम्भ में एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने आमंत्रित अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ, स्मृति चिह्न और शॉल देकर किया। स्वागत संबोधन में एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि ‘आज का दिन भारतीय संविधान के निर्माताओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है। भारतीय संविधान के निर्माताओं ने भारतीय जनमानस के लिये सर्वश्रेष्ठ संविधान की परिकल्पना करके इसका निर्माण किया। इस संविधान के माध्यम से आमजन को सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करने के लिये भारतीय संविधान का निर्माण किया गया।’ संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रो. विजय कुमार राय (राजनीति शास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज) ने कहा कि ‘संविधान मात्र नियमों का उच्चारण नहीं यह संपूर्ण जीवन को संचालित करने का हमारा संकल्प है हम भारतीय लोग  इसके लिए संकल्पित हैं तो आवश्यकता है सोचने का कि संविधान क्या केवल कानून की दृष्टि से नहीं हमारी अपेक्षा संविधान से है और संविधान की अपेक्षा हमसे है। संविधान सभा की बैठक में डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि संविधान की सफलता और असफलता इसके संचालित करने वाले पर निर्भर है उसका पालन करने पर संविधान क्या है यह हमारा अधिकार है, हमारा कर्तव्य है या हमारी कानूनी अपेक्षाएं हैं, इन तीनों का विश्लेषण करने का समय है।’ संगोष्ठी के सम्मानित वक्ता प्रो. छत्रसाल सिंह (शिक्षा संकाय, उ0प्र0 राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय प्रयागराज) ने कहा कि ‘भारतीय संविधान निर्माताओं ने संविधान को अतिनूतन,व प्रासंगिक बनाने के लिए आवश्यकतानुसार विश्व की प्रमुख क्रान्तियों, सिद्धान्तों व संविधानों को सहायक साधन के रूप में प्रयोग करने में तनिक भी संकोच नही किया। फिर भी विश्व के किसी भी व्यवस्था का अन्धानुकरण नही किया बल्कि भारतीय इतिहास, भौगोलिक दशा, स्वतन्त्रता के लिए व प्रभावित करने वाले तत्व को ध्यान में रखकर संघर्ष को संविधान में स्थान दिया। संविधान निर्माताओं के मन में भारत व उसके नागरिकों के लिए जो समता या दर्शन था।’ संगोष्ठी के सम्मानित वक्ता प्रो. शिवहर्ष सिंह (राजनीति शास्त्र विभाग, ईश्वर शरण डिग्री कालेज, प्रयागराज) ने कहा कि भारतीय संविधान के कुल मिलाकर नौ दार्शनिक मूल्य हैं, जिन्हें हम संविधान के साध्य भी कह सकते हैं। और यही साध्य या दार्शनिक मूल्य भारतीय संविधान के उद्देश्य भी हैं। भारतीय संविधान का संपूर्ण दर्शन संविधान की प्रस्तावना में अंतरनिहित है। संविधान के नौ मूल्य : जनसंप्रभुता, समाजवाद, पंथनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक गणतंत्रवाद, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति, धर्म, विश्वास और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा एवं अवसर की समानता तथा बंधुता एवं राष्ट्र की एकता एवं अखंडता है।’ कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. श्लेष गौतम (विधि विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज)  ने कहा कि ‘समता एवं न्याय का विधान ही संविधान है’ अपनी चार पंक्तियां पढ़ी ‘कुर्बानी दे दी अपनी हमको मान दे दिया। समता का न्याय का नया विधान दे दिया।। वीरो ने अपना खून पसीना बहा बहा। भारत की आत्मा सा संविधान दे दिया।। अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने किया। कार्यक्रम में उपस्थित विद्धानों में डॉ. उषा मिश्रा, डॉ. पूर्णिमा मालवीय, योगाचार्य धर्मचन्द्र गुप्ता, विवेक सत्याशु, एम.एस. खान, डॉ. ओम प्रकाश मिश्र, सहित शोधार्थी एवं शहर के गणमान्य विद्वान आदि उपस्थित रहे।

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